Budget 2022 : कोविड ने बढ़ाई वित्तमंत्री की चुनौती
जिस पर वित्तमंत्री को निश्चित रूप से गौर करना चाहिए।
महामारी के कारण पिछले दो सालों से अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन स्तर पर पड़े नकारात्मक प्रभाव के बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी, जिसमें उन्हें सबसे बुरी तरह से प्रभावित लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती होगी। विश्लेषकों का मानना है कि अमीरों को सख्त कर अनुपालन के लिए मजबूर किया जाना चाहिए, ताकि संसाधन जुटाए जा सकें।
वित्तमंत्री यदि करों में वृद्धि करती हैं, तो इसके लिए सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी तैयार रहना चाहिए, ताकि महामारी से सर्वाधिक पीड़ित लोगों के लिए आवंटन बढ़ाया जा सके। सरकार को 6.8 फीसदी विकास दर का लक्ष्य हासिल करने में कर राजस्व मददगार हो सकता है।
कर राजस्व सरकार का कुछ दबाव कम करेगा, ताकि वह स्वतंत्र होकर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अधिक फंड जारी कर सके, गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त राशन के कार्यक्रम को जारी रख सके और किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत हर तीन महीने में दी जाने वाली मदद जारी रखी जा सके।
जहां तक आत्मनिर्भरता की बात है, मोदी सरकार के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम में निरंतरता की जरूरत है, लेकिन उसकी राह में कुछ खास तरह की अड़चनें हैं। सरकार इसके तहत कई क्षेत्रों को कवर करने और सभी को कुछ न कुछ देने की कोशिश करेगी। सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए बड़े विनिर्माण क्षेत्र पर और विशेष रूप से उन पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जो हमारे नागरिकों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
अनौपचारिक क्षेत्र को अनिवार्य मदद की जरूरत है, ताकि निजी खपत में वृद्धि हो सके। सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) अर्थव्यवस्था के विकास के इंजन हैं, लेकिन कोविड-19 के कारण उनमें गंभीर रूप से बाधा आई है। उन्हें कामकाजी पूंजी के साथ ही ऋण की सुविधाओं की जरूरत है। यह उम्मीद की जा रही है कि सरकार एमएसएमई के लिए क्रेडिट गारंटी योजना को आगे बढ़ा सकती है।
एमएसएमई को महामारी के अलावा 2016 में नोटबंदी और 2017 में लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कारण भी नुकसान हुआ, लेकिन यदि बाधाएं दूर कर दी जाएं, तो यह क्षेत्र भविष्य में अच्छे परिणाम दे सकता है। महामारी के कारण शिक्षा क्षेत्र भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है और ऐसे में वित्तमंत्री ने अतार्किक तरीके से आवंटन को 2020-21 के 99,311 करोड़ रुपये से घटाकर 2021-22 के बजट में 93,223 करोड़ रुपये कर दिया था।
महामारी के दो वर्षों में ऑनलाइन कक्षाओं ने गरीब छात्रों, विशेष रूप से बिना इंटरनेट की सुविधा वाले गांवों और डिजिटल पहुंच रखने वाले संपन्न वर्ग के बीच शिक्षा की पहुंच का अंतर बढ़ाया है। इसमें सुधार करने की जरूरत है, नहीं तो यह युवाओं की एक पीढ़ी को बर्बाद कर सकता है।
वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने की जरूरत है, जो कि 2020-21 में 3.5 फीसदी से बढ़कर सात फीसदी हो गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान व्यक्त किया है कि कोविड-19 के अर्थव्यवस्था पर पड़े प्रभाव के बावजूद वर्ष 2022-23 में भारत की विकास दर नौ फसदी रह सकती है और वर्ष 2023-24 में 7.1 फीसदी रह सकती है, यह महामारी को देखते हुए बुरी खबर नहीं है।
शहरी गरीब भी महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, लिहाजा बजट में उनके लिए नई रोजगार गारंटी योजना की उम्मीद की जा सकती है। ध्यान रहे, पिछले दशक में गरीबों की संख्या में कमी आई थी और यह 2011 में 34 करोड़ से घटकर 2019 में 7.8 करोड़ रह गए। लेकिन कोविड-19 महामारी के दो सालों की अवधि में गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ बढ़ गई और गरीबों की कुल संख्या 21 करोड़ हो गई।
सीएमआईई की रिपोर्ट दिखाती है कि बेरोजगारी दर 6.5 फीसदी से बढ़ाकर आठ फीसदी हो गई और शहरी क्षेत्र में 2021 में यह आंकड़ा 9.3 फीसदी था। जाहिर है, रोजगार पैदा करने के लिए विशेष पैकेज की आवश्यकता है, जिस पर वित्तमंत्री को निश्चित रूप से गौर करना चाहिए।