क्या शरद पवार और प्रशांत किशोर के बीच पक रही है नई राजनीतिक खिचड़ी?
एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और चुनावी रणनीति के माहिर प्रशांत किशोर की पिछले कुछ दिनों में तीन बार मुलाकात हुई है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार (NCP President Sharad Pawar) और चुनावी रणनीति के माहिर प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की पिछले कुछ दिनों में तीन बार मुलाकात हुई है, और हर मीटिंग लम्बी चली हैं. पहली मीटिंग पवार के मुंबई-स्थित आवास पर हुई थी. उस समय कयास लगाया गया कि वह पश्चिम बंगाल (West Bengal) की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ( CM Mamata Banerjee) की तरफ से पवार की नब्ज़ टटोलने गए थे और पता लगाना चाहते थे कि क्या पवार ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री (Prime Minister) पद के लिए विपक्ष का साझा उम्मीदवार बनाने को राजी होंगे? प्रशांत किशोर ने मीटिंग के बाद कहा था कि इस बारे में ऐसी कोई बात नहीं हुई, वह शिष्टाचार के नाते पवार से मिलने गए थे.
बाद में उनका मीडिया में इंटरव्यू आया जिसमें उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) भारत के सबसे लोकप्रिय नेता हैं और देश की राजनीति में तीसरे या चौथे मोर्चे के लिए कोई जगह नहीं है. एक बार तो लगने लगा था कि सचमुच पवार और प्रशांत किशोर के बीच 2024 के लोकसभा चुनाव के बारे में कोई बात या तो हुई नहीं या फिर बात बनी नहीं. पर उसके बाद पवार और प्रशांत किशोर के बीच दो और मुलाकात हुईं. शिष्टाचार के नाम पर तीन लम्बी बैठक किसी के गले नहीं उतर रही थी. फिर मंगलवार को पवार के नयी दिल्ली-स्थित सरकारी बंगले में उनकी अध्यक्षता में आठ विपक्षी दलों की बैठक हुई जिसमे कांग्रेस पार्टी को आमंत्रित नहीं किया गया था.
क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपीए का होगा एक्सटेंशन
कल पवार का एक बयान आया कि बीजेपी के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अगर विपक्ष का कोई गठबंधन बनता है तो उनमें कांग्रेस पार्टी की जरूरत होगी. पवार बहुत ही अनुभवी और मंझे हुए नेता हैं, जो भी बोलते हैं नाप-तोल कर बोलते हैं. वह ख्याली पुलाव पकाने में विश्वास नहीं रखते हैं. साथ ही साथ, पवार ने प्रशांत किशोर की बात की कि देश की राजनीति में तीसरे या चौथे मोर्चे की कोई जगह नहीं है सच साबित कर दिया, यह कह कर कि विपक्ष के किसी भी गठबंधन में कांग्रेस पार्टी की भूमिका रहेगी. हालांकि पवार ने ऐसा कुछ नहीं कहा, पर उनके कहने का मतलब साफ़ था कि अगर विपक्ष का कोई गठबंधन बना तो शायद वह यूपीए का एक्सटेंशन ही होगा.
पवार ने विपक्षी दलों की अपने घर पर बैठक के बारे में कहा कि उसमे किसान आन्दोलन के बारे में चर्चा हुई, चुनाव के बारे में नहीं. पर बातों बातों में उन्होंने कांग्रेस को एक संदेश भी दे दिया यह कह कर कि अभी विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा कौन होगा इस बारे में चर्चा नहीं हुई है, अगर गठबंधन बना तो चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जायेगा.
कांग्रेस को राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना छोड़ना होगा
राजनीति में दो और दो से कभी भी चार नहीं बनता, क्या कहा जाता है इसका ज्यादा मायने नहीं होता, क्या नहीं कहा जाता वह ज्यादा महत्वपूर्ण होता है. पवार ने जो नहीं कहा पर उसका मतलब साफ़ है कि अभी दूसरे मोर्चे को ही सशक्त बनाने के बारे में बात चल रही है. कांग्रेस पार्टी भले से अर्श से फर्श पर आ चुकी है, पर अभी भी वह सबसे बड़ी विपक्षी दल है. शायद शरद पवार को कांग्रेस को समझाने की जिम्मेदारी दी गयी है कि वह कांग्रेस पार्टी को समझाये कि राहुल गांधी को एक बार फिर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के बारे में पार्टी ना सोचे. किसी हद तक बात सही भी है, जो मोहरा लगातार दो बार पिट चुका हो उस पर दाव लगाना चुनाव जीतने की सही रणनीति नहीं हो सकती.
कहीं ना कहीं इसके पीछे प्रशांत किशोर की रणनीति झलक रही है. रणनीति यह है कि अगर नरेन्द्र मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से रोकना है तो सबसे पहले कांग्रेस पार्टी को राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का सपना त्यागना पड़ेगा, क्योंकि मोदी के सामने राहुल गांधी टिक नहीं पा रहे हैं. यानि मोदी के खिलाफ किसी व्यक्ति विशेष को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने की जगह सामूहिक नेतृत्व की बात की जाए. जिस राज्य में जो पार्टी ज्यादा सशक्त है वहां जनता को यही बताया जाए कि उनका पसंदीदा नेता ही अगला प्रधानमंत्री बनेगा. मसलन पश्चिम बंगाल की जनता से यह कह कर वोट मांगा जाए कि इस बार प्रधानमंत्री ममता बनर्जी ही बनेंगी, तमिलनाडु में जनता को यह कह कर गुमराह किया जाए कि मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन भारत के प्रथम तमिल प्रधानमंत्री बनेंगे. इसी तरह हर राज्य में अलग चेहरा सामने होगा और अलग बात की जायेगी.
अगर कांग्रेस पार्टी राहुल गांधी के नाम पर जिद छोड़ दे तो फिर अगला चरण होगा कि विपक्षी दलों के वोटों का विभाजन ना हो. इसके तहत जहां तक संभव हो सके साझा उम्मीदवार उतारा जाए. इसमें कुछ परेशानी हो सकती है– क्या ममता बनर्जी किसी वाममोर्चा के उम्मीदवार का समर्थन करेंगी और क्या वामदल यह कहेगा कि अगर उनका प्रत्यासी जीता तो प्रधानमंत्री ममता बनर्जी होंगी? वहीं दूसरी तरफ, कांग्रेस पार्टी को समझाना पड़ेगा कि वह उन्हीं सीटों पर चुनाव लड़े जहां उसके जीतने की संभावना हो. यानि कांग्रेस पार्टी सौ-सवा सौ सीटों से ज्यादा की ना सोचे.
क्या कांग्रेस बीजेपी को हराने के लिए इस बात पर मान जाएगी
कांग्रेस पार्टी है तो सब कुछ संभव है, खासकर जब बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की बात हो. कांग्रेस पार्टी शायद इसपर राजी भी हो जाए, भले ही इसके कारण पार्टी का आधार और कम क्यों ना हो जाए जैसा की राज्यों में होता आ रहा है, बस कांग्रेस पार्टी की शर्त एक ही होगी कि सामुहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ना मंजूर है, पर चुनाव के बाद प्रधानमंत्री राहुल गांधी ही बनेंगे.
अगर मगर बहुत सारे हैं जिसका ज्ञान पवार और प्रशांत किशोर को भी है, इसीलिए कोई अभी कुछ भी खुल कर नहीं बोल रहा. बीजेपी को भी शायद इस बनती हुई राजनीति का अभास है वर्ना यकायक एनडीए को फिर से मजबूत करने और सहयोगी दलों को केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात ऐसे ही नहीं चल रही है.
सभी दलों को एक साथ लाना इतना आसान नहीं होने वाला है
पर यह सोचना कि सभी गैर-बीजेपी दल जो अपनी डफली अपना राग में विश्वास रखते हैं एक सुर में ही डफली बजाने लगेंगे, उतना ही संभव है जितना यह सोचना कि पंजाब के कैप्टेन अमरिंदर सिंह नवजोत सिंह सिद्धू के लिए और राजस्थान में अशोक गहलोत सचिन पायलट के लिए ख़ुशी ख़ुशी मुख्यमंत्री पद त्याग देंगे या फिर पाकिस्तान निकट भविष्य में कश्मीर का राग अलापना बंद कर के भारत का सबसे घनिष्ट मित्र बन जायेगा.