स्नेह निर्झर बह रहा है

प्रेम तो प्रेम होता है। कहते हैं, एक और एक मिल कर दो होते हैं। यह गणित है, लेकिन एक और एक मिल कर एक ही रहता है, वह प्रेम है। अक्सर प्रेम को एक कोण से ही देखा जाता है

Update: 2022-08-23 05:36 GMT

लोकेंद्रसिंह कोट; प्रेम तो प्रेम होता है। कहते हैं, एक और एक मिल कर दो होते हैं। यह गणित है, लेकिन एक और एक मिल कर एक ही रहता है, वह प्रेम है। अक्सर प्रेम को एक कोण से ही देखा जाता है, जबकि प्रेम बहुआयामी होता है। प्रेम तो स्वभाव में होता है। कभी स्रेह, कभी वात्सल्य, कभी करुणा, कभी अत्मीयता, कभी अपनापन, कभी सुख के रूप में परिलक्षित होता है। कई बार प्रेम अभिव्यक्त भी नहीं होता। शब्दों से परे और भावनाओं से लबरेज प्रेम दर्शनीय, मोहक और मौन होता है। हजारों शब्दों की जगह यही मौन सब कुछ कह देता है।

अगर नजरें हों तो इस अद्भुत मौन की एक झलक में पूरा जीवन दिख जाता है। मीरां का बेपरवाह प्रेम उनकी आंखों से ही दिख जाता था। यही प्रेम कबीर शब्दों में ढाल कर दिखाते हैं। तुलसी का प्रेम अविरल नदी की तरह बहता है, जहां राम ही राम है, दूसरा कोई नहीं। प्रेम का पर्यायवाची खुशी भी है, दुख का उसमें स्थान नहीं है। अगर कहीं दुख महसूस होता है, तो उसकी वजह हमारी महत्त्वाकांक्षाएं ही हो सकती हैं।

मानव से उपर उठते हैं तो हम पाते हैं कि प्रकृति का कण-कण प्रेम की अभिव्यक्ति है। हमारे पास तो और भी विकल्प हैं- पसंद-नापसंद, सुख-दुख को पहचानने के, लेकिन प्रकृति कोई विकल्प नहीं रखती। हमें फख्र होना चाहिए कि हम ऐसे प्रेम का अभिन्न हिस्सा हैं। दुनिया में प्रेम के बगैर एक कतरा भी नहीं चल सकता। मगर यह समझ से बाहर है कि दुनिया में सारा संघर्ष प्रेम की अनुपलब्धता की वजह से है।

किसी घबराए हुए मरीज को डाक्टर सिर्फ प्रेम से यह बोल दे कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ, थोडी-सी दवा खाने से ठीक हो जाओगे। बस, आधा रोग दूर हो जाता है। कोई दुखी है और कोई उसकी बात सिर्फ मन लगा कर सुन ले, उतने भर से सामने वाला हल्का हो जाता है। आज देश आपस में टकरा रहे हैं। समाज, धर्म, जाति परिवार में भी तकरार होती है। यह सब प्रेम के अभाव में ही होता है। प्रेम एक शाश्वत अस्तित्व है और संसार सापेक्षिक है संबंधों का। सापेक्षता सीमित है। शाश्वत अस्तित्व असीम है, विराट, अनंत, सर्वव्यापी और संपूर्ण जीवन में निस्वार्थ प्रेम का सान्निध्य सभी संबंधों में पूर्णता लाता है।

कई बार मोह को भी प्रेम समझ लिया जाता है। धृतराष्ट्र और गांधारी को पुत्र मोह था, जिसने महाभारत रचने में अहम भूमिका अदा की। वहां पुत्र प्रेम नहीं, मोह था। मोह सापेक्ष है, जबकि प्रेम निरपेक्ष, निस्वार्थ, निश्छल। मोह और प्रेम में महीन-सा अंतर है। मोह में शर्तें और अपेक्षाएं जुड़ी होती हैं। मोह के चलते कई बार हम अपना सर्वस्व खो देते हैं, हमें सही-गलत का भान नहीं होता। मोह अंधा करके रखता है। प्रेम इससे पूरी तरह उलट है। निस्वार्थ, निरपेक्ष और बेशर्त।

हां, प्रेम को कई बार कमजोर की निशानी मान लिया जाता है, जबकि प्रेम सिर्फ साहस की निशानी है। किसी को सुन लेना, दूसरे को क्षमा कर देना, गलती को स्वीकार कर लेना कोई साहसी व्यक्ति ही कर सकता है। एक बोधकथा है- एक दिन एक युवक ने सुंदर युवती के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। सुंदर युवती ने कहा, मेरा विवाह मेरे पिता की इच्छा पर निर्भर है, उनसे बात करो।

वह युवक दूसरे दिन युवती के घर पहुंचा। जलपान करके उसने लड़की के पिता के आगे अपना मनोरथ रखा। पिता विद्वान था। उसने कहा कि क्या तुम मेरी बेटी को जानते हो, उसने हां में उत्तर दिया। फिर दूसरा प्रश्न, क्या तुम मेरी बेटी से प्रेम करते हो। युवक ने इसका उत्तर भी हां में दिया। अब पिता ने कहा कि अगर तुम मेरी बेटी से प्रेम करते हो, तो प्रेम की कीमत चुकाओ। युवक बोला, आप जो चाहे मांग लें, मैं देने को तैयार हूं। पिता बोला, प्रेम करते हो तो प्रेम की कीमत भी तुम्हें पता होनी चाहिए। यह सुन कर वह युवक अवाक रह गया।

वह सोचने लगा कि प्रेम की कीमत क्या हो सकती है। तभी पिता हंसते हुए बोला, नहीं पता तो पहले प्रेम की कीमत पता करके आओ, फिर मेरी बेटी का हाथ मांगना। यह सुन कर वह युवक घर से निकल गया और जो कोई राह में मिलता, उससे प्रेम की कीमत पूछता। भटकते-भटकते उसे एक अजनबी मिला, जिसने बताया कि यहां से थोड़ी दूर पीपल वाली पहाड़ी पर एक विद्वान महात्मा रहते हैं, वह तुम्हारे प्रश्न का उत्तर अवश्य दे देंगे।

युवक पीपल वाली पहाड़ी पर पहुंचा। वहां महात्मा ध्यान मुद्रा में बैठे थे। वह उनके आंखें खोलने की प्रतीक्षा करने लगा। जैसे ही उन्होंने आंखें खोली, उस युवक ने जाकर उनको प्रणाम किया और बोला, स्वामीजी! मुझे एक प्रश्न का उत्तर जानना है। प्रेम की कीमत क्या है? महात्मा हंसे और बोले- पगले, यह प्रश्न तो तू खुद से पूछ। जो तेरी कीमत है, वही तेरे प्रेम की कीमत है। उस युवक को बात समझ अ गाई। खुशी-खुशी वह सुंदर युवती के घर गया और उसके पिता से क्षमा मांगी और बोला, प्रेम तो अमूल्य है, पर आपकी बेटी के प्रेम में मैं स्वयं को चुकाने के लिए तैयार हूं। पिता को युवक के सच्चे प्रेम पर विश्वास हो गया। प्रेम वास्तव में अनंत है और प्रेम से परिपूर्ण व्यक्ति को इसीलिए संत कहा जाता है। दुनिया कुछ भी कर ले, पर इस जगत में रहने के लिए अंतत: आपको प्रेम पर ही आना पड़ेगा।


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