डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाएगा ई-रुपया : आरबीआई के पायलट प्रोजेक्ट से जुड़ी उम्मीदें और भविष्य की संभावनाएं
वित्तीय समावेशन के माध्यम से समाज के पिछड़े तबके को भी आर्थिक विकास की मुख्यधारा में ला पाएगी।
पिछले दिनों भारतीय रिजर्व बैंक ने देश के पहले डिजिटल रुपी पायलट प्रोजेक्ट को थोक सेगमेंट में लॉन्च कर दिया है। इस डिजिटल रुपया को देश में लीगल टेंडर के तौर पर जारी किया गया। केंद्रीय वित्तमंत्री ने एक फरवरी, 2022 को केंद्रीय बजट पेश करते हुए डिजिटल मुद्रा के संबंध में घोषणा की थी। भारत अब विश्व के उन चुनींदा देशों में शामिल हो गया है, जो अपनी डिजिटल मुद्रा जारी कर चुके हैं। भारतीय समाज में पिछले दो-तीन दशकों में व्यावसायिक व व्यक्तिगत लेन-देन में टेक्नोलॉजी का उपयोग बड़ी तेजी से बढ़ा है। इसकी शुरुआत एटीएम कार्ड से हुई।
उसके बाद व्यक्तियों को अधिक से अधिक इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली से जोड़ने के लिए बैंकिंग व्यवस्था द्वारा समय-समय पर टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया। इसी के फलस्वरूप वर्ष 2004 में सबसे पहले आरटीजीएस, वर्ष 2005 में नेफ्ट, 2010 में आइएमपीएस, 2011 में सीटीएस, 2012 में एनएसीएच को बैंकिंग के तहत उपयोग में लाया जाने लगा। वित्तीय लेन-देन में टेक्नोलॉजी के उपयोग से कई फायदे सामने आने लगे, जिनमें मुख्यतः समय की बचत सबसे उपयोगी सुविधा बनी। इससे बैंकिंग सुविधाओं का उपयोग 24 घंटे संभव होने लगा।
काले धन पर अंकुश के अलावा, नोटबंदी का एक उद्देश्य अर्थव्यवस्था में डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करना भी था। उसी के परिणामस्वरूप यूपीआई भुगतान प्रणाली बड़ी तेजी से बढ़ी। विभिन्न ऑनलाइन एप्लीकेशन के माध्यम से मुद्रा का भुगतान किया जाने लगा। कोरोना महामारी के दौरान यूपीआई सिस्टम ने बड़े पैमाने पर भारतीय समाज को मुद्रा के डिजिटल लेन-देन में सहायता की। लेकिन आज भी भारतीय समाज में नकद मुद्रा का प्रचलन काफी ज्यादा है। रिजर्व बैंक द्वारा भारत के छह बड़े शहरों में किए गए एक सर्वे के मुताबिक, तकरीबन 41 प्रतिशत लेन-देन यूपीआई से हो रहे हैं, तो 55 प्रतिशत लेन-देन आज भी नकद मुद्रा के माध्यम से होते हैं।
एक रोचक बात यह सामने आई कि भारतीय समाज में इन दिनों नियमित खर्चों के भुगतान के लिए नकद मुद्रा तथा यूपीआई के उपयोग का प्रतिशत तकरीबन बराबर हो गया है। छोटे खर्चों के भुगतान के लिए लोगों की पहली प्राथमिकता नकद मुद्रा का उपयोग ही है। मुद्रा के नए डिजिटल प्रारूप सीबीडीसी लागू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य नकद मुद्रा के प्रबंधन से संबंधित लागत को कम करना है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक अप्रैल 2021 से 31 मार्च, 2022 के दौरान केंद्र सरकार द्वारा मुद्रा की छपाई तथा रखरखाव, भंडारण व परिवहन पर तकरीबन 4,984 करोड़ रुपये खर्च हुए, जो पिछले वित्तीय वर्ष से करीब 1,000 करोड़ रुपये से अधिक है।
अगर डिजिटल मुद्रा का प्रचलन बढ़ जाएगा, तो इस लागत को काफी हद तक कम किया जा सकता है। सीबीडीसी का एक सकारात्मक पक्ष यह भी है कि भविष्य में सरकार अपनी सभी सामाजिक कल्याण योजनाओं के भुगतान के लिए इसी मुद्रा का उपयोग कर सकती है। डिजिटल मुद्रा को बैंक नोट में बदला जा सकता है। विदेशों में पैसे भेजने की लागत में कमी आएगी। इससे डिजिटल रुपये की वैल्यू मौजूदा मुद्रा के बराबर होगी। इस मुद्रा का एक चिंतनीय पक्ष यह है कि अगर इस मुद्रा पर ब्याज रूपी अतिरिक्त आय प्रचलन में नहीं रहेगी, तो आम व्यक्ति में इसके उपयोग के प्रति प्रोत्साहन कम रहेगा।
वहीं अगर इसमें ब्याज की आय को जोड़ा जाता है, तो निश्चित रूप से बैंकों की वित्तीय जमा में कमी आएगी तथा उसका प्रत्यक्ष नुकसान बैंकों द्वारा आम लोगों को दिए जाने वाले वित्तीय ऋण की तरलता पर पड़ेगा। हमारे मुल्क में आज भी समाज का एक बहुत बड़ा तबका बैंकिंग सुविधाओं से वंचित है। उसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें बैंक शाखाओं की कमी के साथ-साथ वित्तीय साक्षरता तथा बैंकों में व्यक्तिगत वित्तीय खातों का न होना भी है। इसलिए वर्तमान संदर्भ में यह सोच वास्तविकता से परे है कि सीबीडीसी वित्तीय समावेशन के माध्यम से समाज के पिछड़े तबके को भी आर्थिक विकास की मुख्यधारा में ला पाएगी।
सोर्स: अमर उजाला