रोजगार का संकट और संभावनाएं: आखिर कौन खबर लेगा भारतीय युवाओं की? कौन सुनेगा बात?

युवा किसी भी देश में जनसंख्या का सबसे महत्वपूर्ण और गतिशील वर्ग है

Update: 2022-01-29 08:26 GMT
युवा किसी भी देश में जनसंख्या का सबसे महत्वपूर्ण और गतिशील वर्ग है। इसका कारण यह है कि किसी भी राष्ट्र का विकास भावी पीढ़ी में निहित है। हम निस्संदेह कह सकते हैं कि आज के युवा कल के नवप्रवर्तक, निर्माता और नेता हैं। किन्तु वो आज निराश हैं, वह क्या करे? पहले शिक्षा के लिए संघर्ष किया, फिर रोजगार के लिए संघर्ष। हमारी सरकारी नीतियां इतनी लचर क्यों हैं? नेताओं के पास इस देश के युवाओं के लिए कोई विजन नहीं है क्या?
वर्तमान नीतिगत उपायों और कृत्रिम बौद्धिकता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) को सरंक्षण देने के कारण यह आशंका प्रबल है कि जिस अनुपात में बेरोजगारी है, उस तुलना में नए रोजगारों का सृजन केंद्र या राज्य सरकारों के वश की बात रह ही नहीं गई है।
निजी क्षेत्रों में भी यही हाल है, एक सर्वे के अनुसार खोई हुई सभी नौकरियों में से 35% वापस नहीं आएगी। कोविड के बाद काम का तौर तरीका तो बदलने ही जा रहा है. कंपनियां ज्यादा से ज्यादा काम अब टेंपरेरी स्टाफ से करवाएंगी, पक्की नौकरियां कम से कम होती जाएंगी ।
माता-पिता की जीवन की सारी पूंजी, बच्चों को शिक्षित करने में खर्च हो जाती है। मध्यम वर्ग का युवा अनेक परेशानियों से घिरा है। उसके परिवार पर टैक्स का बोझ है, उसके टैक्स से रेवडियां बांट दी जाती हैं।
आज के युवा व्यवस्था, अनुशासन एवं पारदर्शिता को पसन्द करते हैं और वे न केवल उसका पालन करते हैं, बल्कि यदि सिस्टम ढंग से काम न करे तो सवाल भी करते हैं। शिक्षित बेरोजगार युवाओं की तुलना में इनकी योग्यता के अनुसार रोजगार उप्लब्ध नहीं हो पाना आज की एक सबसे बड़ी समस्या है।
भारतीय युवा और हमारा समाज
भारतीय युवाओं में जिस मनोविज्ञान का निर्माण हुआ है अथवा किया गया है, उसके केन्द्र में नौकरी है, उद्यम नहीं। युवाओं को भी सुविधा के क्षेत्र (कंफर्ट जोन) से बाहर निकलना होगा। कठिन व जोखिम भरे क्षेत्रों में रोजगार व स्वरोजगार तलाशने होंगे।
आज, भारत दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है, जिसकी 62% से अधिक आबादी कामकाजी आयु वर्ग (15-59 वर्ष) में है, और इसकी कुल आबादी का 54% से अधिक 25 वर्ष से कम आयु का है। यह समय मल्टी स्किल का है इसीलिए स्किल, रीस्किल और फ्यूचर स्किल पर ध्यान दें।
करियर के लिहाज से कई क्षेत्रों में नए विकल्प जैसे बिजनेस मॉडल की पुनर्खोज, ई-एजुकेशन, हेल्थकेयर मैनेजमेंट, फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर, ई-कॉमर्स , डाटा साइंस, डिजिटल मार्केटिंग, कृषि तकनीक, रिस्क इन्शुरन्स, यूटूबर, एनजीओ, आर्गेनिक फार्मिग, आईटी एडमिनिस्ट्रेटर, कस्टमर सर्विस स्पेशलिस्ट, डिजिटल मार्केटियर, आईटी सपोर्ट या हेल्प डेस्क, डेटा एनालिस्ट, फ़ाइनेंशियल एनालिस्ट और ग्राफिक्स डिजाइनर वर्तमान में सामने दिख रहे हैं।
युवाओं को इस दिशा में भी सोचना व बढ़ना होगा। अगले 25 साल देश के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत 2047 में आजादी के 100 साल पूरे कर लेगा। बहुत कठिन है नया रास्ता खोजना, लेकिन केवल यही एक उपाय है, हमें प्लान ए , प्लान बी और प्लान सी तक रुकना नही है क्योंकि हमारे पास प्लान जेड तक विकल्प है।
सरकारें अब और देर न करें, प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता की अत्यधिक आवश्यकता है।
'मेक इन इंडिया', 'स्किल इंडिया' व 'वोकल फॉर लोकल' जैसे कार्यक्रम की शुरुआत हुई है, इससे देश में निवेश एवं निर्माण, संरचना तथा नए रोजगार सृजन में कुछ बल मिला है। अटल इन्क्यूबेशन सेंटर की स्थापना स्टार्टअप्स के लिए संजीवनी के सामान हैं, साथ ही स्वरोजगार व नए बिजनेस मॉडल के स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए मुद्रा लोन योजना प्रारंभ की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन में युवाओं की संख्या जहां कुल आबादी की 22.31% होगी, और जापान में यह 20.10% होगी, भारत में यह आंकड़ा सबसे अधिक 32.26% होगा। यानी भारत अपने भविष्य के उस सुनहरे दौर के करीब है जहां उसकी अर्थव्यवस्था नई ऊंचाईयों को छू सकती है।
अतीत में जाएं तो हम पाएंगे कि वैश्विक आर्थिक मंदी 2008 के चुनौतियों के बीच कई सारे स्टार्अप कम्पनियां शुरू हुई थीं, जिनमे व्हाट्सप (2009) उबर (2009) व इंस्टाग्राम (2010) प्रमुख हैं, जो आज समूचे संसार में लोहा मनवा रहीं। वास्तव में चुनौती और अवसर एक दुधारी तलवार की तरह होते हैं।
माना कि नौकरियां कम हैं पर जो हैं उनको तो योग्य उम्मीदारों से भर दिया जाए, सरकारों को भी फुलप्रूफ प्लान बनाने होंगें। युवाओं के जोश को क्यों पुलिस की लाठियों से रौंदा जा रहा है। बहुत ही निंदनीय है ये और उतना ही निंदनीय है छात्रों द्वारा ट्रैन सम्पति को नुकसान पहुंचाना लेकिन बड़ा प्रश्न ये है यह है कि क्या सरकारें बिना उग्र आंदोलन के किसी की बात को नहीं सुनेंगी? युवाओं की पीड़ा को कौन सुनेगा? क्या सत्ता से नजरें मिलाकर अपने हक की मांग कर रहे युवाओं को सरकार अपना विपक्ष समझ बैठी है?
सरकारें अब और देर न करें, प्रतियोगी परीक्षाओं में पारदर्शिता एवं विश्वसनीयता की अत्यधिक आवश्यकता है। ताकि प्रश्न पत्र लीक ना हों तथा ना ही तकनीकी गड़बडिय़ां हो सकें। प्रत्येक प्रतियोगी परीक्षा की समय सीमा तय हो। समय पर भर्ती विज्ञापन निकले, नियमित परीक्षा हो, साक्षात्कार भी समय पर हो, ताकि भर्तियां लंबित न रहें। विभिन्न परीक्षाओं की तिथियों में समानता ना हो, साथ ही भर्ती से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए विशेष कोर्ट बनने चाहिए, ताकि भर्ती में विलंब न हो।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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