Story: ईमानदारी

Update: 2024-12-12 10:49 GMT
Vijay Garg: एक राहुल नाम का व्यक्ति था, स्वभाव से बहुत ही गंभीर था,उसकी पढाई पूरी हो चुकी थी लेकिन कोई नौकरी नहीं थी । दिन रात वो काम की तलाश में इधर – उधर भटकता रहता था । राहुल एक ईमानदार मनुष्य भी था इसलिये भी उसे काम मिलने में मुश्किल आ रही थी। दिन इतने ख़राब हो चुके थे कि उसे मजदूरी करनी पड़ी , रोजी रोटी के लिए उसके पास अब कोई विकल्प नहीं था । राहुल पढ़ा लिखा था जो उसके व्यवहार से साफ जाहिर होता था । एक दिन एक सेठ के घर राहुल मजदूरी कर रहा था , सेठ का ध्यान राहुल के उपर ही था , सेठ को समझ आ रहा था कि राहुल एक पढ़ा लिखा समझदार लड़का हैं लेकिन परिस्थती वश उसे ऐसे मजदूरी वाला काम करना पड़ रहा हैं । सेठ को अपने एक विशेष काम के लिए एक ईमानदार व्यक्ति की जरुरत थी, उसने राहुल की परीक्षा लेने की सोची ।
उसने एक दिन राहुल को अपने पास बुलाया और उसे पचास हजार रूपये दिए जिसमे सो-सो के नोट थे और कहा भाई तुम ईमानदार लगते हो ये पैसे मेरे एक व्यापारी को दे आओ | राहुल ने ईमानदारी से पैसे पहुँचा दिए । दुसरे दिन,व्यापारी ने राहुल को फिर से पैसे दिए इस बार उसने राहुल को बिना गिने पैसे दिए कहा खुद ही गिन लो और व्यापारी को दे आओ । राहुल ने ईमानदारी से काम किया ।सेठ पहले से ही गल्ले में पैसे गिनकर रखता था पर वो राहुल की ईमानदारी की परीक्षा लेना चाहता था ,रोज वो सेठ उसे पैसे देने भेजता था । राहुल की माली हालत तो बहुत ही ख़राब थी । एक दिन उसकी नियत डोल गयी और उसने सौ रूपये चुरा लिए जिसका पता सेठ को लग गया पर सेठ ने कुछ नहीं कहा । फिर से राहुल को रूपये देने भेजा । सेठ के कुछ न कहने पर राहुल की हिम्मत बढ़ गयी , उसने रोजाना चोरी शुरू कर दिया । सेठ को उम्मीद थी कि राहुल उसे सच बोलेगा लेकिन राहुल ने नहीं बोला । एक दिन सेठ ने राहुल को काम से निकाल दिया । वास्तव में सेठ अपने जीवन का एक सहारा ढूंढ रहा था, उसकी कोई संतान नहीं थी ,
राहुल
को भोला भाला जानकर उसने उसकी परीक्षा लेने की सोची थी , अगर राहुल सच बोलता तो सेठ उसे अपनी दुकान सौप देता। जब राहुल को इस बात का पता चला हैं तो उसे बहुत दुःख हुआ और उसने स्वीकारा कि कैसी भी परिस्थती हो ईमानदारी ही सर्वोच्च नीति होती हैं |
👉शिक्षा*
दोस्तों कैसा भी मुकाम आये व्यक्ति को ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए | ईमानदारी जीवन की वो कमाई हैं जो मुश्किल हैं लेकिन कभी गलत अंत नहीं
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल मलोट पंजाब
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