हादसों की सड़क

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुए हादसे से एक बार फिर सड़क सुरक्षा को लेकर प्रश्न गाढ़े हुए हैं।

Update: 2020-11-23 16:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुए हादसे से एक बार फिर सड़क सुरक्षा को लेकर प्रश्न गाढ़े हुए हैं। शुक्रवार देर रात को लखनऊ-प्रयागराज मार्ग पर एक तेज रफ्तार निजी वाहन सड़क किनारे खड़े ट्रक से टकरा गया, जिसमें सात बच्चों समेत कुल चौदह लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। वाहन में सवार लोग एक विवाह समारोह से लौट रहे थे। जाहिर है, वाहन चालक या तो नशे में रहा होगा या फिर सड़क पर ट्रक कुछ इस तरह खड़ा होगा कि उसका अंदाजा लगाने और वाहन को नियंत्रित कर पाने में विफल हुआ होगा, जिससे यह हादसा हो गया होगा।

इस हादसे पर राज्य के मुख्यमंत्री ने शोक जताया है, मृतकों के परिजनों को मुआवजे की घोषणा की है और उत्तर प्रदेश पुलिस ने ऐसे अंधेराग्रस्त और खतरनाक स्थानों पर चेतावनी वाले बोर्ड लगाने का भरोसा दिलाया है। राष्ट्रीय राजमार्गों पर हादसे जैसे रोज की बात हैं। इन्हें लेकर लंबे समय से चिंता जाहिर की जा रही है और सड़क सुरक्षा के इंतजाम करने की तरफ राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है। मगर इस दिशा में अभी तक कोई अपेक्षित कदम नहीं उठाया जा सका है।

पश्चिमी देशों की नकल पर हमारे यहां भी ऐसी सड़कों के विस्तार पर जोर दिया जाने लगा। माना गया कि इससे माल ढुलाई और सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं में गति आएगी। निस्संदेह गति आई भी। मगर राष्ट्रीय राजमार्गों पर जैसी सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए, वह अभी तक हमारे यहां नहीं हो पाई। निजी कंपनियों को जिम्मेदारी सौंप कर या फिर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर सड़कों के निर्माण की गति देकर आधारभूत संरचना को मजबूत करने का प्रयास किया गया। इन सड़कों के निर्माण की एवज में जगह-जगह टोल नाका भी लग गए, जिससे कर वसूल कर सड़क बनाने वाली कंपनियां अपनी लागत की भरपाई करती हैं।

कायदे से इन कंपनियों की जिम्मेदारी है कि वे अपने हिस्से की सड़कों पर सुरक्षा इंतजाम करें। मगर वे इस मामले में लापरवाह ही देखी जाती हैं। जगह-जगह सड़कों और पुलों में टूट-फूट बनी रहती है, सड़कों के किनारे बाड़ या अवरोध नहीं होते, जिससे बरसात आदि के समय गाड़ियों के पहियों को फिसलने से रोका जा सके। बीच-बीच में खतरनाक कटाव मौजूद हैं, जहां से लोग और वाहन सड़क पार करते रहते हैं। कई जगह खतरनाक मोड़ों वगैरह से संबंधित जानकारियां नहीं लगी होती हैं। इसके चलते भी सड़क दुर्घटनाएं अक्सर हो जाती हैं।

भारत में इतनी मौतें कैंसर जैसे असाध्य रोग से नहीं होतीं, जितनी सड़क दुर्घटना से हो जाती हैं। इस पर काबू पाने के लिए परिवहन नियमों को कड़ा बनाया गया, रफ्तार आदि से संबंधित जुर्माने बढ़ाए गए, मगर उनका असर नजर नहीं आता। राजमार्गों पर गतिसीमा निर्धारित नहीं होती, इसके चलते बहुत सारे युवा उन पर तेज रफ्तार वाहन चलाना अपनी शान समझते हैं।

किसी आपात स्थिति में तेज गति वाहनों को संभालना मुश्किल होता है, इसलिए भी अनियंत्रित होकर वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते और लोगों की मौत का कारण बनते हैं। राजमार्गों पर बने टोल नाका और दूसरे अवरोधों पर कर तो वसूले जाते हैं, पर नशा करके गाड़ी चलाने वालों की निशानदेही और उन पर कार्रवाई की पहल नहीं होती। जबकि देर रात को हुई अनेक दुर्घटनाओं में नशा करके गाड़ी चलाना मुख्य कारण पाया गया है। जब तक इन कमजोर पहलुओं को दुरुस्त करने का प्रयास नहीं किया जाता, सड़क दुर्घटनाओं पर काबू पाना मुश्किल बना रहेगा।

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