क्‍वाड का संदेश

वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए शुक्रवार को हुआ क्वाड देशों का पहला शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मील का एक पत्थर माना जाना चाहिए।

Update: 2021-03-15 01:32 GMT

वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए शुक्रवार को हुआ क्वाड देशों का पहला शिखर सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय राजनीति में मील का एक पत्थर माना जाना चाहिए। क्वाड समूह के सदस्य देशों- भारत, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और जापान ने इस शिखर सम्मेलन के जरिए एशियाई क्षेत्र और प्रशांत व हिंद महासागर में शक्ति संतुलन स्थापित करने की जो कवायद शुरू की है, वह चीन के लिए साफ संदेश है कि अब उसे अपने विस्तारवादी कदमों से बाज आना होगा। शिखर सम्मेलन में चीन को लेकर अमेरिका और जापान का जो रुख रहा, उससे भी यह साफ हो जाता है कि आने वाले दिनों में चीन की चुनौतियां बढ़ सकती हैं।

शिखर सम्मेलन में सदस्य राष्ट्रों ने जिस तरह से प्राथमिकताओं को निर्धारित किया है, उससे भविष्य में दुनिया के आधे हिस्से में क्वाड की निर्णायक भूमिका भी रेखांकित होती है। इसीलिए कूटनीति के विशेषज्ञों ने क्वाड की तुलना 1957 में पेरिस में हुई नाटो की पहली बैठक से करने में कोई संकोच नहीं किया। जाहिर है, क्वाड को एक नई वैश्विक व्यवस्था के रूप में देखा जा रहा है। सम्मेलन के बाद चारों नेताओं की ओर से जारी साझा बयान में पहली बात यही है कि क्वाड समूह हिंद प्रशांत क्षेत्र को मुक्त, सभी के लिए खुला और समान अवसरों वाला, लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित और बिना किसी के दबदबे वाला क्षेत्र बनाने की कोशिश करेगा। चीन यही नहीं होने देना चाहता।
क्वाड की औपचारिक नींव वर्ष 2007 में जापान की पहल पर पड़ी थी। इसकी स्थापना के मूल में चिंता चीन को लेकर ही थी। हालांकि करीब एक दशक तक इस संगठन ने कोई सक्रियता नहीं दिखाई, लेकिन 2017 में इसे सक्रिय रूप दिया गया और 2019 में क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में यह साफ हो गया था कि क्वाड चीन के खिलाफ एक बड़ा रणनीतिक मोर्चा है। हकीकत यह है कि क्वाड के सभी सदस्य देशों का चीन के साथ टकराव है।
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध अभी भी खत्म नहीं हुआ है। कोरोना महामारी फैलाने का ठीकरा भी अमेरिका ने चीन फोड़ा है, जिससे वह बौखलाया हुआ है। भारत के साथ चीन का सीमा विवाद पहले है और पिछले एक साल में दोनों देशों के बीच बेहद तनाव रहा। जापान और चीन के बीच दशकों से विवाद हैं और हाल में जापानी द्वीप और उसके समुद्री इलाके में चीन की गतिविधियां बढ़ने से तनाव और बढ़ गया है। आॅस्ट्रेलिया से भी चीन चिढ़ा हुआ है। सभी देश चीन की विस्तारवादी नीतियों को लेकर चिंतित हैं। ऐसे में क्वाड जैसे बड़े मोर्चे की अहमियत बढ़ जाती है।
क्वाड देशों ने कोरोना और जलवायु संकट की चुनौतियों से निपटने के लिए विशेषज्ञों के अलग-अलग समूह बनाने पर सहमति जताई है। भारत, जापान, अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया भौगोलिक रूप से भले दूर हों, लेकिन महत्त्वपूर्ण मोर्चों पर एक दूसरे के साथ खड़े हो कर यह संदेश दे रहे हैं कि वे किसी भी तरह की वैश्विक चुनौती का मिल कर सामना करने को तैयार हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि आने वाले वक्त में दक्षिण चीन सागर युद्ध का नया अखाड़ा बन सकता है।
यहां चीन ने अपने सैनिक अड्डे बना रखे हैं। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के सैन्य बेड़े भी यहां मौजूद हैं। जरूरत पड़ने पर वियतनाम, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड जैसे देश भी क्वाड का साथ देने में नहीं हिचकेंगे। हालांकि चीन की शक्ति को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। रूस, पाकिस्तान, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे देश उसके खेमे में हैं। वह सुरक्षा का स्थायी सदस्य है। ऐसे में वैश्विक राजनीति की नई बिसात पर कौन कैसी चाल चलता है और कितनी शांति रह पाती है, इसकी भविष्यवाणी आसान नहीं है।


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