महामारी से निपटने के लिए हुए प्रयासों को दर्ज करने से भविष्य में बहुत कुछ सीखा जा सकेगा

यह प्रथा अंग्रेज हुकूमत के सिविल सेवा अधिकारियों से लेकर आजादी के बाद भी काफी अर्से तक जिलाधीशों की कार्यप्रणाली

Update: 2021-06-02 09:07 GMT

डॉ. अभय सिंह यादव। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जिलाधीशों की एक बैठक में कोरोना काल की महत्वपूर्ण घटनाओं एवं अनुभवों को जिला गजट में रिकॉर्ड करने का आवाहन एक भविष्योन्मुखी सोच है। वैसे भी यह प्रथा अंग्रेज हुकूमत के सिविल सेवा अधिकारियों से लेकर आजादी के बाद भी काफी अर्से तक जिलाधीशों की कार्यप्रणाली का हिस्सा रही है। हर जिलाधिकारी अपने अनुभव की एक डायरी लिखता था तथा कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं को न केवल जिला गजट में स्थान मिलता था, अपितु हर उत्तरगामी अधिकारी के लिए यह एक जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत था। परंतु धीरे-धीरे यह प्रथा खत्म हो गई। प्रधानमंत्री का आवाहन संभवत: इसे पुनर्जीवित करने में सहायक बने।

कोरोना महामारी मानव जीवन की एक असामान्य घटना है जो मनुष्य के जीवन में एक चुनौती के रूप में सामने आई है। विज्ञान के अभूतपूर्व आविष्कारों के बावजूद मनुष्य को इस प्रकोप ने अपना विकराल स्वरूप दिखाया जो इस पीढ़ी के मानस पटल पर जीवन पर्यंत एक वीभत्स घटना के रूप में अंकित रहेगा। इस महामारी का अनुभव एवं प्रभाव व्यापक एवं बहुमुखी है। अत: इसका अवलोकन, विवेचन, मूल्यांकन एवं संकलन जनहित में एक दूरगामी कदम साबित होगा। प्रधानमंत्री का आवाहन कि हमें इस संकट से निपटने में जिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा, जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और जिन समाधानों ने इससे लड़ने के हमारे संकल्प को मजबूत किया है, उन सबको ईमानदारी से संकलित करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है, ताकि भविष्य की ऐसी घटनाओं से निपटने में यह संकलन महत्वपूर्ण मार्गदर्शन का एक स्रोत बन सके.
इस समस्त घटनाक्रम में जिलाधीश के अतिरिक्त भी केंद्र एवं राज्य सरकारों के विभागों समेत अनेक ऐसे व्यक्ति, वर्ग एवं समूह हैं जिन्होंने इस महामारी को नजदीक से देखा है। ऐसे अनेक संकट, समस्याएं एवं व्यवधान उनके समक्ष आए हैं जिनको न केवल सहन किया, अपितु उनका समाधान भी तलाशा है। भविष्य के लिए ये अनुभव अमूल्य संसाधन हो सकते हैं। कुछ ऐसे अनुभव देशव्यापी रहे हैं जिसमें सहयोग एवं व्यवधान दोनों ही शामिल हैं। कुछ अनपेक्षित घटनाएं एवं व्यवधान भी ऐसे हैं जिन्होंने सरकारों के समक्ष चुनौती को और अधिक गंभीर बना दिया। कुछ ऐसे विचार एवं समाधान भी हैं जिन्होंने संकट से बाहर जाने का मार्ग प्रशस्त किया। अत: उनके द्वारा दिया गया विवरण अधिक यथार्थवादी व उपयोगी होगा।
लिहाजा ऐसे सभी भागीदारों द्वारा अपने अपने स्तर पर ऐसे अनुभवों का संकलन करना सार्थक हो सकता है। इससे न केवल भविष्य के लिए इस अभूतपूर्व संकट के अनुभव से सीखने को मिलेगा, अपितु हर ऐसे विभाग और संस्था को स्वयं का आकलन करने का भी एक अवसर मिलेगा। इस संकट से लड़ने में अधिकांश सहभागियों ने अपना सर्वस्व लगाने का प्रयास किया है। परंतु इस आशंका से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि शीर्ष स्तर तक बहुत सारी महत्वपूर्ण सूचनाएं व्यवस्थाजनित व्यवधानों के कारण पहुंच ही नहीं पाई। हर सरकार अपने स्तर पर जनहित में अधिकांश फैसले लेने का प्रयास करती है। परंतु कई बार नीतिगत फैसलों में निहित जनकल्याण आखिरी व्यक्ति तक पहुंचने से पहले ही विभिन्न खामियों के कारण अपनी चमक खो देता है। इस महामारी के दौरान भी ऐसी आशंकाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता। अत: इस दौरान किए गए प्रयासों का वास्तविक मूल्यांकन खुले मन से करना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक विभाग द्वारा इस दौरान निभाई गई जिम्मेदारियों का ईमानदार आकलन विभाग के भविष्य के लिए भी एक अमूल्य धरोहर होगा। इस महामारी काल का एक और पक्ष भी अभूतपूर्व है जिसका चिंतन किया जाना आवश्यक है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में जितनी भी आपात स्थिति देश के समक्ष आई हैं, वे देश के दुश्मनों के साथ युद्ध के समय की रही हैं। इस देश का एक गौरवमय इतिहास रहा है कि हमने आपात स्थिति में हमेशा एकजुटता का परिचय दिया है। हर बार ऐसी स्थिति में समस्त राष्ट्र देश के सत्तासीन नेतृत्व के पीछे एकजुट खड़ा दिखाई दिया। परंतु दुर्भाग्यवश वर्तमान आपातकालीन स्थिति में जो पूर्वगामी आपात स्थितियों से कई मायनों में अधिक गंभीर एवं चुनौतीपूर्ण है, देश इस गौरवमयी परिपाटी से भटक गया और उस समय भी राजनीति हो रही है, जब एकजुट होकर देश को बचाने के लिए सबको मिलकर प्रयत्न करना चाहिए। यहां किसी पक्ष या विपक्ष की बात करने की अपेक्षा इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि इस आपातकाल में राजनीति से बचा जा सकता था। राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर एकजुट होकर इस आपदा से और अधिक प्रभावी ढंग से लड़ा जा सकता था।
आम आदमी में भ्रम के कारण वैक्सीन की स्वीकार्यता में हुए विलंब समेत महामारी के नाम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के विरुद्ध हुए दुष्प्रचार से भी बचा जा सकता था। अत: हम सबको इस दौरान अपने अपने आचरण का ईमानदारी से विवेचन एवं आकलन करने की आवश्यकता है। इस आकलन में सभी पक्षों को ईमानदारी और निष्पक्षता से अपने अंदर झांकना होगा। हमारी अंतरात्मा को हमारी कमजोरियों से साक्षात्कार करना होगा, तभी हम भविष्य में स्वयं को अपनी कमजोरियों से बाहर निकालने में सफल होंगे।
विधायक (नांगल चौधरी), हरियाणा
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