कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में पूरी दुनिया नीले नभ में आत्मनिर्भर भारत की उड़ान देख रही है। शौर्य के साथ सटीक हमला, पराक्रम के साथ आक्रामकता और रफ्तार के साथ दुश्मन पर वार। यह सब देखकर देशवासी भी गर्व कर रहे हैं और वैश्विक शक्तियां भी भारत की सुपर पावर उड़ान देखकर हैरान हैं। एशिया के सबसे बड़े एयरो शो में आत्मनिर्भर फार्मेशन से शुरूआत हुई। भारत अपने उन विमानों को प्रदर्शित कर रहा है, जो स्वदेशी तकनीक से बनकर तैयार हुए हैं। एयरो शो के 13वें संस्करण में एक रिकार्ड भी बना है क्योंकि एयरो शो में देश-विदेश की करीब 600 कम्पनियों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। जिसमें 14 देशों की 78 कम्पनियां शामिल हैं। अंतरिक्ष क्षेत्र में तो भारत का वर्चस्व पहले ही कायम हो चुका है।
अब वायु क्षेत्र में बढ़ते दबदबे की ही देन है कि दुनिया की हर बड़ी कम्पनी अब मेक इन इंडिया के तहत ही भारत में हथियारों का निर्माण करना चाहती है। चाहे वो अमेरिका की बोइंग कम्पनी हो जो भारत में एफ-15 ई एम्स फाइटर जेट बनाना चाहती है या फिर एयर बस जो टाटा के साथ मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयर क्राफ्ट तैयार करना चाहती है। एयरो शो में भारतीय वायुसेना ने ब्रह्मोस सुपर सोनिक क्रूज मिसाइल से लैस सुखोई 30 एसके I को प्रदर्शत किया। वैसे तो सुखोई रूस में निर्मित है लेकिन हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लिमिटेड का इसमें सहयोग रहता है।
जो ब्रह्मोस मिसाइल सुखोई में लगी है उसे डीआरडीओ ने विकसित किया है। ये मिसाइल 400 किलोमीटर की दूरी पर अपने लक्ष्य पर अचूक निशाना लगाने में सक्षम है। पूरी तरह से स्वदेशी विमान तेजस आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। आसमान में वायुसेना की आंख कहे जाने वाले एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल एयर क्राफ्ट दिखाई दिया जो दूर से ही दुश्मन के विमानों की पहचान कर लेता है। भारतीय वायुसेना की सूर्य किरण एयरोवैश्कि टीम और सारंग हैलीकाप्टर ने भी करतब देखिये। इसके अलावा अमेरिकन बी-I लांसर एयरक्राफ्ट का जलवा भी दिखाई दिया।
आत्मनिर्भर भारत की उड़ान देखकर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने भी चीन और पाकिस्तान को चेतावनी दे दी कि भारत कई मोर्चों पर एक साथ चुनौती का सामना करने को तैयार है। आसमान में हो रही विमानों की गर्जना देशवासियों से वादा कर रही है कि भारत की सीमाएं पूरी तरह से सुरक्षित हैं। हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के इस आयोजन में अमेरिका भारत का प्रमुख साझेदार बना है। एयरो इंडिया 2021 में अमेरिका की भागीदारी हमारे तेजी से बढ़ते द्विपक्षीय रक्षा संबंधों और स्वतंत्र और खुले भारत प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों के साझा दृष्टिकोण को दर्शाती है। डीआरडीओ ने भी अपने 300 से ज्यादा उत्पाद और तकनीक दुनिया के सामने पेश की है। इसमें पहली स्वदेशी क्रूज मिसाइल निर्भय भी शामिल होगी। इस बेहद घातक मानी जाने वाली अमेरिका टॉमहॉक मिसाइल काे भारतीय संस्करण भी कहा जाता है।
हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लिमिटेड का इतिहास भारत के अब तक के विकास, भारत के वैमानिकी उद्योग के विकास को दर्शाता है। मैसूर सरकार के सहयोग से दूरदर्शी बलचंद हीराचंद द्वारा 23 दिसम्बर 1940 को बेंगलुरु में हिन्दुस्तान एयर क्राफ्ट कम्पनी के रूप में इस कम्पनी को शामिल किया गया था। दिसम्बर 1945 में इस कम्पनी को उद्योग एवं आपूर्ति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया।
एक जनवरी, 1951 में इसे रक्षा मंत्रालय में प्रशासनिक नियंत्रण में लिया गया था। एक अक्तूबर 1964 को भारत सरकार द्वारा जारी विलय आदेश के अन्तर्गत हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड और ऐरोनाटिक्स इंडिया लिमिटेड का विलय कर कम्पनी का नाम हिन्दुस्तान ऐरोनाटिक्स लिमिटेड रखा गया, जिसका मुख्य कार्य था विमानों, हैलीकाप्टरों, इंजनों तथा संबंधित प्रणालियों जैसे उड्डयानिकी उपकरणों और उपसाधनों का विकास िनर्माण, मुरम्मत और पुनर्कल्पन करना। हालांकि कई परियोजनाओं में विलम्ब भी हुआ।
एचएएल ने नए आयाम स्थापित कर दिए। आत्मनिर्भरता के लिए फ्लाई बाय वायर, फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम मल्टी मोड प्लस-हालैट रडार आदि पर काम करना जरूरी था। असली बाधा 1998 में आई जब अमेरिकी विमान निर्माता लॉकहीड मार्टिन की भागीदारी को भारत द्वारा दूसरे परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया में अमेरिकी प्रतिबंध के चलते समाप्त कर दिया गया लेकिन कठिनाइयों ने भारत को सीखा दिया कि आत्मनिर्भर भारत कैसे बनता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होने पर बल दिया। जो दुनिया भारत का मजाक उड़ाती थी, भारत माता के हाथ में कटोरा पकड़ कर परमाणु धमाकों को हास्यास्पद बनाती थी, वह अब एचएएल की उपलब्धियां देखकर दांतों तले अंगुली दबा रही है। देशवासियों को अब कोई संदेह नहीं है कि भारत अब चीन का मुकाबला करने में सक्षम है।