यह बेअदबी है संविधान की
मेरा सिर शर्म से झुक गया उस बूढ़ी औरत की तस्वीर देख कर। हसीना फखरू की तस्वीर मैंने पिछले हफ्ते इंडियन एक्सप्रेस में देखी। चेहरे पर उदासी थी, हाथ में दो फोटो।
तवलीन सिंह: मेरा सिर शर्म से झुक गया उस बूढ़ी औरत की तस्वीर देख कर। हसीना फखरू की तस्वीर मैंने पिछले हफ्ते इंडियन एक्सप्रेस में देखी। चेहरे पर उदासी थी, हाथ में दो फोटो। एक अपने कच्चे मकान की और दूसरी उस पक्के मकान की, जिसको उसने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनाया और जिस पर मध्यप्रदेश सरकार ने बुलडोजर चलवाया खरगोन में रामनवमी के अगले दिन। कारण दो बताए गए हैं। मध्यप्रदेश के गृहमंत्री के मुताबिक दंगाइयों के घर तोड़े गए थे।
स्थानीय अधिकारी और पुलिस के मुताबिक सिर्फ अवैध मकानों और दुकानों पर बुलडोजर चलाए गए थे। कारण जो भी हो, किसी भी हालत में किसी भी सरकार को अधिकार नहीं है लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाने का, बिना किसी अदालत में साबित किए कि वास्तव में मकान अवैध था या मकान मालिक दंगाई था। अपना एक घर होना, चाहे जैसा भी हो, हर भारतीय का सबसे प्रिय सपना है। सच बेशक कड़वा है, लेकिन सच यह है कि आजादी के इस अमृत महोत्सव में आवास की सख्त कमी है अपने भारत महान में।
इस कड़वा सच को स्वीकार करते हुए नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की थी, जिसके तहत वादा किया था कि जिन लोगों के कच्चे घर हैं, उनको सरकारी मदद मिलेगी पक्का बनाने के लिए। मध्यप्रदेश के देहातों के दौरों पर मैंने अपनी आंखों से देखे हैं वे पक्के मकान, जो इस योजना के तहत बने हैं और मैंने कई बार इस योजना की प्रशंसा भी की है। तो, अब क्या हो गया है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री को कि निर्माण के बदले गरीबों के घरों तुड़वाने में लग गए हैं?
खरगोन पुलिस का कहना है कि रामनवमी के दिन दंगे हुए थे, इसलिए कि मुसलमानों ने हिंदुओं के जुलूस पर पथराव किया था। सो, मकान ज्यादातर तोड़े गए हैं मुसलमानों के। सवाल यह है कि ऐसा अगर करना था सरकारी अधिकारियों को, तो क्या उनका फर्ज नहीं बनता कि पहले कानूनी कार्रवाई होने देते, अदालत में साबित करते कि दंगाई कौन थे, फिर अदालत की इजाजत लेते मकानों को तोड़ने की?
सरकारें जब कानूनी कार्रवाई किए बिना तोड़ने लगी हैं लोगों के घर, तो क्या नींव नहीं रख रही हैं जंगलराज की? जब जंगलराज की स्थापना के आसार दिखने लगते हैं आम लोगों को, तो अक्सर होता यह है कि वे भी कानून को अपने हाथों में लेना शुरू कर देते हैं और अराजकता कम होने के बदले बढ़ने लगती है तेजी से।
रामनवमी के दिन हिंसा भड़की इस बार कई राज्यों में, लेकिन ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में और ऐसा हुआ है शायद इसलिए कि भारतीय मुसलमानों को अब विश्वास हो गया है कि जहां भी भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, वहां उनको न नागरिकता की बराबरी मिलेगी, न न्याय। अफसोस के साथ कहना होगा कि मुसलमानों का शक काफी हद तक सही है।
रामनवमी के जुलूसों के कई विडियो सोशल मीडिया पर डाले गए हैं और इन सबमें साफ दिखता है कि हिंसा शुरू होने से पहले हिंदू युवकों के झुंड दिखते हैं केसरिया पटके पहने हुए और मुसलमानों के लिए इतने गंदे नारे लगाते हुए कि यहां उनको दोहराया नहीं जा सकता। नारों के अलावा ऐसा भी देखने को मिला है कि इन युवकों ने कर्नाटक की एक मस्जिद की मीनार पर चढ़ कर केसरिया झंडा लहराया था।
इस साल कई भगवापोश साधुओं ने मुसलमानों के लिए इतनी नफरत उगली है कि अगर वे मौलवी होते तो उनको सीधा जेल में डाल दिया जाता। लेकिन भारत सरकार के किसी भी आला मंत्री या अधिकारी ने अभी तक नफरत फैलाने वालों के खिलाफ अपना मुंह नहीं खोला है, सो दुनिया की नजरों में भारत इतना बदनाम हुआ है कि अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन ने हमारे विदेश और रक्षामंत्री की मौजूदगी में कहा पिछले हफ्ते कि उनको खबर है कि मानवाधिकारों का सख्त उल्लंघन हो रहा है भारत में।
इस बयान के कुछ दिन बाद हमारे विदेश मंत्री ने कहा कि उनको खबर है कि भारतीय मूल के लोगों के मानवाधिकारों का उल्लंघन अमेरिका में भी हो रहा है। यह प्रतिक्रिया देर से आई।
भारत सरकार के प्रवक्ता इल्जाम लगाते हैं बहुत बार विदेशी मीडिया पर कि वे हमेशा भारत के बारे में बुरा लिखते और कहते हैं। सच यह है कि विदेशी पत्रकार वही कह रहे हैं, जो हमको कहना चाहिए। हमारे मीडिया में कितने लोगों ने ऊंचे स्वर में कहा है अभी तक कि मध्यप्रदेश सरकार को कोई अधिकार नहीं था लोगों के घरों पर बुलडोजर चालने का?
मोदी भक्त ऐसा होने पर अपनी खुशी व्यक्त करते फिर रहे हैं सोशल मीडिया पर यह कह कर कि कानूनी प्रक्रिया की रफ्तार ऐसी है कि कई दशक लग जाते हैं दंगाइयों को दंडित करने में। यह बात सही है, लेकिन इसका इलाज होना चाहिए इस प्रक्रिया को सुधारना, न कि जंगलराज की स्थापना करना।
मोदी भक्त साफ शब्दों में कह रहे हैं ट्विटर पर कि मुसलमानों के घर इसी तरह तोड़े जाने चाहिए, ताकि उनको समझ में आए कि हिंदुस्तान में रहना है तो दंगों में हिस्सा लेना बंद करें। ऐसा कह कर भूल रहे हैं कि ताली दो हाथों से बजती है और दूसरी बात जो भूल रहे हैं, वह यह कि आज मुसलमानों के घर तोड़े गए हैं, तो कल हिंदुओं के भी तोड़े जा सकते हैं।
एक बार जब हम अपने शासकों को ये अधिकार दे देते हैं, तो खमियाजा हम सबको भुगतना पड़ता है कभी न कभी। स्पष्ट शब्दों में : खरगोन में जो हुआ, गलत था। भारत के संविधान की बेअदबी थी।