क्या सचमुच भारत-पाक के बीच दुश्मनी की बर्फ पिघल रही है या सिर्फ मौसम का तकाज़ा है
भारत-पाक के बीच दुश्मनी
पांच प्रदेशों में हो रहे विधानसभा चुनावों और कोरोना महामारी के दूसरे दौर में होती गंम्भीर स्थिति के बीच कहीं यह खबर दब कर रह गयी कि एक लम्बे अर्से के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पे जमी बर्फ अब एक बार फिर से पिघलने लगी है.
फरवरी के महीने में दोनों देशों के DGMO (Director General of Military Operations) की फ़ोन पर हुई बात के बाद Ceasefire (अस्त्रविराम) शुरू हो गया है. पिछले एक महीने से अब सीमा पर बंदूकों से निकली गोलियों की आवाज़ सुनाई नहीं देती, कश्मीर की घाटियों में बारूद की जगह अब माटी की खुशबू आनी शुरू हो गई है.
पिछले एक महीने से पाकिस्तान द्वारा आतंकियों को भारत भेजने का सिलसिला भी रुक गया है. हालांकि जब भारत के साथ व्यापार की फिर से शुरुआत करने की बात सामने आई तो पाकिस्तान की तरफ से इसके लिए इनकार कर दिया गया. आपको बता दें व्यापार की बात भी पहले पाकिस्तान ने ही शुरू की थी जिसमें उसने भारत से कपास और चीनी खरीदने की बात की थी.
पिछले हफ्ते दोनों देशों में पहली बार औपचारिक बातचीत हुयी. भारत और पाकिस्तान के बीच नदियों के पानी के लिए परमानेंट इंडस कमिश्नर (PIC) स्तर 23 और 24 मार्च को नई दिल्ली में बैठक हुयी. बातचीत से फिलहाल नदी जल बंटवारे पर आए गतिरोध पर कोई सफलता तो नहीं मिली, पर सबसे बड़ी उपलब्धि ये रही कि दोनों पड़ोसी देशों के बीच बातचीत से समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास करना.
हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर बातचीत जारी
भारत चेनाब नदी पर दो हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बना रहा है, पाकल दुल और लोअर कलनायी में, जिसके डिजाइन पर पाकिस्तान को पिछले सात सालों से संसय बना हुआ है. पाकिस्तान के PIC सैयद मुहम्मद मेहर अली शाह ने इन दो प्रोजेक्ट्स के बारे में पूछा. भारत के PIC प्रदीप कुमार सक्सेना ने उनको आश्वासन दिया कि इससे पाकिस्तान को कोई खतरा नहीं है और पाकिस्तान को उसके हिस्से का पानी मिलता रहेगा. भारत ने आने वाले दिनों में इन दो प्रोजेक्ट्स की तकनिकी ब्यौरा पाकिस्तान को देने का वादा किया है.
फिर से शुरू हो पाएगी पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत
भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर इन दिनों ताजिकिस्तान में अफ़ग़ानिस्तान के बारे में हो रहे 50 देशों की बैठक में शामिल होने गए हुए हैं. वहां पाकिस्तान के विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी भी आये हैं. हालांकि अभी तक इसकी अधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं हुयी है कि क्या भारत और पाकिस्तान के विदेशमंत्रियों की वहां कोई अलग से मुलाकात होगी, पर आसार यही है कि अगर ताजिकिस्तान में नहीं तो कहीं और भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर से बातचीत ज़रूर शुरू होगी.
पाकिस्तान भारत के साथ संबंध सुधारने की मंशा रखता है यह तो फरवरी के महीने में ही साफ़ हो गया था जबकि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने बातचीत के जरिये कश्मीर मुद्दे को सुलझाने की इच्छा ज़ाहिर की थी. जनरल बाजवा ने एक बार फिर से इसी महीने में कहा कि दोनों देशों को बीती हुयी बातें भुला कर संबंध सुधारने का प्रयास करना चाहिए.
पाकिस्तान में वही होता है जो सेना प्रमुख कहते हैं
यह जग जाहिर है कि पाकिस्तान का सेना प्रमुख उस देश का सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली व्यक्ति होता है, जिसकी मर्ज़ी के बिना पाकिस्तानी सरकार भारत के बारे में कोई फैसला नहीं ले सकती. जब पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने बातचीत से ना कि बन्दूक के ज़रिये कश्मीर समस्या का हल निकालने की पहल दिखाई तो इतना तो साफ़ हो गया कि पाकिस्तान को शायद अपनी गलतियों का अहसास हो गया है कि भारत विरोधी नीतियों के कारण ही पाकिस्तान आज कंगाली के कगार पर पहुंच चुका है.
उसी कड़ी में सोमवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक ख़त भेजा जिसमे उन्होंने मोदी द्वारा पाकिस्तान दिवस पर शुभकामना सन्देश देने पर अहसास जताते हुए बातचीत से दोनों देशों के बीच संबंध सुधारने की पेशकश की है. जहां पाकिस्तान की भारत के साथ आपसी संबंध सुधारने की इच्छा स्वागत योग्य है, वहीं यह सवाल भी है कि कैसे यकायक पाकिस्तान की सेना और नेताओं का हृदय परिवर्तन हो गया? खबर है कि पाकिस्तान पर मुस्लिम देशों खासकर संयुक्त अरब अमीरात (UAE) का दबाव है.
UAE चाहता है भारत-पाकिस्तान के रिश्तें बेहतर हों
एक समय होता था जब मुस्लिम देशों से पाकिस्तान को समर्थन और पैसा मिलता था. भारत की कूटनीति की यह सफलता ही कही जायेगी कि मुस्लिम देशों के बीच भी पाकिस्तान अलग थलग पड़ गया और UAE का सन्देश साफ़ है कि पाकिस्तान को भारत के साथ संबंध सुधारना ही होगा अगर उसे और आर्थिक मदद चाहिए तो. UAE और सऊदी अरब ने पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना बंद कर दिया था और UAE ने पाकिस्तानी नागरिकों को नया वर्क परमिट देने पर भी बैन लगा दिया था.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प बार-बार भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्तता करने की बात करते रहे थे जो सफल नहीं हो सका. ट्रम्प खुद के लिए राष्ट्रपति चुनाव से पहले कुछ ऐसा करना चाहते थे ताकि वह चुनाव जीत सकें. पाकिस्तान को अमेरिका की मध्यस्थता मंज़ूर थी, पर भारत ने साफ़ कह दिया था कि कश्मीर मुद्दे पर किसी तीसरे देश का कोई रोल उसे बर्दाश्त नहीं है.
जहां ट्रम्प अपनी पब्लिसिटी चाहते थे, UAE ने पर्दे के पीछे से भारत और पाकिस्तान को साथ लाने के पहल की. भारत का स्टैंड साफ़ था कि बातचीत और आतंकवाद को बढ़ावा एक साथ नहीं चल सकता है. UAE इन दिनों शांति का फ़रिश्ता बन कर उभर रहा है. एक समय होता था जब इजराइल किसी मुस्लिम देश को पसंद नहीं था और मिश्र के सिवा इक्के दुक्के ही मुस्लिम देश थे जिसके साथ इजराइल का राजनयिक संबध था. UAE ने पहल की, इजराइल और UAE अब दोस्त बन गए हैं, जिसका फायदा दोनों देशों को मिल रहा है. UAE के पहल के बाद सऊदी अरब ने भी इजराइल से संबंध कायम किया है और मध्यपूर्व में स्थिति बेहतर होती दिख रही है. UAE अब ईरान के साथ अपने संबंध को सुधारना चाहता है और फिर बाकी के देशों के साथ, ताकि मध्यपूर्व में शांति का वातावरण बन सके.
UAE ने पाकिस्तान को ना सिर्फ चारा डालना बंद कर दिया बल्कि आर्थिक सहायता देने से मना कर दिया बल्कि पाकिस्तानी नागरिकों को नया वर्क परमिट देने की मनाही करने से पाकिस्तान की चरमराई हुयी आर्थिक स्थिति और बिगड़ने लगी है. UAE में कार्यरत लाखों पाकिस्तानियों द्वारा अपने घर हर महीने पैसा भेजना पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है. साफ़ है कि पाकिस्तान ने UAE के सामने घुटने टेक दिये और UAE के कहने पर ही उसने भारत विरोधी राग गाना छोड़ दिया है.
माना जा रहा है कि अबू धाबी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद अल नहयान ने पाकिस्तान को भारत के साथ संबंध सुधारने की सलाह दी और भारत को बातचीत के लिए मनाने का भरोसा भी दिया. मोहम्मद बिन जायद हैं तो सिर्फ अबू धाबी के क्राउन प्रिंस, पर 2014 से देश की कमान उन्हीं के हाथो में है. 2014 में अबू धाबी के शासक और UAE के राष्ट्रपति खलीफा बिन जायद अल नहयान स्वास्थ्य कारणों से लगभग रिटायर हो गए और जनता के बीच दिखना बंद हो गए. मोहम्मद बिन जायद ही अबू धाबी और UAE की बागडोर संभाल रहे हैं.
जब सात अलग-अलग अमीरातों ने मिल कर संयुक्त अरब अमीरात नामक देश का गठन किया था तो तब से ही यह प्रथा चल आ रही है कि अबू धाबी का शासक UAE का राष्ट्रपति होगा और दुबई का शासक UAE का उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री. लिहाजा UAE के राष्ट्रपति शेख खलीफा के नाम पर मोहम्मद बिन जायद ही देश पिछले सात वर्षों से चला रहे हैं. UAE का पर्दे के पीछे से भारत और पाकिस्तान को साथ लाने में UAE का रोल उस समय ही साफ़ हो गया था जब 25 फरवरी को भारत और पाकिस्तान के बीच Ceasefire की घोषणा हुयी और ठीक उसके बाद UAE के विदेशमंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद भारत के दौरे पर आये. UAE के विदेशमंत्री के भारत दौरे के बारे में कहीं कोई न्यूज़ भी नहीं आई.
संकेत साफ़ है कि पाकिस्तान UAE के दबाब में भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है. भारत अगले दो तीन महीनों तक देखना पसंद करेगा कि क्या पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवादियों को भेजना छोड़ देगा या नहीं. अब बर्फ पिघलने का मौसम आ रहा है और गर्मी के महीनों में ही सबसे ज्यादा घुसपैठ की घटना होती है. बहरहाल जिसने पाकिस्तान को बुद्धि दी कि भारत से टकराने का अंजाम बुरा ही होगा उसका शुक्रिया. जहां कुछ महीने पहले तक हालत यह था कि शायद भारत को एक साथ चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध करना पड़ सकता है, वहां अब स्थिति सुधरती दिख रही है. हालांकि भारतीय सेना ने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी थी, यकायक दोनों देशों के साथ सीमा पर शांति बहाल हो गयी है. यह भारत सरकार के सही और सख्त फैसलों का नतीजा है.
पाकिस्तान ने भारत से कपास और चीनी आयात करने के फैसले को रोका
उम्मीद यही की जानी चाहिए कि पाकिस्तान सिर्फ दबाब में ही नहीं बल्कि दिल से भारत के साथ शांति चाहता है. और अगर ऐसा हुआ तो दक्षिण एशिया मे विकास और खुशहाली का वातावरण बन जाएगा. पर अभी ज़रुरत है पाकिस्तान पर नजदीकी नज़र रखने की, जो भारत कर रहा है. Ceasefire तो 2003 में भी हुआ था, पर उसका अमल नहीं हुआ और भारत में आतंकी गतिविधियों को सीमा पार से बढ़ावा देना जारी रखा था. देखना दिलचस्प होगा कि भारत के साथ मित्रता की पेशकश पाकिस्तान की मजबूरी है या उसे समझ आ गया है कि उसके जिंदा रहने के लिए यह ज़रूरी है. लेकिन इन सब के बीच पाकिस्तान का भारत से कपास और चीनी आयात करने का फैसला रोक देना दोनों देशों के रिश्ते में फिर से खटास पैदा कर सकता है, पाकिस्तान को इसके लिए भी सचेत रहना चाहिए.