Written by जनसत्ता: सुरक्षा मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) ने विशेष रूप से चीन से लगती सीमा की सुरक्षा के लिए गठित भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) की सात नई बटालियन के गठन को मंजूरी दे दी है। सीमा पर चीन की लगातार सैन्य आक्रामकता के बावजूद पिछले एक दशक में पहली बार आइटीबीपी की बटालियनों की संख्या में इजाफे का फैसला किया गया है।
अब 1,808 करोड़ की लागत और कम से कम नौ हजार नए जवानों के साथ आइटीबीपी चीन से लगती 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा पर 47 नई सुरक्षा चौकियां बनाएगा और ये सभी अरुणाचल प्रदेश में होंगी। साथ ही पूर्वी लद्दाख तक हर मौसम में पहुंच के लिए सामरिक दृष्टि से बेहद अहम नीमू-पदम-दारचा सड़क मार्ग पर सिनकुन ला सुरंग के निर्माण को भी मंजूरी दी गई है।
लगभग 16,580 फुट की ऊंचाई पर बनने वाली इस सुरंग के दिसंबर 2025 तक पूरा हो जाने के बाद पूर्वी लद्दाख के लिए इस सबसे छोटे बारहमासी रास्ते से सैन्य साजोसामान और रसद की तेजी से आपूर्ति आसान हो जाएगी। खास बात यह कि यह मार्ग चीनी और पाकिस्तानी तोपों की पहुंच से दूर है। इसके अलावा, समिति ने सीमाई गांवों के विकास और वहां से पलायन को रोकने के लिए 'वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम' (वीवीपी) का एलान किया है।
ये तीनों फैसले सीमा पर चीनी आक्रामकता से निपटने के लिए सरकार की रणनीति की ओर इशारा करते हैं। इसके तहत सीमाई इलाकों के गांवों में संपर्क सुविधाओं को बढ़ाया जाएगा, ताकि वे सुरक्षा बलों की आंख और कान का काम कर सकें। आइटीबीपी के जरिए निगरानी और त्वरित कार्रवाई की क्षमता बढ़ाने के साथ सैन्य साजोसामान और रसद की आपूर्ति के लिए सुरक्षित मार्गों का निर्माण होगा।
अरुणाचल सीमा पर आइटीबीपी की सुरक्षा चौकियों और शिविरों के निर्माण से सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण इलाकों की निगहबानी और घुसपैठ की किसी भी कोशिश के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की क्षमता में इजाफा होगा। सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि 'वीवीपी' से सीमाई इलाकों में चीनी गतिविधियों के बारे में सूचनाओं का प्रवाह बढ़ेगा और इन गांवों में विकास से स्थानीय लोगों में भारत के प्रति भरोसा मजबूत होगा।
सीमा पर अग्रिम सैन्य अड्डों तक हर मौसम में रसद की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए सुरंगों का निर्माण भारत की प्राथमिकता है। ये सुरंगें सिर्फ आवाजाही के लिए नहीं, बल्कि गोला-बारूद, मिसाइल, र्इंधन और खाने-पीने की चीजों के भंडारण के लिए भी उपयोगी हैं।
इसी के साथ सरकार को अब बारह किलोमीटर लंबी सासेर ला सुरंग के प्रस्तावित निर्माण को भी मंजूरी देने में देर नहीं करनी चाहिए, ताकि दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी मार्ग पर चीनी हमले या बमबारी की जद में आने की स्थिति में उत्तर पूर्वी लद्दाख की सबसे अग्रिम हवाई पट्टी दौलत बेग ओल्डी तक पहुंचने का एक वैकल्पिक मार्ग कायम हो सके।
यह स्वागतयोग्य है कि चीन सीमा को लेकर भारत सरकार अपने परंपरागत रक्षात्मक रुख से किनारा कर रही है। दशकों से तक सीमा पर सड़कों और अन्य आधारभूत ढांचे के निर्माण को लेकर सरकारें आशंकित रही हैं। उनका मानना था कि युद्ध की स्थिति में चीनी फौज इन सड़कों पर कब्जा कर आवाजाही के लिए इनका इस्तेमाल कर सकती है।
निश्चित रूप से अब वह स्थिति नहीं है। भारत अब सीमा पर सड़क मार्गों और सैन्य तैयारी में काफी आक्रामक तरीके से इजाफा कर रहा है। अगर चीन की 'सलामी स्लाइसिंग' यानी छोटे-छोटे टुकड़ों में कब्जा करके कुछ सालों में इलाके का नक्शा बदल देने की रणनीति को विफल करना है तो सीमा पर निगरानी, संपर्क और सैन्य तैयारियां बढ़ाने का कोई विकल्प नहीं है।
क्रेडिट : jansatta.com