अदूरदर्शिता भरा है वीपीएन सर्विसेज को बंद करने का सुझाव
आज के इस डिजिटल युग में प्राइवेसी (निजता) और इंटरनेट की आजादी एक मौलिक अधिकार है
सर्वोच्च न्यायालय के अगस्त 2017 के एक फैसले के मुताबिक आज के इस डिजिटल युग में प्राइवेसी (निजता) और इंटरनेट की आजादी एक मौलिक अधिकार है. इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी), सरकारें और अमूमन सभी वेबसाइटें इंटरनेट से जुड़ी हमारी समस्त गतिविधियों पर निगरानी रखती हैं. हमारा निजी डेटा विभिन्न सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा प्रति क्षण इकट्ठा किया जाता है और साथ ही साथ इसे प्रोसेस भी किया जाता है.
मोबाइल और कंप्यूटर पर ब्राउज़िंग करते वक्त, ऑफिस में, कोई प्रॉडक्ट या सर्विस खरीदते वक्त, सरकार द्वारा, कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा, घूमते-फिरते वक्त भी! इसी डेटाबेस के जरिए कंपनियों को अपने वास्तविक ग्राहक वर्ग का पता चलता है. वहीं, सरकारें अवैध गतिविधियों पर लगाम कसने और साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए इंटरनेट पर नज़र रखती हैं. लेकिन, टेक्नोलॉजी कभी भी किसी के लिए नहीं रुकी है. लिहाजा प्राइवेसी, डेटा संरक्षण और इंटरनेट फ्रीडम के मद्देनजर अनेक वीपीएन सर्विसेज का आगमन हुआ.
आज ज़्यादातर कंपनियां और विभिन्न पेशों से जुड़े कर्मचारी न सिर्फ स्वयं की, बल्कि अपने स्रोतों की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एन्क्रिप्शन पर विश्वास करते हैं. इसलिए वे वीपीएन सर्विसेज के माध्यम से सिक्योर कम्युनिकेशन की सेवा को जारी रख पाने में सक्षम हुए हैं.
प्राइवेसी के लिए जरूरी हैं वीपीएन सर्विसेज
हाल ही में, गृह मामलों की स्थायी संसदीय समिति ने सरकार को भारत में वीपीएन सर्विसेज के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया है. समिति का कहना है कि वीपीएन सर्विसेज का इस्तेमाल कर साइबर अपराधी अपनी पहचान को छुपाने में कामयाब हो जाते हैं और गिरफ्तारी से बच जाते हैं. समिति के मुताबिक, भारत सरकार को इन सर्विसेज को स्थायी तौर पर प्रतिबंधित करने के लिए एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है.
समिति का यह कहना कि सिर्फ अपराधी ही वीपीएन सर्विसेज का इस्तेमाल करते हैं, पूरी तरह से गलत है. जिस तरह से फ़ायरवॉल आपके कंप्यूटर की डेटा को सुरक्षित रखता है, उसी तरह वीपीएन यानी वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क आपके डेटा को ऑनलाइन सुरक्षित रखता है. ऐसे में अगर सरकार वीपीएन पर प्रतिबंध लगाती है, तो इसका हमारी अर्थव्यवस्था और नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा. हमें यह समझने की जरूरत है कि वीपीएन न केवल निजी सूचना को चोरी होने से बचाता है, बल्कि साइबर अपराधों के अंदेशे को भी काफी हद तक दूर करता है.
कैसे काम करता है वीपीएन?
जब हम किसी वीपीएन सर्वर से कनेक्ट होते हैं, तब हमारा इंटरनेट ट्रैफिक एक इंफेक्टेड टनल से होकर गुजरता है, जिसे कोई नहीं देख सकता, न ही सरकारें और न ही कोई हैकर या साइबर अपराधी. जब हम बगैर वीपीएन किसी वेबसाइट पर विजिट करते हैं, तो हम इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी (आईएसपी) के जरिए साइट से कनेक्ट होते हैं. दरअसल, इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी हमें एक यूनिक आईपी एड्रेस देती है, जिससे वह हमारी ऑनलाइन गतिविधियों को ट्रैक कर सकती है.
चूंकि, इंटरनेट कनेक्शन मुहैया कराने वाली कंपनी ही हमारा पूरा ट्रैफिक हैंडल करती है, इसलिए वह उन वेबसाइटों का पता लगा सकती है, जिन पर हम विजिट करते हैं, जो कुछ देखते और डाउनलोड करते हैं. उसके पास हमारा निजी डेमोग्राफिक डेटा भी होगा, जिसका विश्लेषण कर वह हमारी पसंदीदा चीजों का विज्ञापन भी भेजती हैं. जब हम वीपीएन के जरिए इंटरनेट से कनेक्ट होते हैं, तो हमारे डिवाइस का जो वीपीएन क्लाइंट होता है, वह वीपीएन सर्वर के माध्यम से सुरक्षित कनेक्शन प्रदान करता है और इसकी फाइनल डेस्टिनेशन नहीं देख पाता.
ऐसे में, जब हम किसी वेबसाइट पर विजिट करते हैं तब इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनी हमारा मूल (ओरिजिनल) आईपी एड्रेस और लोकेशन नहीं देख पाती. इसलिए वीपीएन की सहायता से हम अपनी गोपनीयता बनाए रख सकते हैं.
सुरक्षित और गोपनीय संचार के लिए वीपीएन सर्विसेज पर निर्भर हैं ज्यादातर कंपनियाँ
महामारी कोविड-19 की वजह से अधिकतर कंपनियां वर्क फ्रॉम होम या रिमोट मोड में चली गई हैं और कर्मचारी घर बैठकर ही काम कर रहे हैं. ऐसे में वे असुरक्षित नेटवर्क पर रहकर काम नहीं कर सकते क्योंकि कंपनी के प्रतिस्पर्धी और हैकर्स थर्ड पार्टी टूल्स का इस्तेमाल कर गोपनीय जानकारी चुरा सकते हैं. यदि घर में कार्यरत कर्मचारी कंपनी के वीपीएन सर्वर से कनेक्टेड रहता है तो यह सुविधा उसके काम को आसान और सुरक्षित बना देती है.
वीपीएन सर्विसेज का उपयोग कोई नया चलन नहीं है. साइबर सुरक्षा के लिहाज से वीपीएन वर्षों से कंपनियों के लिए फ्रंटलाइन डिफेंस मैकेनिज़्म की तरह काम करता रहा है. इंडियन इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर के विकास का आधार भारत सरकार की डेटा संरक्षण और गोपनीयता का सम्मान करने वाली व्यवस्था ही है. नेशनल साइबर सिक्योरिटी कोर्डिनेटर के मुताबिक भारत प्रतिदिन तकरीबन 375 साइबर हमलों का सामना करता है.
इस स्थिति में, वीपीएन पर प्रतिबंध लगाने से भारत के इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी सेक्टर का एक बड़ा हिस्सा ठप पड़ जाएगा, इसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी और साइबर अपराधों में भी अपूर्व वृद्धि होगी!
गोपनीयता के लिए भी वीपीएन सर्विसेज बेहद जरूरी टूल
पत्रकारों की सुरक्षा, निजता और गोपनीयता के लिए भी वीपीएन सर्विसेज बेहद जरूरी टूल हैं. आईटी विशेषज्ञों के मुताबिक पत्रकार न सिर्फ खुद की, बल्कि अपने स्रोतों की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एन्क्रिप्शन पर भरोसा करते हैं. ऐसे में, उन्हें वीपीएन के जरिए सुरक्षित सूचना संचार की सेवा आसानी से मिल जाती है. गुमनामी के अलावा, वीपीएन उन्हें उन विदेशी अधिकार क्षेत्रों में उपलब्ध कंटेंट तक पहुंचने में सहायता करती है, जो भौगोलिक प्रतिबंधों के कारण हर लोकेशन पर उपलब्ध नहीं होती हैं.
साइबर अपराधों का बढ़ना निश्चित रूप से चिंता का एक प्रमुख विषय है. अगर वीपीएन सेवाएं बंद भी हो जाती हैं, तो इससे साइबर क्राइम पर लगाम लगाना आसान नहीं होगा. क्योंकि, शातिर साइबर अपराधी या हैकर्स गुमनाम रहने के लिए टेल्स ओएस या टोर ब्राउज़र जैसे विकल्पों की ओर रुख कर सकते हैं. ऐसे में, सिर्फ वीपीएन सर्विसेज को बंद कर मौजूदा साइबर सुरक्षा खतरों को नहीं खत्म किया जा सकता. निश्चित रूप से यह सोच गलत नहीं है कि वीपीएन का आपराधिक इस्तेमाल अवैध होना चाहिए.
लेकिन, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वीपीएन आम नागरिकों, पत्रकारों और कंपनियों की सुरक्षा, निजता और गोपनीयता के लिहाज से एक बेहद उपयोगी टूल है. हमें यह समझने की जरूरत है कि अगर हम कई ऑनलाइन कामों को अंजाम देने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो हम साइबर अपराधियों के लिए काफी सॉफ्ट टार्गेट हैं. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप, तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.