विश्‍व की ताकतों और अन्‍य देशों को समझना होगा कि युद्ध नहीं है समस्या का समाधान

अन्‍य देशों को समझना होगा कि युद्ध नहीं है समस्या का समाधान

Update: 2022-03-06 14:12 GMT
डा. निरंजन कुमार। विश्व में साम्राज्यवाद की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि आज दुनिया के कई देश स्वयं को वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। इस लिहाज से विश्व का एक धड़ा अमेरिका की तरफ रहता है तो वहीं दूसरी ओर रूस और चीन जैसे देश अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ा यह युद्ध केवल रूस और यूक्रेन के बीच की लड़ाई नहीं है। रूस की लड़ाई यूक्रेन को समर्थन देने वाले अमेरिका, ब्रिटेन और नाटो समूह के अन्य देशों से भी है। सोवियत रूस का विघटन भले ही दशकों पहले हो चुका है, लेकिन रूस अब भी यही चाहता है कि कम से कम विघटित देश उसके विरोधियों के खेमे में शामिल न हों।
रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े युद्ध को तीसरे विश्व युद्ध की आहट के तौर पर भी देखा जा रहा है और ऐसी स्थिति पहले भी बनती रही है। इतिहास में कई सारी जंग देखने को मिली है। वर्तमान में भी देखें तो चीन और ताइवान, आर्मेनिया और अजरबैजान, इजराइल और फलस्तीन, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया इन देशों के बीच भी तो एक आंतरिक युद्ध जारी है। कई देश एक-दूसरे पर अपना अधिकार जमाने के लिए नई-नई मिसाइलें, परमाणु और सैन्य शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं। जेनेवा कन्वेंशन के दौरान युद्ध को लेकर जो अंतरराष्ट्रीय नियम बने, उनको दरकिनार किया जा रहा है। ऐसा लग रहा है कि आज मानवीय मूल्यों की कोई कीमत नहीं है।
रूस और यूक्रेन की सांस्कृतिक विरासत एक है। यूक्रेन साल 1991 तक सोवियत रूस का हिस्सा था। सोवियत रूस के विघटन के बाद रूस के पश्चिमी क्षेत्र में यूक्रेन देश अस्तित्व में आया। यूक्रेन में लगभग 50 प्रतिशत लोग रूसी भाषी हैं। इनका स्वभाव रूस से मिलता-जुलता है। दो पड़ोसी आपस में बैठकर किसी भी बड़े मुद्दे का हल आसानी से निकाल सकते हैं। लेकिन यूक्रेन में तीसरे देशों की उपस्थिति से हालात बदतर होते जा रहे हैं।
यूक्रेन-रूस युद्ध को आरंभ हुए लगभग दो सप्ताह होने जा रहे हैं। इसमें मानवीय मूल्यों की आहूति दी जा रही है, लेकिन विश्व के कई देश या तो युद्ध का समर्थन कर रहे हैं या फिर इसे रोकना नहीं चाह रहे हैं। लगभग साढ़े चार करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन के लोगों के हाथों में हथियार थामने और मर-मिटने जैसे राष्ट्रवाद शब्दों से उत्तेजित किया जा रहा है। पश्चिमी देशों में तो यूक्रेन को हथियार मुहैया कराने की होड़ सी लग गई है। कोई मिसाइल दे रहा है, कोई लान्चर दे रहा है, तो कोई अन्य सैन्य हथियार उपलब्ध करा रहा है। यूक्रेन को युद्ध की आग में झोंककर, हथियार उपलब्ध कराकर रूस और यूक्रेन जंग को लंबा करने का प्रयास पश्चिमी देशों की ओर से देखने को मिल रहा है। इसमें सबसे बड़ा नुकसान यूक्रेन का है। यूक्रेन को हथियार देकर युद्ध को लंबा खींचने से रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने की पश्चिमी देशों की सोच ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया है। संकट और भी बढ़ता जा रहा है। बेलारूस में रूस और यूक्रेन की बातचीत भी अब तक बेनतीजा रही। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की भी हथियार डालने के मूड में दिखाई नहीं दे रहे हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि आज का युग अर्थ का है। खासकर युद्ध जैसे हालात हों तो अर्थ का महत्व और भी बढ़ जाता है। जिस देश के पास जितना ज्यादा पैसा होगा, वह देश यद्ध में ज्यादा दिनों तक टिक सकता है। यूक्रेन आर्थिक रूप से एक कमजोर देश है। एक दिन के युद्ध में अरबों रुपये खर्च हो जाते हैं। ऐसे में यूक्रेन को हथियार प्रदान करके पश्चिमी देशों की दिलचस्पी युद्ध में रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करना है, न कि युद्ध को रोकने और विवाद सुलझाने में।
धीरे धीरे पूरा यूक्रेन मलबे में तब्दील होता जा रहा है। सैनिकों के अलावा सामान्य नागरिक भी युद्ध में मारे जा रहे हैं। जो जीवित हैं उनमें से अधिकांश भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। भूख से बिलखते बच्चों की किलकारियां रुक गई हैं। ऐसी स्थिति में पूरे विश्व को मिलकर युद्ध रोकने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन पश्चिमी देशों के द्वारा यूक्रेन के युवाओं के हाथों में हथियार देने की होड़ कई देशों में लगी है। यूक्रेन हथियार लेकर अंतिम सांस तक लड़ता रहेगा। रूस भी युद्ध में पीछे नहीं हटना चाहेगा। ऐसे में परमाणु युद्ध जैसे विकल्पों की ओर रूस बार-बार संकेत कर रहा है। अगर रूस परमाणु बम का इस्तेमाल करता है तो यूक्रेन का नामो-निशान मिट जाएगा। मानवीय मूल्यों की आहूति दी जाएगी, फिर भी संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका जैसे देश रूस को आर्थिक रूप से कमजोर करने और वैश्विक प्रतिबंध लगाकर खुश हो रहे हैं।
वर्ष 2016 में नाटो ने कहा कि नाटो सैन्य शक्ति से यूक्रेन की मदद करेगा जिसके पश्चात यूक्रेन की ताकत और बढ़ गई। लेकिन समय के साथ यद्ध की हालत में यूक्रेन को न तो नाटो का प्रत्यक्ष रूप से साथ मिला और न ही अमेरिका का। नाटो अगर बाहर से भी यूक्रेन की मदद करना चाहता है तो अब तक यूक्रेन को यूरोपियन यूनियन ने सदस्यता क्यों नहीं दी? यह सवाल यह दर्शाता है कि नाटो और अमेरिका भी यूक्रेन को बीच में रखकर रूस पर लगाम लगाने का काम कर रह था। युद्ध जैसे हालात में केवल हथियार मुहैया करा देने से क्या यूक्रेन, तकनीकी और हथियारों से लैस रूस का सामना कर पाएगा? अमेरिका और नाटो की सोची समझी कूटनीतिक चाल जब नाकामयाब होती दिखने लगी तो सभी ने रूस से सीधा युद्ध करने से पीछे हटकर यूक्रेन के मानवीय मूल्यों को आग में जलने के लिए छोड़ दिया।
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, अंतरराष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए किया गया था। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध में संयुक्त राष्ट्र का आधार पूर्व की भांति हांथी के दांत की तरह दिखाई पड़ रहा है। मालूम हो कि संयुक्त राष्ट्र में 193 देश शामिल हैं। वैश्विक शांति के लिए समय रहते अगर सही कदम नहीं उठाया गया तो इसके परिणाम मानवीय मूल्यों के लिए विस्फोटक और भयावह होगें। रूस और यूक्रेन को भी सकारात्मक ढंग से अनुसरण करने की दरकार है, ताकि वैश्विक शांति बनी रहे।
( लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार हैं )
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