Pakistan Political Crisis : इमरान खान रहें या ना रहें? खुद पाकिस्तान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
खुद पाकिस्तान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता
आशीष मेहता।
पाकिस्तान (Pakistan) में सिस्टम की विफलता छाई हुई है, क्योंकि इमरान खान (Imran Khan) प्रधानमंत्री के रूप में पद संभालने के तीन साल और सात महीने बाद, नेशनल असेंबली में विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रहे हैं और विपक्ष की जीत निश्चित है. सत्ताधारी, तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के दो दर्जन सांसदों के विपक्ष के पाले में चले जाने से एक प्रमुख सहयोगी MQM-P के बाद प्रधानमंत्री भी अपनी कुर्सी खोने वाले हैं. यह इमरान खान द्वारा पद छोड़ने की राजनीतिक नैतिकता का ही सवाल नहीं है. बल्कि इसमें पाकिस्तान में सत्तारूढ़ अभिजात्य वर्ग का आचरण शामिल है, जिसने किसी भी प्रधानमंत्री को अपना कार्यकाल पूरा करने नहीं दिया.
69 वर्ष के पूर्व क्रिकेटर, जिसने 1992 में बतौर कप्तान अपने देश को क्रिकेट वर्ल्ड कप दिलाया था, वे देश को एक बदतर आर्थिक, कूटनीतिक और आंतरिक उठापटक के हालात में छोड़ने वाले हैं. विरोधाभास यह है कि खान के सत्ता छोड़ने के बाद विपक्ष के पास भी कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो इस देश को संकट के बाहर करने का वादा कर सके. न ही उसके बड़े पड़ोसी भारत को इसका अंदाजा है, जिससे पाकिस्तानी 'डीप स्टेट' नफरत तो करता है, लेकिन उसकी आर्थिक और कूटनीतिक ऊंचाई की रफ्तार की चाहत भी रखता है. 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान एक इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वे और यहां तक कि दुनिया के दूसरे नेता भी यह नहीं जानते कि पाकिस्तान में किससे बातचीत की जाए, उनके प्रधानमंत्री से, आईएसआई के मुखिया से या फिर पाकिस्तानी सेना के प्रमुख से.
कोई जादुई छड़ी नहीं
पाकिस्तान के विपक्ष के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि इमरान खान के बाद क्या होगा? देवबंदी मौलाना फजल-उर-रहमान के नेतृत्व वाले 11-पार्टी की PDM (पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट) के पास कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो देश को खस्ताहाल से बाहर निकाल सके. पाकिस्तान पर 40 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज है, उत्तर और केंद्रीय पाकिस्तान में जेहादी अपनी सेना को परेशान कर रहे हैं, दक्षिण-पश्चिम में बलूच अलगाववादियों ने अपने हमले तेज कर दिए हैं.
माना जा रहा है कि PDM ने मध्यावधि चुनाव पर सहमति जताई है. फिर भी उसके पास कोई वैकल्पिक योजना नहीं है. PML-N के शहबाज शरीफ, जो अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाई हैं, उन्हें अगला प्रधानमंत्री माना जा रहा है. लेकिन यह साफ नहीं है कि वह एक कार्यवाहक सरकार का नेतृत्व करेंगे या संयुक्त विपक्ष के नेता बनेंगे, जिसमें जरदारी, बिलावल भुट्टो और उनके पिता, पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी शामिल हैं.
आम पाकिस्तानियों के लिए, यह ऐसा है जैसे 'जितनी चीजें बदलती हैं, उनके लिए हालात वैसी ही रहती हैं.' उनके लिए यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि कौन बेहतर है, शरीफ या जरदारी. जहां तक इमरान की पार्टी पीटीआई का सवाल है, पाकिस्तानी केवल अपने भाग्य पर रो सकते हैं क्योंकि उन्होंने खान को लेकर 'रियासत-ए-मदीना' की उम्मीद लगाई थी, जो अब पूरी तरह से बिखर गई है.
सही मसला की पहचान करें
पाकिस्तानी नेताओं के लिए एक खास वाक्य है जो बार-बार रिपीट होता है, "आखिर मसला क्या है?" ये वे मसले हैं: लगभग 75 वर्षों से, देश ने मजबूत संस्था तक का निर्माण नहीं किया, यह कोई भी उत्कृष्ट चीज बनाने से इनकार करता है (कपड़ा एक अपवाद है), इसके पास ऐसी कोई शिक्षा व्यवस्था नहीं है जिससे युवा प्रतिभाएं पैदा की जा सकें और उन्हें प्रोत्साहित किया जा सके. इस देश ने बेपरवाह आयात किया है और स्थानीय उद्योग को प्रोत्साहन देने का कोई प्रयास नहीं किया.
हालांकि, पाकिस्तानी सेना के पास किसी चीज की कोई कमी नहीं है. पाकिस्तान सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 37 ट्रिलियन (8. 78 बिलियन डॉलर) पाकिस्तानी रुपये के रक्षा बजट की घोषणा की है. 2020-21 के खर्च की तुलना में यह 6.2 फीसदी अधिक है. इस बीच, एक अमेरिकी डॉलर 180 पाकिस्तानी रुपये के बराबर हो चुका है, कई विशेषज्ञों का अनुमान है कि यह 200 रुपये को पार कर जाएगा. जब भारत ने फ्रांसीसी राफेल फाइटर जेट खरीदे, तो पाकिस्तानी वायु सेना ने तुरंत चीनी J-10 C का ऑर्डर दे दिया. पाकिस्तान ने 11 मार्च को इसने इन चीनी जेट्स को अपने सेना में शामिल किया था. कोई नहीं जानता कि पाकिस्तानियों ने कैसे चीन को भुगतान किया है, या कभी भुगतान करेंगे भी या नहीं, या चीनी की शर्तें क्या हैं.
चीन ने पाकिस्तान पर छुपी हुई शर्तें लगाई हैं, खास तौर पर मरणासन्न चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में शामिल बिजली परियोजनाओं पर. यह बात तब सामने आई जब अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), पाकिस्तान के लिए एक प्रमुख लैंडर- ने उससे चीनी ऋणों का विवरण मांगा और उनकी शर्तों की जानकारी मांगी. बाद में पाकिस्तानी मीडिया ने यह बात कही कि ये लोन कमर्शियल दरों पर ली गई हैं, जो कि ग्रांट के तहत दिए जाने वाले लोन की दरों से कहीं ज्यादा है. CPEC पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (जिसे भारत अपना मानता है) से होकर गुजरता है और बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर खत्म होता है. इसका भाग्य अनिश्चित है क्योंकि चीनी बिजली कंपनियां पाकिस्तानियों को उनके बकाए का भुगतान करने पर जोर दे रही हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)