By NI Editorial
अमेरिका में जो रहा है, उससे ये धारणा और गहराएगी कि अमेरिका प्रगति की राह छोड़ कर उलटी दिशा अपना चुका है। वैसे में वह प्रतिस्पर्धी व्यवस्था यानी चीन को कैसे वैचारिक चुनौती देगा, इस सवाल पर वहां के बौद्धिक जगत को सोचना चाहिए।
जिस समय दुनिया में दो अलग-अलग तरह की व्यवस्थाओं के बीच बेहतर दिखने होड़ लगी है, तब अमेरिका की न्यायपालिका अपने देश के लिए मुसीबत खड़ी करती दिख रही है। इस साल अभी छह महीने पूरे नहीं हुए हैं, लेकिन देश में आम जगहों पर गोलीबारी की 300 से ज्यादा घटनाएं हो चुकी हैँ। फिर भी न्यूयॉर्क की एक अदालत ने उस कानून को रद्द कर दिया, जिसके तहत खुले बाजार में हथियार खरीदने और खुलेआम उसे लेकर चलने पर रोक लगाने की कोशिश की गई थी। न्यायालय ने कहा कि ऐसी रोक अमेरिका वासियों के मूल अधिकार का हनन है। इस फैसले के ठीक एक दिन बाद अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात को वैध ठहराने का अपना फैसला पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 1973 के रो एंड वेड नामक फैसले को पलटा। अब खबर है कि कई राज्यों में 'गर्भपात की गोलियों' (एबॉर्शन पिल्स) की उपलब्धता सीमित करने कोशिशों पर ध्यान केंद्रित कर दिया गया है। अमेरिका में मिफेप्रिस्टोन और मिसोप्रोस्टॉल नाम की गोलियों का इस्तेमाल गर्भ गिराने के लिए होता है। इन गोलियों के सेवन को अमेरिका के फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने मान्यता दे रखी है। इन गोलियों का इस्तेमाल गर्भ ठहरने के पहले दस हफ्तों के अंदर किया जाता है। इन गोलियों की ऑनलाइन डिलीवरी भी होती है।
अमेरिका के जिन राज्यों ने गर्भपात पर रोक लगाई है, अब वहां इन गोलियों की डिलीवरी रोकने के उपायों पर विचार चल रहा है। 2020 में अमेरिका में कुल जितने गर्भपात हुए, उनमें 54 फीसदी गोलियों के जरिए कराए गए। 2017 में ये आंकड़ा 39 प्रतिशत था। पिछले दिसंबर में एफडीए ने इन गोलियों की ऑनलाइन सप्लाई पर लगी रोक हटा ली थी। फिर भी अंदेशा है कि रिपब्लिकन शासित राज्य गोलियों को प्रतिबंधित करने का प्रयास कर सकते हैँ। ऐसा हुआ, तो ये धारणा और गहराएगी कि अमेरिका अब प्रगति की राह छोड़ कर अवनति का रुख कर चुका है। वैसे में वह प्रतिस्पर्धी व्यवस्था यानी चीन को कैसे वैचारिक चुनौती देगा, इस सवाल पर वहां के बौद्धिक जगत को सोचना चाहिए।