ध्यान से भीतर जो शून्य जागता है, उसके बाद बाहर का शोर हमारी भौतिक सफलताओं के लिए बन जाता है सहारा
बाहर के संसार को पाने के लिए एक लगन पैदा करना पड़ती है और भीतर संसार बनाने वाले को पाने के लिए एक बेचैनी
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
बाहर के संसार को पाने के लिए एक लगन पैदा करना पड़ती है और भीतर संसार बनाने वाले को पाने के लिए एक बेचैनी। भीतर परमात्मा को पाने की बेचैनी जितनी अधिक होगी, बाहर की दुनिया में उतने ही चैन से रह सकेंगे। यह बात खास तौर पर इस समय देश की 12 से 18 वर्ष की उम्र वाली पीढ़ी को समझाना होगी। महामारी के दौर में अब इनका वैक्सीनेशन हो रहा है।
यह वैक्सीन इनके तन को सुरक्षा देगी, पर ठीक इसी समय इनके मन को भी विश्राम मिलना चाहिए। मन की वैक्सीन का नाम है मेडिटेशन। ध्यान से भीतर जो शून्य जागता है, उसके बाद बाहर का शोर हमारी भौतिक सफलताओं के लिए सहारा बन जाता है। यह पीढ़ी जिस तेजी से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहती है उसमें इनके तन को तो खूब सक्रिय रखना है, पर मन को विश्राम देना ही पड़ेगा। यदि यह काम समय पर नहीं किया, तो हमें इसके दुष्परिणाम भुगतना होंगे।
जब मल्लाह ही लूटने पर आ जाए तो कश्ती और पतवार दोनों हथियार हो जाते हैं। मन की सक्रियता के चलते यह पीढ़ी कहीं खुद को खुद से न लूट ले, स्वयं से स्वयं को बर्बाद न कर ले, इसलिए समय रहते इनके लिए मेडिटेशन का वैक्सीनेशन भी तैयार रखा जाए। ध्यान कोई धार्मिक क्रिया नहीं है। यह एक जीवनशैली होना चाहिए। नई पीढ़ी के बच्चों को यह बात समझाने का यह सही समय है।