ग्रामीण पर्यटन रणनीति गांवों के आर्थिक विकास के साथ हमारी विरासत को भी देगी एक नई ऊर्जा
भारत अपनी सबसे प्राचीन सभ्यता-संस्कृति और महान परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस गौरवशाली अतीत के निर्माण में अनादि काल से अनेक ऋषियों, मुनियों, दार्शनिकों, साधकों और शोधकर्ताओं ने अनवरत भ्रमण किया।
भारत अपनी सबसे प्राचीन सभ्यता-संस्कृति और महान परंपराओं के लिए जाना जाता है। इस गौरवशाली अतीत के निर्माण में अनादि काल से अनेक ऋषियों, मुनियों, दार्शनिकों, साधकों और शोधकर्ताओं ने अनवरत भ्रमण किया। भारत के दार्शनिक स्थलों और तीर्थ स्थलों ने दुनिया को अपनी ओर आकर्षित किया है। भ्रमण और यात्राएं स्वयं को भार से मुक्त करने का साधन मात्र नहीं हैं, बल्कि ज्ञान और आत्मखोज का उत्कृष्ट मार्ग भी हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में यात्रा के महत्व का विशद वर्णन है। हमारे महान ऋषियों ने भ्रमण का महत्व कुछ इस प्रकार बताया, 'राम वन गए इसलिए भगवान श्रीराम बन गए। महाभारत में अर्जुन अज्ञात क्षेत्रों की यात्रा पर गए और दिव्यास्त्र हासिल किए। केरल के शंकर ने खूब भ्रमण किया। चार मठों की स्थापना की तथा आदिगुरू शंकराचार्य बने। नरेंद्रनाथ ने भी चार वर्षों तक भारत का भ्रमण किया, जिससे उनको जीवन दृष्टि मिली। फिर वह स्वामी विवेकानद बन गए।'
देश आज राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मना रहा है। इस वर्ष सरकार का जोर ग्रामीण पर्यटन, स्थानीय समुदायों और स्थायी जीवन के विकास पर है। हमारे ग्रामीण क्षेत्रों ने सदियों से प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित किया है। आज दुनिया इसी को सस्टेनेबल लिविंग कहती है। भारत का पहला इको-गांव गुजरात का धज है। एशिया का सबसे स्वच्छ गांव मेघालय के मावलिननांग में है। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन ने हाल में तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव को सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांवों में से एक घोषित किया है। ये ग्रामीण पर्यटन के बढ़ते स्वरूप का प्रमाण हैं। हमारे ये गांव दुनिया को प्रेरणा दे रहे हैं। इस क्षमता को और अधिक बढ़ाने एवं ग्रामीण क्षेत्रों को नए अवसर देने के लिए कई प्रयास चल रहे हैं।
पहली बार भारत सरकार ने ग्रामीण पर्यटन रणनीति का खाका जारी किया है। यह रणनीति न केवल हमारे गांवों के आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी, बल्कि हमारी कला-संस्कृति और विरासत को भी एक नई ऊर्जा प्रदान करेगी। एक समग्र और टिकाऊ ग्रामीण पर्यटन रणनीति के माध्यम से हमें भारतीय आतिथेय को प्रकृति, समृद्ध हस्तकला, शिल्प और सांस्कृतिक विरासत के साथ जोडऩे में मदद मिलेगी।
पर्यटन मंत्रालय द्वारा आदिवासी और वनवासी समुदाय को विशेष अनुदान प्रदान किया जा रहा है। इसका उद्देश्य इन समुदायों की गरिमा को केंद्र में रखते हुए इनके अनुभव और गतिविधियों को पर्यटन से जोडऩा है। सरकार ग्रामीण पर्यटन के क्षेत्र में कार्यशक्ति, कार्यशैली और कार्यकौशल को सुदृढ़ करने की दिशा में भी कार्यरत है। सरकार का उद्देश्य समुदायों को कुशल बनाना और उन्हें पर्यटन शृंखला से जोड़कर आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है, ताकि वे अपना इको होम स्टे चला सकें, भंडारण सेवाएं संचालित कर सकें, गाइड, टूर आपरेटर आदि के रूप में कार्य कर सकें। प्रधानमंत्री मोदी का मानना है कि 'पर्यटन स्थानीय समुदायों को कल्याण और समृद्धि प्रदान कर सकता है, जो सीधे तौर पर नौकरियों और विकास के अवसरों से लाभान्वित होते हैं।'
पिछले सात वर्षों में देश में पर्यटन सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कई योजनाएं लागू की गई हैं। 'स्वदेश दर्शन योजना 1.0' के तहत देश में एक मजबूत पर्यटन पारिस्थितिकी तंत्र का मार्ग प्रशस्त करने के लिए 5,588.44 करोड़ रु जारी हुए हैं। इससे ग्रामीण और उसके आसपास के क्षेत्रों में इको-सर्किट, हिमालयन सर्किट, डेजर्ट सर्किट, ट्राइबल सर्किट और वाइल्डलाइफ सर्किट जैसी ग्रामीण पर्यटन परियोजनाओं का विकास किया जा रहा है। स्वदेश दर्शन योजना का अगला संस्करण ईको-पर्यटन परियोजनाओं को और सशक्त करेगा। हालांकि इस क्षमता को पूरी तरह दोहन करने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ-साथ केंद्र एवं राज्य सरकारें तथा निजी हितधारकों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। इसके मद्देनजर सरकार ने उद्यमियों और युवाओं से गांवों को अनुकरणीय ग्रामीण पर्यटन केंद्रों के रूप में तैयार करने के लिए आग्रह किया है। ग्रामीण इलाकों में पर्यावरण के अनुकूल होटल स्थापित करने और स्थानीय समुदायों को अपनी विशेषज्ञता को बढ़ावा देने की आज जरूरत है। आज विश्व पर्यटन समुदाय परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा है। पर्यटक समुदाय फिर से यात्रा आरंभ करने और तनाव को कम करने पर पुनर्विचार कर रहा है। आज दुनिया को एक औद्योगिक माडल से अधिक समुदाय उन्मुख और पारस्परिक रूप से लाभप्रद पारिस्थितिकी तंत्र की जरूरत है। हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और हमारे ग्रामीण इलाकों के पारंपरिक ज्ञान के कारण भारत को इस मामले में दुनिया भर में बढ़त हासिल है। हमें अपनी इस क्षमता को उजागर करने और अपनी युवा पीढ़ी को विरासत से अवगत कराने के लिए आगे आना चाहिए।
वर्ष 2019 के अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी भारतीयों को 2022 तक कम से कम 15 स्थानों पर जाने का आह्वान किया था। दुर्भाग्य से कोविड महामारी के कारण यह सभंव नहीं हो सका। कोरोना का नया स्वरूप ओमिक्रोन जल्द ही समाप्त हो सकता है और हमें 2022 में ही पर्यटन को फिर से शुरू करने का अवसर मिल सकता है। पर्यटकों को अद्भुत ग्रामीण भारत का पता लगाने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। उन्हें ऋग्वेद के इस कथन से प्रेरणा लेनी चाहिए-'भ्रमण वाले के पैर फूल की तरह होते हैं।