लाइफ स्टाइल

Gut Health: गट हेल्थ सुधरने के लिए दवाइयों से ज्यादा फायदेमंद हैं ये उपाय

Sanjna Verma
18 Jun 2024 11:00 AM GMT
Gut Health: गट हेल्थ सुधरने के लिए दवाइयों से ज्यादा फायदेमंद हैं ये उपाय
x
Gut Health: दिमाग, दिल, फेफड़े समेत सारे अंगों का स्वास्थ्य पेट पर टिका होता है। अगर आपके पेट का FUNCTION बिगड़ जाए तो यह दूसरे अंगों पर भी असर दिखाने लगता है। इसलिए लोग कहते हैं कि दिल का रास्ता पेट से ही होकर गुजरता है। अगर आप पूरे शरीर को हेल्दी बनाना चाहते हैं तो पहले पेट को स्वस्थ बनाएं।पेट के स्वास्थ्य से मतलब पूरी गट हेल्थ से है। गट हेल्थ को हेल्दी बनाने का तरीका बताया है। उनके मुताबिक गट हेल्थ को सुधारने के लिए दवाइयों से बेहतर खाने पर फोकस करना है। इससे आप लंबे समय तक फायदा उठा सकते हैं।
गट हेल्थ क्या है?
गट हेल्थ के अंदर कई सारी चीजें आती हैं। आपकी पूरी दोनों आंतें, लिवर और पैंक्रियाज इसके प्रमुख हिस्से हैं। इनकी HEALTH कंडीशन कैसी है और यह किस तरह काम कर रहे हैं। यह सभी चीजें गट हेल्थ को निर्धारित करती हैं।
गट हेल्थ सही रखने की जरूरत क्यों?
DOCTOR ने बताया कि आजकल लाइफस्टाइल तेजी से बदल रही है। बाहर का खाना, धूम्रपान व शराब का सेवन, इससे काफी समस्या आ रही है। इससे कम उम्र में ही लिवर, पैंक्रियाज या आंतों के रोग से जूझ रहे हैं। इसलिए सबसे पहले गट हेल्थ सुधारना जरूरी हो गया है।
खाने पर दें ध्यान
खाना सबसे महत्वपूर्ण घटक है। हम जो खा रहे हैं, वो घर का ही हो। इसमें अनप्रोसेस्ड चीजें हों। घर के चावल, सब्जी, दाल पर फोकस करें ताकि फास्ट फूड से दूरी बनें। ये ज्यादा खतरनाक खाद्य पदार्थ हैं, जो धीरे-धीरे गट हेल्थ को बिगाड़ सकते हैं।
प्रोबायोटिक फूड का सेवन
शराब के कारण लिवर और पैंक्रियाज के मरीज बढ़ रहे हैं। इस पर रोक लगा देनी चाहिए। साथ ही धूम्रपान व स्मोकिंग से भी इन बीमारियों के मरीजों की तादाद बढ़ रही है। यह समझें कि हमारी आंतों में हेल्दी व अनहेल्दी बैक्टीरिया होते हैं। हमारे खाने व लाइफस्टाइल से इनकी तादाद बदलती है। अच्छे खाने और हेल्दी लाइफस्टाइल से
GOOD
बैक्टीरिया बढ़ते हैं। साथ ही प्रोबायोटिक दवाइयां भी इसमें मदद करती हैं। दही एक नेचुरल प्रोबायोटिक है।
कैंसर व ट्यूमर का पता लगाना
अच्छे LIFESTYLE के बाद भी गट हेल्थ खराब हो सकती है। जैसे हम रुटीन ब्लड टेस्ट करवाते हैं, वैसे ही गट हेल्थ के टेस्ट उपलब्ध हैं। हालांकि भारत में लोगों को इसके बारे में कम जानकारी है। 50 साल की उम्र से ऊपर कोलोनोस्कोपी व एंडोस्कोपी की जरूरत होती है। इससे गांठों को जल्दी पकड़ा जा सकता है।
Next Story