India China Conflict: कूटनीति के जरिये चीन से मुकाबला

यह क्षमता इस भरोसे पर टिकी है कि भारतीय सेना लद्दाख के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों को रोक देगी।

Update: 2022-07-12 01:41 GMT

विदेशमंत्री एस. जयशंकर ने विगत बृहस्पतिवार को इंडोनेशिया के बाली में जी-20 की बैठक के दौरान अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात के बाद ट्वीट किया था, 'बातचीत के दौरान सीमा की स्थिति से संबंधित हमारे द्विपक्षीय संबंधों में महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया। साथ ही छात्रों और उड़ान समेत अन्य मामलों पर भी बात की।' जयशंकर ने यह नहीं लिखा, 'अपने मित्र से मिला', जैसा कि आम तौर पर वह लिखते हैं। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, 'विदेशमंत्री ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ सभी मुद्दों के शीघ्र समाधान का आह्वान किया।'




ग्लोबल टाइम्स ने बैठक के बारे में चीनी विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा है, 'भारत और चीन एक साथ सीमा पर शांति और स्थिरता की रक्षा करने में सक्षम और इच्छुक हैं। चीन- भारत सीमा पर स्थिति स्थिर है और दोनों पक्षों ने दोनों देशों के नेताओं की सहमति और उनके द्वारा हस्ताक्षरित समझौते के अनुरूप, इसके पश्चिमी खंड से संबंधित मुद्दों को हल करने पर सहमति व्यक्त की।' जाहिर है, दोनों देशों की राय में अंतर है। वांग यी, चीनी दृष्टिकोण को पेश करते हुए कहते रहे हैं कि दोनों पक्षों को 'अपने द्विपक्षीय संबंधों में अपने सीमा मतभेदों को उचित ढंग से रखना चाहिए और चीन-भारत संबंध सही दिशा में होने चाहिए।' चीन इस पर जोर देता रहा है कि सीमा का समाधान दूसरे संबंधों की कीमत पर नहीं होना चाहिए। जबकि भारत ने हमेशा दोहराया है कि जब तक वास्तविक नियंत्रण रेखा पर अप्रैल, 2020 से पहले की स्थिति बहाल नहीं हो जाती, तब तक संबंध सामान्य नहीं हो सकते।


पिछले महीने शांगरी-ला डायलॉग में चीनी रक्षामंत्री जनरल वेई फेंघे ने लद्दाख में गतिरोध के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा था कि 'सीमावर्ती क्षेत्रों में संघर्ष से यह स्पष्ट है। रक्षामंत्री के रूप में मुझे व्यक्तिगत रूप से इस टकराव की शुरुआत और अंत का अनुभव हुआ। हमें बहुत सारे भारतीय हथियार मिले हैं। उन्होंने अपने लोगों को चीनी क्षेत्र में भी भेजा है।' जबकि भारत ने घुसपैठ के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया है। फेंघे ने यह भी कहा कि ' भारत के साथ हमारी कमांडर स्तर की 15 दौर की बातचीत हो चुकी है और हम शांति के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।'

16वें दौर की बातचीत के लिए किसी तारीख पर सहमति नहीं बनी है। भारत का मानना है कि चीन नए सिरे से सैन्य स्तर की वार्ता स्वीकार करने को तैयार नहीं है। दोनों देशों ने लद्दाख में 60,000 से अधिक सैनिक तैनात किए हैं और एक-दूसरे की किसी भी आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए बुनियादी ढांचा बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। लद्दाख में भारतीय सैनिक हमेशा ही रहते आए हैं, वहीं चीन को अपने सैनिकों के रहने के लिए निर्माण कार्य करने पर मजबूर होना पड़ा। चीन जानता है कि भारत के पास आक्रामक हमला करने और उसे शर्मिंदा करने की क्षमता है। गलवान में चीनी वर्चस्ववाद का मिथक टूट भी गया। कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत चुप नहीं है। विगत मार्च में चीनी विदेशमंत्री की भारत की अघोषित यात्रा का उद्देश्य यह पता लगाना था कि क्या भारतीय प्रधानमंत्री चीन में ब्रिक्स नेताओं की बैठक में व्यक्तिगत तौर पर भाग लेंगे। भारत की मनाही के बाद बैठक को ऑनलाइन मोड में आयोजित किया गया। भारतीय प्रधानमंत्री के बीजिंग न जाने से ब्रिक्स के वर्तमान अध्यक्ष के रूप में चीनी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।

भारत ने ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से अलग हटकर आयोजित होने वाली 'वैश्विक विकास पर उच्च स्तरीय वार्ता' में चीन के प्रमुख सहयोगी पाकिस्तान की भागीदारी भी रोक दी। चीन के पास कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि पाकिस्तान की मौजूदगी पर जोर देने पर भारत बैठक में हिस्सा लेने से मना कर सकता था। भारत ने संयुक्त बयान में पश्चिम द्वारा प्रतिबंधों को युद्ध के औजार के रूप में इस्तेमाल करने का आरोप लगाने की भी अनुमति नहीं दी। प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार दूसरे वर्ष दलाई लामा को उनके जन्मदिन पर बधाई दी। इस बार उन्होंने उनसे फोन पर बात की। यह 'वन चाइना' की भारत की पूर्व नीति के खिलाफ था। चीन दलाई लामा को 'विभाजनकारी' मानता है, जबकि भारत उन्हें एक धार्मिक नेता के रूप में देखता है। दोकलाम और लद्दाख गतिरोध के बीच मोदी सरकार ने किसी भी तिब्बती आयोजन में भाजपा सदस्यों के शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। पर प्रधानमंत्री मोदी के इस कदम से संकेत मिलता है कि अगर चीन सीमा संकट के समाधान से इनकार करता रहा, तो भारत अपनी 'वन चाइना' नीति को बदल देगा।

आगे भारत ने यह घोषणा करते हुए अपनी आक्रमकता दिखाई कि वह अगले साल जी-20 की, जिसकी अध्यक्षता वह दिसंबर में संभालने वाला है, बैठक जम्मू-कश्मीर में आयोजित करने पर विचार कर रहा है। चीन ने इस पर पाकिस्तान की आपत्ति का समर्थन किया। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि 'हम आर्थिक सुधार पर ध्यान केंद्रित करने और प्रासंगिक मुद्दे (जम्मू-कश्मीर) के राजनीतिकरण से बचने के लिए संबंधित पक्षों से आह्वान करते हैं।' उन्होंने आगे कहा, 'हम बैठक में भाग लेंगे या नहीं, उस पर गौर करेंगे।' साथ ही, चीन ने विवादित क्षेत्र से गुजरने वाले अपने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का बचाव यह दावा करते हुए किया कि यह एक आर्थिक कार्यक्रम है, जो सैन्य या राजनयिक गतिविधियों से जुड़ा नहीं है। भारत ने मौखिक रूप से चीन को जवाब नहीं दिया, पर लद्दाख को एक और संभावित गंतव्य के रूप में जोड़कर पलटवार किया। इससे चीन की भावनाएं भड़क उठी
हैं और उसकी प्रतिक्रिया आना बाकी है।

भारत-चीन के बीच सैन्य गतिरोध भले ही जारी है, पर चीन का मुकाबला करने के लिए भारत अपनी कूटनीतिक एवं वित्तीय शक्ति का प्रयोग कर रहा है। भारत जानता है कि चीन की तुलना में उसके पास ज्यादा कूटनीतिक वैश्विक दबदबा है और वह चीन को चोट पहुंचाने की क्षमता रखता है। यह क्षमता इस भरोसे पर टिकी है कि भारतीय सेना लद्दाख के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सैनिकों को रोक देगी।

सोर्स: अमर उजाला


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