मदरसा शिक्षा में सुधार हेतु बने ठोस रणनीति, केवल धार्मिक पक्ष को न बनाया जाए मुद्दा
यह वास्तविकता है कि देश ऐसे कई उदाहरण देख चुका है,
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह वास्तविकता है कि देश ऐसे कई उदाहरण देख चुका है, जब साधन और साध्य में उत्पन्न विरोधाभास ने कई नीतिगत फैसले को पंगु साबित कर दिया है। जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को प्रारंभ में जिस तरह बाध्यकारी बनाया गया, इसे लोगों ने सहजता से स्वीकार नहीं किया, जबकि बाद के वर्षो में जनसंख्या नियंत्रण को मातृत्व और शिशु स्वास्थ्य से जोड़कर बनाई गई नीति काफी प्रभावी साबित हो रही है। मदरसा शिक्षा में सुधार और असम निरसन विधेयक, 2020 के अगर विभिन्न पक्षों की बात करें, तो कहीं न कहीं यह सरकारी मदरसा में आधुनिक शिक्षा को लागू करता है जिसमें धर्म गुरुओं की भूमिका काफी अहम होगी।
यहां यह महत्वपूर्ण है कि भारत में छह लाख से अधिक निजी मदरसे चलते हैं जिसका खर्च मुस्लिम समाज 2.5 फीसद जकात की रकम से निकालते हैं। प्राइवेट मदरसे में भी काफी संख्या में गरीब मुस्लिम बच्चों को धार्मिक शिक्षा दी जाती है। ऐसे में यह ध्यान देना होगा कि अगर सरकार धाíमक पक्षकारों को साथ लाने में कामयाब हो जाती है तो गरीब मुस्लिम बच्चों को आधुनिक और कौशल युक्त शिक्षा में आधारभूत संरचना पर ज्यादा आíथक बोझ नहीं पड़ेगा। सबका साथ सबका विकास में यह काफी अहम है कि भारत की इस विभिन्नता को हमें एक सकारात्मक दिशा देने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहिए। गौरतलब है कि 56 साल बाद ऐसा पहला मौका था, जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष समारोह को बतौर मुख्य अतिथि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित किया। इस संबोधन में कई पक्षों पर चर्चा हुई, पर यहां सरोकार यह है कि ऐसे मौके ही विरोधाभास खत्म करने का अवसर प्रदान करते हैं।
असम निरसन विधेयक, 2020 का सिर्फ धाíमक आधार पर विश्लेषण करना उचित नहीं, जैसा कि सत्ताधारी और विपक्षी कर रहे हैं। भारत में मदरसा शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर हाशिये पर खड़े मुस्लिम समाज को मुख्यधारा में जोड़ने में व्यापक मदद मिल सकती है। यह ध्यान देने योग्य प्रश्न है कि मुस्लिम शिक्षा में सुधार का विषय कोई नया नहीं है। देश की आजादी के पूर्व और उसके बाद भी यह विषय काफी महत्वपूर्ण रहा है। मदरसा शिक्षा में सुधार की बात देश के पहले शिक्षा मंत्री एवं भारत रत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद ने हमेशा से की थी। यह एक नकारात्मक पक्ष ही है कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के निधन के करीब 51 बरस बाद मदरसों की शिक्षा को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने की मुहिम की शुरुआत हो सकी। शिक्षा मंत्रलय ने राज्य अल्पसंख्यक आयोग की वार्षकि बैठक में, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की तर्ज पर एक मदरसा बोर्ड बनाने की घोषणा कर दी, इस तर्क के साथ कि इस तरह से मदरसे की शिक्षा लेने वाले विद्यार्थी भी सरकारी नौकरी में लाए जा सकेंगे। अत: अब जरूरत है कि मदरसा शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए एक ठोस रणनीति पर काम हो।