विलंबित न्याय

एक बार फिर अदालतों में लंबित मामलों का मुद्दा उठा है। अवकाश प्राप्त प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने अपने विदाई भाषण में अदालतों में लंबित मुकदमों को बड़ी चुनौती बताया। इससे पहले अनेक मौकों पर यह बात दोहराई जा चुकी है।

Update: 2022-08-29 05:03 GMT

Written by जनसत्ता: एक बार फिर अदालतों में लंबित मामलों का मुद्दा उठा है। अवकाश प्राप्त प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण ने अपने विदाई भाषण में अदालतों में लंबित मुकदमों को बड़ी चुनौती बताया। इससे पहले अनेक मौकों पर यह बात दोहराई जा चुकी है। पिछले कुछ सालों में प्राय: हर प्रधान न्यायाधीश ने इस मसले पर चिंता जाहिर की है। इसके अलावा आम आदमी को शीघ्र और किफायती न्याया दिलाने का संकल्प भी अनेक बार दोहराया जा चुका है। सरकार भी इस तथ्य से अनजान नहीं। कुछ मौकों पर प्रधानमंत्री भी इसे लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं।

अदालतों पर मुकदमों के बढ़ते बोझ की वजहें भी सब जानते हैं। मगर हर बार ये बातें केवल आदर्श वाक्य की तरह दोहरा दी गई साबित होती हैं। इस दिशा में कोई व्यावहारिक कदम नहीं उठाया जाता। आबादी के अनुपात में अदालतों और न्यायाधीशों का न होना पहली समस्या है। इससे पार पाने के लिए दो पाली में अदालतें लगाने, अवकाशप्राप्त न्यायाधीशों की मदद लेने, त्वरित अदालतों का गठन, लोक अदालतों की व्यवस्था आदि की गई। मगर फिर भी अपेक्षित नतीजे नहीं आ रहे। इसी के मद्देनजर न्यायमूर्ति रमण ने इस समस्या से पार पाने के लिए अत्याधुनिक तकनीक और कृत्रिम मेधा के इस्तेमाल की जरूरत रेखांकित की है।

हालांकि प्रधान न्यायाधीश रहते न्यायमूर्ति रमण ने अदालतों का कामकाज सुचारु बनाने के लिए काफी प्रयास किया। खाली पदों को भरने के लिए एक तरह से सरकार से टकराव भी मोल लिया। मगर नई अदालतें गठित करने और जनसंख्या के अनुपात में जजों की नियुक्ति का मामला लंबे समय से लटका पड़ा है। जजों के खाली पदों पर भर्ती को लेकर सरकारें प्राय: उदासीन बनी रहती हैं। पिछले साल सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से वरीयता क्रम में न्यायाधीशों की भर्ती के लिए जो सूची भेजी गई थी, उसे केंद्र सरकार ने लंबे समय तक लटकाए रखा और बहुत दबाव बनाने के बाद भी पूरी सूची पर भर्ती की संस्तुति नहीं दी। उसमें वरीयता क्रम बदल दिया गया।


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