जिद छोड़ें किसान नेता
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के छठे प्लेनरी सेशन में पार्टी के सौ साल के इतिहास से संबंधित दस्तावेज पारित हुआ। इसे शी के राष्ट्रपति के रूप में अगले कार्यकाल की तैयारी भी माना जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुक्रवार को किए गए तीनों कृषि कानून वापस लेने के एलान के बाद जहां सरकार ने इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी है, वहीं संयुक्त किसान मोर्चा ने अपना रुख और कड़ा कर लिया है। सोमवार को लखनऊ में आयोजित महापंचायत में किसान नेताओं ने साफ कह दिया कि उनका आंदोलन पूर्वघोषित कार्यक्रम के अनुसार चलता रहेगा। वे इसे न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी समेत कई अन्य मांगों से जोड़ रहे हैं। उनकी दलील है कि एक तो यह आंदोलन कृषि कानूनों की वापसी की इकलौती मांग के साथ शुरू नहीं हुआ था, दूसरी बात यह कि कई मसले आंदोलन के दौरान सामने आए।
संयुक्त किसान मोर्चा अब चाहे जो भी कहे, इसमें संदेह नहीं कि यह आंदोलन मुख्य रूप से तीनों कृषि बिल पास किए जाने के बाद और उसके विरोध में ही शुरू हुआ था। इन्हें बिना शर्त वापस लेना ही इस आंदोलन की मुख्य मांग थी, जो पूरी हो चुकी है। अब इनमें अन्य मांगों को जोड़ने का सीधा मतलब यही है कि संयुक्त किसान मोर्चा को लग रहा है कि सरकार दबाव में आ गई है, सो उससे जितना हो सके अपनी मांगें मनवा ली जाएं। यह नजरिया उचित नहीं है। इन मांगों के साथ समाज के उन हिस्सों के हित जुड़े हुए हैं, जो अपनी मांगों के साथ सड़क पर नहीं उतरे हैं और यह विश्वास बनाए हुए हैं कि उनके वोटों से निर्वाचित सरकार उनके हितों का भी ख्याल रखेगी।
आम जनता का यह विश्वास लोकतंत्र का आधार है। इसे कमजोर नहीं होने दिया जा सकता। खासकर, संयुक्त किसान मोर्चा एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी की जिस मांग पर सबसे ज्यादा जोर दे रहा है, वह न केवल कृषि क्षेत्र में सुधार की राह रोकने वाली है बल्कि पर्यावरण संबंधी खतरों को कम करने के लिए जरूरी बदलाव लाने में भी बाधा बनेगी। सरकार को समय रहते यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि किसी खास मसले पर लचीचापन दिखाने का यह मतलब नहीं है कि वह अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर दृढ़ता का परिचय नहीं दे सकती।