चिदंबरम की ओर से कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग को लेकर किसान नेताओं के पीछे कांग्रेस का हाथ

कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग से एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ कि इसी मांग पर जोर दे रहे किसान नेताओं के पीछे कांग्रेस

Update: 2021-01-17 01:44 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम की ओर से कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग से एक बार फिर यह स्पष्ट हुआ कि इसी मांग पर जोर दे रहे किसान नेताओं के पीछे कांग्रेस का ही हाथ है और वह भी अंधविरोध की राह पर चल निकले हैं। कम से कम उन्हेंं तो इन कानूनों को खत्म करने की मांग करने से बचना चाहिए था, क्योंकि वह कांग्रेस की उस समिति के अध्यक्ष थे, जिसने 2019 के लोकसभा चुनावों का घोषणा पत्र तैयार किया था और जिसमें यह लिखा था कि कांग्रेस कृषि उपज मंडी समितियों के अधिनियम में संशोधन करेगी, ताकि कृषि उपज के निर्यात और अंतरराज्यीय व्यापार में लगे सभी प्रतिबंध समाप्त हो जाएं। इसी घोषणा पत्र में यह भी दर्ज था कि बड़े गांवों और छोटे कस्बों में आवश्यक बुनियादी ढांचे के साथ ऐसे किसान बाजार स्थापित किए जाएंगे, जहां किसान अपनी उपज बेच सकें। एक अन्य बिंदु यह भी था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम को बदलकर आज की आवश्यकताओं के अनुरूप नया कानून बनाया जाएगा। मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों के माध्यम से यही सब किया है।



यदि चिदंबरम खुद की ओर से तैयार किए गए घोषणा पत्र को देखें तो वह यही पाएंगे कि किसानों के मामलों में भाजपा सरकार ने कांग्रेस की ओर से किए गए वादों को पूरा किया है। उन्हें यह भी आभास होना चाहिए कि नए कृषि कानूनों का विरोध करके वह अपने ही लिखे हुए की अनदेखी करने में लगे हुए हैं। चिदंबरम ने कांग्रेस के घोषणा पत्र को केवल तैयार ही नहीं किया था, बल्कि उसे मीडिया के समक्ष पेश भी किया था। क्या यह उचित नहीं होगा कि सरकार को कृषि कानून वापस लेने और गलती मानने की नसीहत दे रहे चिदंबरम खुद की ओर से तैयार घोषणा पत्र वापस लेने की घोषणा करें और साथ ही यह स्वीकार करें कि कांग्रेस से भूल हुई? यह तय है कि ऐसा नहीं होने वाला, लेकिन उन्हें और साथ ही कांग्रेस के अन्य नेताओं को यह समझ आना चाहिए कि कृषि कानूनों को लेकर उन्होंने जो रवैया अपना लिया है, वह उनकी फजीहत कराने वाला है। समस्या केवल यह नहीं है कि कांग्रेस कृषि कानूनों का विरोध कर रही है, बल्कि यह भी है कि उसने उनके खिलाफ दुष्प्रचार अभियान छेड़ दिया है। इस अभियान की अगुआई खुद राहुल गांधी कर रहे हैं। उनकी मानें तो कृषि कानूनों के जरिये भी प्रधानमंत्री अपने दो-तीन उद्यमी मित्रों की मदद करना चाहते हैं। ऐसे घिसे-पिटे आरोप यही बताते हैं कि कांग्रेस के पास इन कानूनों के विरोध का कोई तार्किक आधार नहीं और इसीलिए वह झूठ पर आ टिकी है।


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