राष्ट्रीय बालिका दिवस: क्यों बढ़ रहा है बच्चियों पर अत्याचार, आखिर कौन है जिम्मेदार?

आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है. इस दिन हमारे आसपास हाल ही की कुछ घटनाओं को देखें

Update: 2022-01-24 13:54 GMT

आज राष्ट्रीय बालिका दिवस है. इस दिन हमारे आसपास हाल ही की कुछ घटनाओं को देखें. मध्यप्रदेश के होशंगाबाद के शोभापुर गांव में 5 साल की बच्ची का रेप कर उसकी हत्या कर दी. मासूम का शव घर की छत पर खून से लथपथ हालत में मिला. पोस्टमार्टम में सामने आया कि पहले मासूम के साथ रेप किया फिर गला दबा दिया. बच्ची के गले पर दबाने और पीट पर नाखून के निशान मिले हैं.

27 दिसम्बर को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक घटना हुई. पीड़ित लड़की को उसके एक पड़ोसी और दो ट्रक चालकों ने अपने वाहन में उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद ले जाने का प्रस्ताव दिया और बाद में रास्ते में तीनों ने उसके साथ कई दफा बलात्कार किया. पुलिस अधीक्षक ने बताया कि इस डर से तीनों ने लड़की का गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी और लाश को चंबल नदी में फेंक दिया गया कि वह अपने परिवार के सदस्यों को घटना के बारे में बता देगी.
मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले में तेंदुआ थाना क्षेत्र में इसी 14 जनवरी को आठ वर्षीय बच्ची से उसके पड़ोसी ने बलात्कार किया और बाद में गला दबाकर उसकी हत्या कर दी. यह घटना उस वक्त हुई जब उसके परिजन उसे घर छोड़कर पास ही लगे संक्रांति मेले में गए थे. जब वे वापस घर आए तो बच्ची घर से गायब मिली. 15 जनवरी को उसकी लाश एक कूप में पाई गई. आरोपी ने बाद में पुलिस को बताया कि बच्ची को टॉफी दिलाने के बहाने अपने घर ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया और फिर भेद खुलने के डर से उसकी गला दबा कर हत्या करके शव को गेहूं के कूप में छुपा दिया.
हाल ही में बच्चियों के साथ अनाचार की जो घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं, उसमें तकरीबन हर घटना के बाद हत्या का एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है. यह भी किसी मनोवैज्ञानिक अध्ययन के बाद ही बहुत विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि क्या इसकी वजह बलात्कार के बाद फांसी की कठोरतम सजा के प्रावधान के चलते हुआ है या इसके पीछे कई और वजहें हैं, लेकिन इतना साफ तौर पर कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश सहित पूरे देश में बलात्कार की घटनाओं की रोकथाम तब भी नहीं हो पाई है जब फांसी जैसी सख्त सजा का प्रावधान कर दिया गया है, ऐसे में अब और क्या किया जाए ? कैसे समाज की बेटियों को दरिंदों से बचाया जाए.
यदि एनसीआरबी के आंकड़ों को देखें तो साल 2020 में हर घंटे लगभग 3 बच्चियों के साथ अत्याचार की घटनाएं सामने आती रही हैं. ऐसे भयावह आंकड़े पहले भी आते रहे हैं, इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने 2018 में दंड विधि संहिता में ऐसे मामलों पर कानून और कड़े किए थे. इस संशोधन के माध्यम से 376 के मामलों में न्यूनतम सजा को साल से बढ़ाकर दस साल कर दिया था, 16 साल से कम आयु की बालिकाओं के मामले में न्यूनतम सजा को दस साल से बढ़ाकर बीस साल कर दिया था, 12 साल से कम आयु वर्ग की बालिकाओं के मामले में मृत्युदंड जैसी कठोरतम सजा का प्रावधान किया गया था.
अपराधी को जल्दी से जल्दी सजा मिले इस बात के प्रावधान भी किये गए. इस निर्णय का भरपूर स्वागत हुआ था, इससे उम्मीद की जा रही थी कि समाज में ऐसे अपराधों पर नियंत्रण होगा, लोग डरेंगे.
लेकिन इसके बाद के सालों में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के जो आंकड़े आए वह हैरानी में डालने वाले हैं. पॉक्सो एक्ट की धारा 4 और 6 में दर्ज आंकड़ों में भारी बढ़ोत्तरी देखने को मिली. 2016 में इस सेक्शन में 19765, 2017 में इस सेक्शन में 17357, 2018 में 21605 मामले दर्ज किए गए थे, वहीं 2019 में यह बढ़कर 26497 और 2020 की रिपोर्ट में यह 28327 पाए गए.
आज थोड़ा ठहरकर इस बात पर सोचने की जरुरत है कि यदि फांसी जैसे कठोरतम निर्णय के बाद भी यदि अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है तो दिक्कत कहां हैं? आखिर क्या वजह है कि इतनी कठोर सजा का भी समाज के दरिंदों की मोटी चमड़ी पर कोई फर्क नहीं पड़ा. और यदि नहीं पड़ा तो अब हम और क्या करेंगे. क्या असली दिक्कतों को जानेंगे, समझेंगे, इस मामले की दूसरी वजहों को पता करने की कोशिश करेंगे.
आज यह चिंतन करने की बहुत आवश्यकता है कि समाज में ऐसी शिक्षा और संवेदना पर भी जोर दिया जाए जिससे ऐसे अपराध रुकें. इंटरनेट की हर हाथ में सेंधमारी से युवाओं तक जो अश्लील कंटेंट पहुंच रहा है, उसे नियंत्रित करने की जरुरत है. अपराध होने के बाद के सिस्टम को अपराध से पहले ही सक्रिय करने की जरुरत है. सरकार और समाज को मिलीजुली कोशिश करने की जरुरत है, वरना देश में ऐसे ही बालिका दिवस मनाया जाता रहेगा, और ऐसे ही शर्मनाक आंकड़े सामने आते रहेंगे.
राकेश कुमार मालवीय
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