स्कूलों में चहल-पहल
दिल्ली और कई राज्यों में बड़ी कक्षाओं के स्कूल और कालेज खुल गए हैं। नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के स्कूल 14 फरवरी से खुल जाएंगे। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी स्कूल और कालेज स्टेप बाय स्टेप खोले जाएंगे।
आदित्य नारायण चोपड़ा: दिल्ली और कई राज्यों में बड़ी कक्षाओं के स्कूल और कालेज खुल गए हैं। नर्सरी से आठवीं कक्षा तक के स्कूल 14 फरवरी से खुल जाएंगे। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी स्कूल और कालेज स्टेप बाय स्टेप खोले जाएंगे। स्कूल परिसरों में रौनक लौट आई है। जैसे बाग-बगीचे पक्षियों की चहचाहट से गुंजायमान होते हैं और हमें प्रकृति का अहसास कराते हैं, उसी तरह शिक्षण संस्थानों के परिसर भी बच्चों के शोरशराबे और कंधों पर स्कूल बैग लटकाए एक-दूसरे के पीछे भागते देख हमें एक खुशी का अहसास दिलाते हैं। स्कूल-कालेज खुलने से जहां एक ओर शिक्षा उद्योग ने चैन की सांस ली है, वहीं दूसरी ओर अभिभावकों ने राहत महसूस की है। सभी भगवान से कामना कर रहे हैं कि कोरोना महामारी का कोई नया वैरिएंट न आए और उनके बच्चे स्वस्थ रहें। घर और बाहर का जनजीवन सामान्य हो क्योंकि महामारी से प्रभावित दो वर्षों में सभी ने बहुत मानसिक पीड़ा झेली है।देश में कोरोना की आमद 3 जनवरी, 2020 में केरल में मिले एक मरीज से हुई थी और धीरे-धीरे 2020 के खत्म होते-होते कोरोना ने देश में तबाही के कई मंजर दिखा दिए। इसका व्यापक असर न केवल उद्योगों और व्यापार पर पड़ा बल्कि इसका एक बड़ा असर स्कूलों पर, बच्चों की मानसिक स्थिति और उनकी मनोदशा पर भी पड़ा है। लगभग दो वर्षों से महामारी के कारण भारत के अधिकांश स्कूल बंद पड़े थे। बीच-बीच में स्कूल खोलने के प्रयास भी किए गए लेकिन हर बार महामारी के नए वैरिएंट ने बाधाएं खड़ी कर दीं। स्कूलों में छात्रों की सामान्य दिनचर्या जिसमें केवल क्लासरूम में प्रत्यक्ष पढ़ाई ही नहीं शामिल होती बल्कि स्पोर्ट्स, हॉबी विकास और अन्य शिक्षणेतर गतिविधियां भी होती हैं, सब बाधित हो गईं। लॉकडाउन के चलते बच्चे एक प्रकार से कैदखाने में कैद हो गए। महानगरों और शहरों में एकल परिवार जो छोटे-छोटे फ्लैटों में पहले से ही आइसोलेशन में जी रहे हैं, वे बहुत प्रभावित हुए। संयुक्त परिवारों और बड़े घरों और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को तो काफी राहत थी लेकिन एकल परिवार और कामकाजी दंपत्तियों के परिवार के बच्चों पर इस महामारी जन्य कैदखाने का बेहद प्रतिकूल असर पड़ा है।महामारी के दौरान देश में स्कूलों के बंद हो जाने के कारण पारम्परिक कक्षा आधारित शिक्षा प्रणाली एक अनियोजित आनलाइन शिक्षा प्रणाली के रूप में बदल गई। अनियोजित शिक्षा इसलिए कि न तो हम मानसिक रूप से और न ही तकनीकी रूप से आनलाइन शिक्षा की इस अचानक आ पड़ी चुनौती से निपटने के लिए तैयार थे। कोरोना काल में ही आनलाइन शिक्षा को लेकर शिक्षाविदों में एक बहस छिड़ गई थी कि क्या आनलाइन शिक्षा स्कूली कक्षाओं का विकल्प बन सकती है। यह सही था कि महामारी के दौरान शिक्षा व्यवस्था को किसी न किसी तरह जारी रखने के लिए हमें आनलाइन शिक्षा को अपनाना पड़ा। इसके कुछ फायदे भी रहे। प्राइवेट सैक्टर के स्कूलों में जहां संसाधनों का कोई अभाव नहीं था, उन्होंने तो आनलाइन कक्षाएं शुरू कर दीं। शिक्षकों ने भी विभिन्न तरह के टूल्स का उपयोग कर शिक्षा को आसान बनाने की कोशिश की। छात्र स्काइप और गूगल क्लासरूम और मोबाइल फोन के माध्यम से शिक्षक के सम्पर्क में आए और उन्होंने पढ़ना शुरू किया।संपादकीय :पिता के रास्ते पर चल रहे राजीव गुलाटी जीहिजाब की जरूरत क्योंदल-बदल न करने की 'शपथ'नवजोत सिद्धू :कटी पतंगजम्मू-कश्मीर में 'परिसीमन'...जरा आंख में भर लो पानीइस व्यवस्था ने छात्रों को न केवल डिजिटल रूप से प्रभावित किया बल्कि अमीर और गरीब में खाई पैदा कर दी। साधन सम्पन्न परिवारों ने अपने बच्चों के लिए मोबाइल,लैपटॉप उपलब्ध करवा दिए लेकिन मध्यमवर्गीय और निम्न आय वर्गीय लोगों के लिए परेशानी पैदा कर दी। हमने नई तकनीक को तो अपनाया लेकिन यह पाया गया कि बच्चे मोबाइल या लैपटाप पर समय तो ज्यादा व्यतीत कर रहे थे लेकिन वह सीख कम रहे थे। जबकि स्कूलों में बच्चे कम समय बिताते हैं किन्तु अधिक तेजी से सीखते हैं। जबकि घरों में स्वःअध्ययन पर अधिक समय देने के बावजूद पाठ्यक्रम उनके ज्यादा पल्ले नहीं पड़ रहा था। यह अंतर सामूहिक और एकल अध्ययन के गुण-दोष का है। डिजिटल रूप से प्रभावित बच्चों के सामूहिक और एकल अध्ययन के गुण-दोष का है। स्कूल बंद रहने से उनकी समग्र प्रगति, सामाजिक और सांस्कृतिक कौशल को धीमा कर दिया। स्कूलों में बच्चों की सीखने की क्षमता विकसित होती है, बल्कि बच्चे मानसिक रूप से हर चुनौती से निपटना भी सीखते हैं।एक रिपोर्ट के मुताबिक 97 फीसदी छात्र प्रतिदिन चार घंटे पढ़ाई और सीखने में व्यतीत करते हैं। इसके साथ स्कूल के अलावा छात्र होमवर्क, ट्यूशन और खेलकूद में भी समय व्यतीत करते हैं। दूसरे बच्चों के साथ खेलने पर वे सामाजिक व्यवहार सीखते हैं,जबकि आनलाइन शिक्षा नीरस और उबाऊ है। आनलाइन शिक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे और प्रौद्योगिकी की उपलब्धता की बात करें तो पता चलता है कि ऐसे अनेक क्षेत्र हैं जहां नेटवर्क है ही नहीं। ग्रामीण स्कूलों में स्कूल और शिक्षक तो हैं लेकिन उपकरण नहीं। अभिभावकों की भी आर्थिक क्षमता इतनी नहीं कि वे सभी टूल्स खरीद सके। कोरोना से दुनियाभर में 160 करोड़ बच्चों की शिक्षा पर असर पड़ा है। शिक्षा का स्वरूप बदलने से भी कोई ज्यादा फायदा नजर नहीं आया। कोरोना का प्रकोप कम होते ही स्कूल-कालेज खुल गए हैं लेकिन अभी भी हमें आनलाइन शिक्षा की छाया में रहना होगा, जब तक कि स्थितियां पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती।