आरटीआई के खुलासे से समझिए कैसे 90 के दशक में जम्मू और एनसीआर में बसे अधिकांश कश्मीरी पंडित

90 के दशक में जम्मू और एनसीआर में बसे अधिकांश कश्मीरी पंडित

Update: 2022-03-19 12:37 GMT
आकाश गुलंकर।
फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' (The Kashmir Files) ने 1990 के दशक में हुए कश्मीरी पंडितों (Kashmiri Pandits) के पलायन और पुनर्वास का मुद्दा उठाया, जिससे पूरे देश में हलचल मची हुई है. इस बीच एक्टिविस्ट प्रफुल्ल सारदा ने एक आरटीआई (RTI) फाइल की, जिससे प्रवासी कश्मीरी पंडितों की संख्या और उनकी स्थिति के बारे में कुछ जानकारी मिली. आरटीआई में मिले जवाब के मुताबिक, पलायन के दौर में 60 हजार से अधिक लोगों ने कश्मीर छोड़ दिया. इनमें से अधिकांश लोग जम्मू में बस गए, जबकि कुछ लोग दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर में आ गए. वहीं, बचे-खुचे लोग रोजी-रोटी और रहने के ठिकाने की तलाश में अलग-अलग राज्यों में चले गए.
आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक, कुल 44,837 रजिस्टर्ड प्रवासी जम्मू में बस गए, जबकि 19,338 प्रवासी अब दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं. बाकी 1,995 प्रवासी देश के अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बस गए. आरटीआई में मिले आंकड़ों से पता चला कि देश के विभिन्न हिस्सों में कुल 66,170 रजिस्टर्ड प्रवासियों को बसाया गया. केंद्र सरकार ने 2020 के दौरान लोकसभा में बताया था कि 1990 के दशक में कुल 64,951 कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी छोड़ दी थी. इनमें 43,618 लोग जम्मू, 19,338 लोग दिल्ली और 1995 लोग अलग-अलग राज्यों में रह रहे हैं.
अपने देश में ही शरणार्थी की तरह व्यवहार किया जाता है
सारदा कहते हैं, 'यह बेहद दुखद है कि कश्मीरी पंडितों के साथ उनकी अपनी मातृभूमि पर ही शरणार्थी की तरह व्यवहार किया जाता है. कश्मीरी पंडित होने की वजह से वे काफी बड़ी कीमत चुका रहे हैं. प्रफुल्ल ने बताया कि उस दौर में न तो राज्य और न ही केंद्र सरकार ने प्रवासियों की मदद की. पिछले 23 साल में देश के किसी भी राजनीतिक दल ने हमारे अपने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में दोबारा बसाने में मदद नहीं की. वे रिफ्यूजी कैंप्स में रहने या खानाबदोश की तरह जिंदगी गुजारने के लिए मजबूर थे. इस दौरान सरकारी अधिकारियों से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली.
सारदा बताते हैं कि सरकार के पास अपने घर छोड़ने वाले कश्मीरी पंडितों की सटीक संख्या और उनके वर्तमान हालात के बारे में भी कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. हकीकत तो यह है कि आरटीआई के जवाब में सरकारी दस्तावेज अलग-अलग तथ्य और आंकड़े साझा कर रहे हैं. केंद्र का दावा- कश्मीरी पंडितों की मदद और पुनर्वास के लिए चलाईं कई योजनाएं. 2020 के दौरान लोकसभा में केंद्र सरकार के जवाब और आरटीआई के मुताबिक, कश्मीरी प्रवासियों के पुनर्वास और उनकी सहायता के लिए केंद्र सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इन सभी योजनाओं के लिए प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 के तहत बजट जारी किया गया.
कश्मीरी पंडितों को अभी भी है सरकार से उम्मीद
केंद्र और जम्मू और कश्मीर सरकार की ओर से कुल 6000 नौकरियों को मंजूरी दी गई. 2008 के दौरान पहली कड़ी में 3000 नौकरियों को मंजूरी दी गई, जिनमें 2019 तक 2905 पद भरे जा चुके हैं. इस बीच ऐसी ही 3000 अतिरिक्त जॉब्स के लिए 1080 करोड़ रुपये खर्च किए गए. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार का दावा था कि इनमें से 1781 पदों की चयन प्रक्रिया पहले ही पूरी हो चुकी है, जबकि 604 उम्मीदवार नौकरी कर रहे हैं. सरकार के जवाब के मुताबिक, यह डेटा फरवरी 2020 का है. इसके अलावा आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार ने इन प्रवासियों के ट्रांजिट आवास के लिए 920 करोड़ रुपये का बजट पास किया है. इनमें से 849 फ्लैट फरवरी 2020 के आखिर तक बनकर तैयार हो गए थे.
इन प्रयासों के अलावा केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि वह इन रजिस्टर्ड परिवारों में से हर एक को हर महीने कैश और सूखा राशन भी दे रहा है. सरकार की ओर से हर एक व्यक्ति को 3250 रुपये के हिसाब से प्रत्येक परिवार को 13 हजार रुपये अधिकतम नकद सहायता दी जा रही है. राशन में हर महीने चावल (9 किलोग्राम प्रति व्यक्ति), आटा (2 किलोग्राम प्रति व्यक्ति) और चीनी (1 किलोग्राम प्रति व्यक्ति) दिए जाते हैं. उन्होंने कहा, 'मुझे उम्मीद है कि भारत सरकार बिना कोई देरी और झूठा वादा किए न सिर्फ कागजों में, बल्कि हकीकत में भी कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में दोबारा बसाने के लिए ठोस और प्रभावी कदम उठाएगी.'
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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