भारतीय राजनीति : तेलंगाना के जरिये दक्षिण पर नजर, राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारी पर अटकलबाजी का दौर
यह नकारात्मक भावना खत्म करना मुश्किल है कि उत्तर भारतीय बड़े भाई की तरह व्यवहार करते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी दक्षिणी राज्यों में धीरे-धीरे अपनी पार्टी की पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के दूसरी बार भारी बहुमत के साथ चुने जाने से दक्षिण भारत में भाजपा का हौसला बढ़ा है। दक्षिणी राज्यों के लोगों को पारंपरिक रूप से इस बात की नाराजगी रहती है कि विकास के कार्य उत्तर भारतीय राज्यों में ही होते हैं। लेकिन पिछले आठ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'सबका साथ-सबका विकास' मंत्र ने अनेक दक्षिण भारतीयों को आकर्षित किया है। अयोध्या में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में राम मंदिर के गर्भगृह की नींव रखने से भी दक्षिण भारत के लाखों श्रद्धालुओं के मन में उत्साह की भावना है।
दक्षिण में अटकलें हैं कि भाजपा और मोदी किसी दक्षिण भारतीय को अगले राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाएंगे। ऐसा होता है, तो दक्षिण भारत में भाजपा दोगुनी गति से आगे बढ़ेगी। मोदी, योगी और राम मंदिर-ये तीन दक्षिणी राज्यों में चर्चा के मुख्य विषय हैं। पर असहमति के स्वर भी सुनाई दे रहे हैं। द्रमुक नेता एम. के. स्टालिन ने तमिलनाडु में शासन के द्रविड़ मॉडल को हवा दी है। दक्षिण में हालांकि कांग्रेस की कोई खास मौजूदगी नहीं है। इसकी वजह यह है कि राहुल गांधी जिस वायनाड से सांसद चुने गए हैं, वहां वह नहीं जाते।
वहां के मतदाता कहते हैं कि राहुल गांधी विदेश यात्रा करने के ज्यादा इच्छुक हैं। दक्षिण और उत्तर के बीच गहरी खाई है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी दक्षिणी राज्यों में लोकप्रिय हैं और दो से तीन फीसदी युवाओं का वोट मोदी को जाता है। आईटी क्षेत्र के कर्मचारियों में मोदी के प्रति खास निष्ठा है। दक्षिण के तीन बड़े आईटी केंद्र हैदराबाद, चेन्नई और बंगलूरू के तीस वर्ष से कम उम्र के युवा ग्राफिक्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सॉफ्टवेयर विकास में नवाचार से मोदी से खुश हैं। कर्नाटक और पुडुचेरी में मोदी के डबल इंजन सरकार का फॉर्मूला अच्छा काम कर रहा है।
यहां भाजपा ने अच्छी तरह से पैठ बना ली है। तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में भी भाजपा ने पैठ बनाई है। स्पष्ट है कि युवा भाजपा नेता अन्नामलाई की कोशिश वहां रंग ला रही है। हाल के निकाय चुनावों में भाजपा तमिलनाडु में अकेले चुनाव लड़ी थी और उसे सात फीसदी वोट मिले थे। इसी तरह केरल में हिंदुत्व की भावना को जनाधार मिला है। पर वहां कम्युनिस्टों का वर्चस्व खत्म करना कठिन है। भाजपा ने त्रिपुरा में माकपा को जिस तरह उखाड़ा, अगले पांच साल में वह केरल में ऐसा ही करेगी।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा दक्षिण में ज्यादा सीटें जीतने की इच्छुक है। दक्षिणी राज्यों में द्रमुक, अन्नाद्रमुक, पीएमके, टीआरएस, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस जैसे आठ विभिन्न राजनीतिक दल हैं, लेकिन तीन राज्यों-कर्नाटक, पुडुचेरी और तेलंगाना में भाजपा के हिंदुत्व के प्रति भारी आकर्षण है, पर तमिलनाडु, केरल एवं कर्नाटक में उसे संघर्ष करना पड़ेगा। हाल ही में प्रधानमंत्री ने हैदराबाद में के. चंद्रशेखर राव पर निशाना साधते हुए कहा कि तेलंगाना राष्ट्र समिति राज्य में हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच विभाजन कर रही है।
तेलंगाना में हिंदुओं की भारी आबादी है, यही वजह है कि भाजपा ने वहां पकड़ बनाई है। तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री मा सुब्रमण्यम ने कोविड-19 क्लस्टर के बढ़ने और संक्रमण के मामलों में तेजी के लिए उत्तर भारतीय छात्रों को जिम्मेदार ठहराया था। इसके अलावा, द्रमुक मंत्री पोनुमुडी ने एक विवादास्पद बयान दिया कि जो लोग तमिलनाडु में पानी-पूरी बेचते हैं, केवल वही हिंदी बोलते हैं। इसका जितिन प्रसाद ने तीखा जवाब दिया था। निश्चित रूप से जब भी द्रमुक की ओर से ऐसा बयान आता है, तो उत्तर में रहने वाले दक्षिण भारतीयों को परेशानी होती है।
निस्संदेह भाजपा दक्षिणी राज्यों में सत्ता तक पहुंचने का आसान रास्ता नहीं बना पाई है। लंबे समय तक वह यही मानती रही कि कर्नाटक में सत्ता में आने के बाद उसे आसानी से दक्षिण के अन्य राज्यों में भी मतदाताओं द्वारा स्वीकार कर लिया जाएगा, लेकिन यह सपना ही बना रहा। अब भाजपा ने इन सभी राज्यों के लिए अलग-अलग ढंग से रणनीति बनाने का फैसला किया है। और दक्षिण की दीवार तोड़ने के लिए दूसरे विकल्प के रूप में उसने तेलंगाना को चुना है।
तेलंगाना पर भाजपा के दांव लगाने के कुछ ऐतिहासिक कारण हैं। यह पहली राष्ट्रीय पार्टी थी, जिसने अलग तेलंगाना राज्य का समर्थन किया था और तेलंगाना राष्ट्र समिति के जन्म से पहले ही इसने तेलंगाना राज्य के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था। उत्तर भारत में ज्ञानव्यापी का मुद्दा छाया है, तो यह प्रधानमंत्री मोदी के निर्देशों के पालन करने का ही नतीजा है। मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री काल में यह संभव नहीं था। यूपीए सरकार चुराई गई मूर्तियों के मसले पर चुप लगा बैठी थी, जबकि राजग ने पुरानी मुर्तियों को हासिल करने की कोशिश की और अमेरिका के छह और ऑस्ट्रेलिया से चार मूर्तियां बरामद की गईं।
दसवीं शताब्दी ईसा पूर्व की ये दसों मूर्तियां तमिलनाडु के मंदिरों से 1960 के दशक से 2008 के बीच चोरी हुई थीं। बरामद होने के बाद इन मूर्तियों को केंद्र ने एक समारोह में राज्य सरकार को सौंप दिया। हिंदू समुदाय इन मूर्तियों की वापसी से बेहद खुश है। प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों का दिल जीत लिया है, जिससे उत्तर भारतीयों के प्रति दक्षिण भारतीयों की नाराजगी कुछ कम हुई है। आप जिस भी नजरिये से देखें, भाजपा के लिए दशकों पुरानी द्रविड़ विचारधाराओं को तोड़ना इतना आसान नहीं होगा या फिर दक्षिण भारत के लोगों के मन से यह नकारात्मक भावना खत्म करना मुश्किल है कि उत्तर भारतीय बड़े भाई की तरह व्यवहार करते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी दक्षिणी राज्यों में धीरे-धीरे अपनी पार्टी की पैठ बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
सोर्स: अमर उजाला