लाइफ स्टाइल

नींद में लापरवाही, मतलब जान जोख़िम में डालना

Kiran
13 Jun 2023 2:31 PM GMT
नींद में लापरवाही, मतलब जान जोख़िम में डालना
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पूरे दिन की थकान मिटाने के लिए आमतौर पर हमें कम से कम सात से आठ की घंटे अच्छी नींद ज़रूरी होती है. मेडिकली इसे कई सारी परेशानियों से बचने के लिए पर्याप्त माना जाता है, लेकिन आजकल लोग और ख़ासतौर से युवा, नींद पूरी करने के प्रति काफ़ी लापरवाह होते जा रहे हैं. नींद पूरी ना करने का ख़ामियाजा उन्हें कई सारी बड़ी बीमारियों के रूप में भुगतना पड़ता है.
कई रिसर्च की मानें, तो नींद पूरी ना होने की वजह से युवाओं को वह बीमारियां घेरने लगती हैं, जो पहले बड़ी उम्र के लोगों में पाई जाती थीं. आज की पीढ़ी में युवाओं की लिस्ट में सात से आठ घंटे की अच्छी नींद लेना शामिल नहीं होता है. और कुछ ऐसे भी हैं, जो आलस के चलते दिनभर बेड या सोफ़े पर पड़े रहते हैं, जिसका नजीता होता है कि रात में उन्हें नींद नहीं आती है और ना ही उसे पूरी करने की सोचते हैं.
नींद पूरी ना होने की वजह से युवाओं में किस तरह की समस्या हो सकती है, इस बारे में हमने डॉक्टर आशीष तिवारी, फ़िज़ीशियन, एसीएस हेल्थ ऐंड केयर वेलनेस, से बात की. उन्होंने कहा कि “अनियमित और अनियंत्रित दिनचर्या के कारण अधिकांश युवा पूरी नींद नहीं लेते हैं. और इसमें भी नींद को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स, जिनका बिना समय देखे धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जाता है. फिर कारण चाहे पढ़ाई हो, चैटिंग हो या फिर इंटरनेट सर्फ़िंग. इन सबकी वजह से युवा देर रात तक जागते हैं, जिसकी वजह से दिमाग़ को सही समय पर नींद का सिग्नल नहीं मिल पाता है और स्लीप साइकिल प्रभावित होती है, जो धीरे-धीरे अनिद्रा यानी इन्सोम्निया बीमारी की वजह बन जाती है.”
इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के नुक़सान
साल 2019 में अनिद्रा को लेकर वेकफ़िट नामक कंपनी ने ग्रेट इंडियन स्लीप स्कोर्ड नामक सर्वे किया था. वेकफ़िट द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार 90 फ़ीसदी लोग सोने से पहले मोबाइल, लैपटॉप और टीवी जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का प्रयोग करते हैं. लोग देर रात तक वेब सिरीज़, गेम, फ़िल्में, सोशल मीडिया आदि देखते रहते हैं. मनोरोग विशेषज्ञों के अनुसार यह एक तरह से स्क्रीन ऐडिक्शन है, जो लोगों को अपनी गिरफ़्त में लेते जा रहा है. सोने से ठीक पहले इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के इस्तेमाल से ब्रेन ऐक्टिव हो जाता है और इससे नींद के लिए ज़रूरी मेलाटोनिन नामक रसायन प्रभावित होता है और ठीक से नींद नहीं आती है.
साइकियाट्रिस्ट राहुल घाड़गे की मानें तो आज के समय में अनिद्रा के मुख्य कारणों में इलेक्टॉनिक गैजेट्स सबसे ऊपर हैं. ये सोचने की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं, जिसकी वजह से आप सोते समय भी कुछ ना कुछ सोचते रहते हैं, जिससे आपकी नींद प्रभावित होती है. दूसरी परेशानी डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी. डिप्रेशन में व्यक्ति नकारात्मक बातें सोचता है और एंग्ज़ायटी में ना हो सकने वाली बात या जिसके होने की मात्र एक फ़ीसदी चांस रहता है ऐसी बातों में लगा रहता है.
स्लीप साइकिल का रिसेट हो जाना
डॉक्टर आशीष कहते हैं कि “नींद की एक साइकल 90 से 100 मिनट की होती है और एक व्यक्ति को अपनी नींद पूरी करने के लिए से ऐसी चार से पांच साइकिल की ज़रूरत होती है. अगर रोजाना इसमें लापरवाही बरती जाती है, तो स्लीप साइकिल रिसेट होने लगती है और अनिद्रा की स्थित पैदा हो जाती है. अगर लंबे समय तक यही लापरवाही बरती जाती है, तो इन्सोम्निया के अलावा भी कई तरह की बीमारियां जकड़ लेती हैं.”
कुछ और वजहों से भी नींद पूरी कर पाना मुश्क़िल होता है-जैसे
तनाव
काम की वजह से लंबी यात्राएं
लगातार नाइट शिफ़्ट करना
रात में देर से भोजन करना
कुछ दवाओं का लगातार प्रयोग
दिमाग़ी बीमारी
अत्याधिक चाय-कॉफ़ी का सेवन
स्मोकिंग
शारीरिक गतिविधियों की कमी
बढ़ती उम्र, आदि.
अनिद्रा के लक्षण
अनिद्रा की परेशानी है, या इन्सोम्निया लॉंग और शॉर्ट टर्म की होती है. शॉर्ट टर्म में यह कुछ हफ़्तों तक रहती है लेकिन लॉन्ग टर्म में महीनों या वर्षों तक बनी रहती है. अगर आपको इन्सोम्निया है, तो आपको कई परेशानियों से जूझना पड़ेगा. जैसे-
रात के समय सोने में कठिनाई
सोने के कुछ देर बाद ही नींद खुल जाना
7-8 घंटे की नींद ना ले पाना
सो कर उठने के बाद थकान महूसस होना
चिड़चिड़ापन बढ़ जाना
किसी काम में मन ना लगना
काम के दौरान ग़लतियों का बढ़ते जाना आदि.
अन्य बीमारियां
नींद पूरी ना होने की वजह से इन्सोम्निया के अलावा भी कई बीमारियां घेरती हैं, जैसे-
पीरियॉडिक लिंब मूवमेंट डिसऑर्डर (नींद में समय-समय पर हाथ व पैरों का हिलना)
रेस्टलेस लेग सिंड्रोम (पैरों का बिना इच्छा या कारण के हिलना)
ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (रात में सोते समय ऊपरी श्वसन तंत्र में अवरोध्स के कारण बार-बार कुछ समय के लिए सांस का रुक जाना)
गैस्ट्रोइंस्टाइनल रिफ्लेक्स सिंड्रोम (पेट का अम्ल का गले या मुंह तक चढ़ जाना)
नार्कोलेप्सी (दिन में अचानक तेज़ी से ऊंघने लगना)
खर्राटे लेना
सांस लेने में तक तक़लीफ़
सोते समय पसीना आना
अधिक सपने देखना
नींद में चलना, आदि.
दिल पर पड़ता है प्रभाव
हाल के कुछ वर्षों में 35 साल से कम उम्र के लोगों में भी हार्ट अटैक की समस्या देखने को मिल रही है, जो की चिंता का विषय है. यदि आप अपने नींद के साथ लापरवाही बरत रहे हैं, तो सावधान हो जाएं, क्योंकि इसका सीधा असर आपकी पूरी दिनचर्या पर पड़ता है. आप दिनभर थका हुआ महसूस करते हैं, व्यायाम नहीं करते हैं और सुस्त पड़े रहते हैं, जिससे रक्त प्रवाह पर असर पड़ता है और आप का हार्ट पंपिंग सिस्टम भी प्रभावित होता है, जो हार्ट अटैक का कारण बन सकता है. इसलिए नींद में लापरवाही ना बरतें और दिल संबंधित बीमारियों से बचने के लिए स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें.
बचाव के तरीक़े
सोने और उठने का समय तय करें.
सुबह या शाम के समय शारीरिक व्यायाम ज़रूर करें.
मेडिटेशन करें, जिससे अनिद्रा की परेशानी से राहत मिलेगी.
उन दवाओं के बारे में अपने डॉक्टर को सूचित करें, जिनसे आपकी अनिद्रा की परेशानी होती है.
कॉफ़ी-चाय और एल्कोहल की मात्रा में कमी लाएं.
सोने से ठीक पहले अधिक मात्रा में भोजन करने से बचें.
सोने के क़रीब एक घंटे पहले कमरे की टीवी और मोबाइल को बंद कर दें.
दोपहर में सोने से बचें. आधे घंटे की पावर नैप ठीक है, लेकिन अधिक नहीं.
युवाओं के लिए 6-8 घंटे और वृद्धों के लिए 5-6 घंटे की नींद काफ़ी है.
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