भारतीय रिजर्व बैंक : दोहरे संकट के साथ आर्थिक विकास को गति देने की चुनौती, उम्मीद कायम

आपातकालीन फंड के अच्छे संचय के साथ ऐसा करने से किसी भी मंदी को धैर्य से संभालने में मदद मिलेगी।

Update: 2022-04-09 02:05 GMT

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने माना है कि आर्थिक विकास की स्थिति अब भी बहुत नाजुक है और वैश्विक विकास को चुनौती मिल रही है। इसने वर्ष 2022-23 के लिए जीडीपी विकास दर के अनुमान को घटा दिया है और अनुमानित मुद्रास्फीति की दर बढ़ा दी है। कोविड महामारी के असर और रूस-यूक्रेन युद्ध की चुनौतियों का सामना करने के लिए अर्थव्यवस्था के टिकाऊ विकास को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसने अपने उदार नीतिगत रुख को बनाए रखा है और इस बात पर जोर दिया कि रिजर्व बैंक मानक नीति ढांचे से प्रभावित नहीं होगा, बल्कि अपनी खुद की रणनीति बनाएगा।

रिजर्व बैंक का यह विकास समर्थक रुख बहुत विश्वसनीय है, क्योंकि भारत को अपने आर्थिक सुधार को मजबूत और टिकाऊ बनाने के लिए नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है। जहां तक वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात है, वर्ष 2022 में युद्ध, महामारी, मंदी- सब कुछ है और यह अपने आप में काफी डरावना है। बेशक आगे कई संभावनाएं हैं, लेकिन जोखिम भी बहुत ज्यादा हैं। 2020 का दशक अप्रत्याशित जोखिमों का समय रहा है, जिससे वित्तीय बाजारों में बड़ी उथल-पुथल मची।
मार्च 2020 के अभूतपूर्व मौद्रिक और राजकोषीय उपायों ने तेजी से सुधार करने में मदद की, लेकिन अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की गति सभी देशों, क्षेत्रों और आबादी समूहों में असमान रही है। ओमिक्रॉन वैरिएंट द्वारा और अनिश्चितता लाने से पहले दुनिया राहत और माहौल 'सामान्य' होने की उम्मीदों के साथ वर्ष 2021 को अलविदा कह रही थी। 2021 के अंत में, हम में से अधिकांश लोग अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत गलत कदमों को बाजारों के लिए सबसे बड़ा जोखिम मान रहे थे।
मुद्रास्फीति हठीली साबित हो रही थी, जिसे फेड अध्यक्ष जिम पॉवेल ने स्वीकार किया था। ऐसा माना गया कि, ब्याज दरों में वृद्धि की जरूरत थी और फेड की 90 खरब डॉलर की बड़ी बैलेंस शीट को कम करने की जरूरत थी। इनके मुकाबले, बहुत कम ब्याज दरें, कॉरपोरेट की मजबूत आय वृद्धि, इक्विटी में खुदरा निवेशकों की ओर से निरंतर प्रवाह और अमेरिकी उपभोक्ताओं की ताकत अमेरिकी बाजारों के लिए आशावादी दृष्टिकोण बनाने वाले कारक थे।
यूक्रेन के चारों तरफ रूसी सेना के जमावड़े को दुनिया ने बड़ी शालीनता के साथ देखा, जब यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि 19वीं सदी के खतरे 21वीं सदी के औद्योगिक यूरोप के केंद्र में देखने को मिलेंगे। पिछले भू-राजनीतिक संकटों को वित्तीय बाजारों ने काफी अच्छी तरह से स्वीकार कर लिया था। इसलिए पश्चिम और रूस पूरी तरह से अलग-अलग रणनीतियों का अनुसरण कर रहे थे, जबकि बाजार इस संपूर्ण कवायद को ऐसे सैन्य खतरे के रूप में देख रहा था, जो दोनों पक्षों की बातचीत और समझौतों के साथ खत्म हो जाएगा।
हम सब कितने गलत थे! जैसे ही रूसी सेना ने 24 फरवरी को यूक्रेन में प्रवेश किया, बाजार जोखिमों के अधीन नीचे चला गया। रूसी बाजार और मुद्रा सबसे ज्यादा प्रभावित हुई, क्योंकि प्रतिबंधों की घोषणाओं ने भू-राजनीतिक जोखिम को भू-आर्थिक वास्तविकता में बदल दिया। रूस के मूल्यवान विदेशी मुद्रा भंडार से 300 अरब डॉलर की कटौती हो गई। प्रतिबंधों के चलते रूस से वस्तुओं की आपूर्ति में बाधा की आशंका के कारण तेल, गेहूं, उर्वरक, निकेल, पैलेडियम, तांबा, अल्यूमीनियम और अन्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ गईं।
दुनिया भर के शेयर बाजारों में गिरावट आई। बेहतर प्राप्तियों के पूर्वानुमान से ब्राजील जैसे जिंस निर्यातकों ने अपने बाजारों में तेजी देखी, पर ये अपवाद थे। फंड मैनेजरों और निवेशकों का जैसे आदर्श वाक्य था-पहले बेचो, फिर सोचो। सबसे खराब स्थिति में परमाणु युद्ध और संघर्ष के तीसरे विश्व युद्ध के रूप में फैलने की आशंका, पश्चिम के रूस के साथ उलझने को चीन द्वारा ताइवान पर हमले के अवसर के रूप में देखने को विश्लेषकों ने इसके पीछे का कारक माना। इसलिए यूक्रेन संघर्ष का मानवीय और आर्थिक प्रभाव वित्तीय बाजारों के उथल-पुथल में तब्दील हो गया।
हालांकि, संघर्ष के एक महीने के भीतर, दुनिया भर में बाजार 24 फरवरी से पहले के स्तर पर पहुंच गए थे। फिलहाल हम उम्मीद करते हैं कि बाजारों में अधिकांश ज्ञात जोखिमों का अनुमान लगा लिया गया है। लेकिन जो चीज हमें परेशान कर रही है, वह है बाजार की जटिल अनुकूलन प्रणाली, जिसमें कई चीजें सक्रिय होती हैं, जो पूरी तरह से अप्रत्याशित परिणाम पैदा करती हैं। वर्ष 2008 के बाद के निवेशकों की एक पीढ़ी आसान मौद्रिक नीतियों पर निर्भर हो गई है। बहुत तेजी या बहुत नियंत्रण की गलत नीतियों के चलते रूस का अप्रत्याशित उदाहरण अन्य क्षेत्रों में संक्रमण में तेजी ला सकता है।
या तेल की कीमतें और बाधित आपूर्ति शृंखला के चलते मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी उपभोक्ता और कॉरपोरेट भावना को उस स्तर तक नुकसान पहुंचा सकती है, जहां यह बाजार के नजरिये को प्रभावित करती है। वर्ष 2008 के बाद शेयर बाजारों की स्थिति शानदार रही है। यह उन सफलताओं को ध्यान में रखते हुए अपरिहार्य वैश्विक सुधारों के लिए तैयार होने का समय है, जो 12 से 24 महीनों में ठीक हो जाएंगे। बाजार विश्लेषक अब भी आश्वस्त नहीं हैं कि मंदी को टाला जा सकेगा।
ड्यूश बैंक 2023 तक अमेरिकी मंदी की भविष्यवाणी कर रहा है, क्योंकि अमेरिकी फेड 2023 की शुरुआत में ब्याज दरों को बढ़ाकर 3.5 फीसदी तक कर देगा और अगले दो वर्षों के लिए हर साल अपनी बैलेंस शीट में 11 खरब डॉलर की कटौती कर रहा है। दूसरी ओर, गोल्डमैन सैक्स अमेरिकी परिवारों और अमेरिकी कॉरपोरेट्स, दोनों के पास भारी नकदी बचे होने के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सुचारू रूप से चलने की भविष्यवाणी कर रहा है। इसलिए आगे क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी मुश्किल है।
हम बस इतना जानते हैं कि कोविड महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष ने नीति निर्माताओं और बाजारों को आश्चर्यचकित कर दिया है। अनिश्चितता अभी बनी रहेगी और निवेशकों को इसके लिए तैयार रहना होगा। लंबी अवधि के निवेशकों के लिए, गुणवत्तापूर्ण कंपनियों में निवेश करने का यह उतना ही अच्छा समय है। लेकिन जागरूकता और आपातकालीन फंड के अच्छे संचय के साथ ऐसा करने से किसी भी मंदी को धैर्य से संभालने में मदद मिलेगी।

सोर्स: अमर उजाला

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