देश की राजधानी दिल्ली और प्रमुख महानगर कोलकाता दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर हैं. भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई का स्थान 14वां है. वैश्विक संस्था हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट द्वारा जारी सूचकांक में विश्व के छह क्षेत्रों के 103 शहरों को शामिल किया गया है, पर इसे तैयार करने की प्रक्रिया में कुल सात हजार शहरों का आकलन किया गया. इस रिपोर्ट में 2010 से 2019 तक के आंकड़ों का उपयोग किया गया है. इसमें प्रदूषणकारी पीएम 2.5 तत्वों के सालाना आंकड़ों तथा प्रभावित आबादी के आधार पर निष्कर्ष निकाले गये हैं. कई वर्षों से विभिन्न अध्ययनों में रेखांकित किया जा रहा है कि भारतीय शहरों की हवा दिन-ब-दिन जहरीली होती जा रही है.
इस हालिया सर्वेक्षण में यह भी बताया गया है कि 2019 में दिल्ली में 29,900, कोलकाता में 21,380 और मुंबई में 16,020 लोगों की मौत का कारण वायु प्रदूषण था. विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय शहरों में 2020 में कुछ सुधार हुआ था, पर 2021 से फिर स्थिति बिगड़ने लगी है. कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए लगाये गये लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंध उस सुधार की मुख्य वजह थे. बीजिंग और अन्य कुछ शहरों में आबादी की उम्र बढ़ रही है. इस कारण प्रदूषण का असर भी अधिक है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रदूषण के कारण बीमारियों का बोझ न बढ़े. प्रदूषण की समस्या केवल महानगरों तक सीमित नहीं है.
पिछले साल प्रकाशित विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में विभिन्न आधारों पर बताया गया था कि दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 100 शहरों में 63 भारत में हैं. हमारे देश में किसी भी शहर में वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप नहीं है. भारत में प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव उत्तर भारत में है. भारत में होने वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है तथा इससे कई जानलेवा बीमारियां भी होती हैं. यदि वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप हो जाए, तो शहरों में रहने वाले लोगों की जीवन प्रत्याशा में 10 साल तक की बढ़ोतरी हो सकती है. प्रदूषण से हमारी स्वास्थ्य सेवा पर दबाव बढ़ने के साथ अर्थव्यवस्था पर भी असर होता है.
बीमारियों के चलते कार्य दिवसों का नुकसान होता है. अनेक अध्ययन इंगित करते हैं कि हमें हर साल वायु प्रदूषण की वजह से 150 अरब डॉलर से अधिक की हानि उठानी पड़ती है. जब प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाता है, तब औद्योगिक संयंत्रों और निर्माण कार्यों को रोकना पड़ता है. दिल्ली में तो वाहनों के संचालन को भी नियंत्रित करने जैसे उपाय हो चुके हैं. इनसे भी आर्थिक नुकसान होता है. वाहन उत्सर्जन, कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्र, औद्योगिक कचरा, निर्माण कार्य आदि के अलावा पराली और कूड़ा जलाने से भी यह समस्या विकराल हो रही है. यद्यपि स्वच्छ ऊर्जा में वृद्धि तथा प्रदूषण की रोकथाम के उपाय हो रहे हैं, पर इन प्रयासों की गति तेज करने की जरूरत है.
प्रभात खबर के सौजन्य से सम्पादकीय