भ्रष्टाचार की अनदेखी और वर्तमान राजनीति में इसका बढ़ता चलन

सम्पादकीय न्यूज

Update: 2022-07-28 16:52 GMT
अंतत: ममता बनर्जी (Mamta Banerjee) को अपने वरिष्ठ मंत्री और तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के संस्थापक सदस्य पार्थ चटर्जी (Partha Chatterjee) को हटाने के लिए विवश होना पड़ा। उन्होंने यह निर्णय तब लिया, जब प्रवर्तन निदेशालय (ED) की टीम को पार्थ चटर्जी की करीबी अर्पिता मुखर्जी के एक और फ्लैट से करीब 28 करोड़ रुपये नकद, सोना और विदेशी मुद्रा मिली। इसके पहले उनके एक अन्य फ्लैट से 21 करोड़ रुपये के साथ-साथ कई अचल संपत्तियों के दस्तावेज मिले थे।
कायदे से ममता बनर्जी को तभी पार्थ चटर्जी की छुट्टी कर देनी चाहिए, लेकिन पता नहीं क्यों उन्होंने उनके विरुद्ध तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक नहीं समझा? उनकी ओर से देर से लिए गए निर्णय का कारण कुछ भी हो। वह इस प्रश्न से पीछा नहीं छुड़ा सकतीं कि क्या उन्हें इस बारे में कहीं कोई खबर नहीं थी कि पार्थ चटर्जी दोनों हाथों से लूट करने में लगे हुए हैं? आखिर ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई वरिष्ठ मंत्री बड़े पैमाने पर घोटाला करने में लगा हो और मुख्यमंत्री को कुछ अता-पता न हो?
यह प्रश्न इसलिए और अधिक गंभीर हो जाता है, क्योंकि शिक्षकों के भर्ती में घोटाले की पुष्टि तभी हो गई थी, जब कलकत्ता उच्च न्यायालय की ओर से गठित एक आयोग ने यह पाया था कि शिक्षकों के चयन में जमकर मनमानी की गई। कोई नहीं जानता कि ममता ने पार्थ चटर्जी को तभी हटाने की जरूरत क्यों नहीं समझी? कहीं इसलिए तो नहीं कि घोटाले की रकम का एक हिस्सा पार्टी कोष में पहुंच रहा था? सच जो भी हो, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि तृणमूल कांग्रेस के कई नेता न केवल गंभीर आरोपों से घिरे हैं, बल्कि उनके खिलाफ सीबीआइ अथवा ईडी या फिर दोनों एजेंसियों की जांच जारी है।
तृणमूल के अन्य अनेक नेताओं के साथ स्वयं ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी सीबीआइ और ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं। इसे देखते हुए तृणमूल कांग्रेस का यह दावा खोखला ही अधिक नजर आता है कि ममता भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं। बहुत दिन नहीं हुए जब ममता सीबीआइ के कोलकाता स्थित कार्यालय पर इसलिए धरना देने पहुंच गई थीं, क्योंकि इस एजेंसी ने घोटाले से घिरे तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था।
ममता ने भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अपने नेताओं का जैसा बचाव किया, वह नया-अनोखा नहीं है। वास्तव में अब यह एक चलन सा बनता जा रहा है। कुछ समय पहले महाराष्ट्र के मंत्री नवाब मलिक को भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिए जाने के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उन्हें मंत्री पद से हटाने से इन्कार कर दिया था। कुछ ऐसी ही कहानी दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन की भी है।


दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय 
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