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एक छोटी-सी कहानी, जो बताती है दर्द का मनोविज्ञान

Kiran
13 Jun 2023 2:11 PM GMT
एक छोटी-सी कहानी, जो बताती है दर्द का मनोविज्ञान
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दर्द एक शारीरिक तक़लीफ़ तो बेशक़ है ही, पर हर दर्द का अपना एक मनोविज्ञान भी होता है. जिसका इलाज कुछ उसी तरह से किया जाना चाहिए.’ हमें पता है, इस बात को सुनकर वे लोग बहुत नाराज़ हो जाएंगे, जो किसी न किसी दर्द से परेशान होंगे. पर यक़ीन मानिए हमारा इरादा उनके दर्द को कम करके आंकने का तो बिल्कुल भी नहीं है. इस लेख का पूरा उद्देश्य समझने के लिए पहले यह एक कहानी पढ़िए.
सुल्तानपुर के सुल्तान को पेट में दर्द शुरू हुआ. वह किसी भी तरह बंद नहीं हो रहा था. नाज़ो से पले सुल्तान का उस दर्द ने सुख-चैन सब लूट लिया था. सुल्तान ने यह हुक्म ज़ारी करवाया कि जो भी भी हकीम मुझे यह दर्द भुलवा देगा मैं उसे मनचाहा इनाम दूंगा और अगर वह इसमें क़ामयाब नहीं हुआ तो फिर उसे सूली पर चढ़ा दिया जाएगा. कई हकीमों ने सुल्तान का इलाज करने की कोशिश कि लेकिन वह उस दर्द को ख़त्म नहीं कर पाए. बड़े से बड़े हकीम और वैद्य उस दर्द के आगे पस्त हो गए. लिहाज़ा शर्त के मुताबिक उन सभी को सूली पर चढ़ा दिया गया. होशियारपुर में एक हकीम रहते थे यह सब सुनकर वे भी आए और उन्होंने सुल्तान से कहा कि, उनके पास एक नुस्ख़ा है जिसके जरिए सुल्तान अपना पेट दर्द भूल जाएंगे. वज़ीर ने याद दिलाया कि हकीम साहब आपको शर्त पता है ना कि अगर आप आपके दावे में क़ामयाब नहीं हुए तो फिर आपको भी दूसरे हकीमों की तरह सूली पर चढ़ा दिया जाएगा. हकीम साहब ने कहा कि,‘उन्हें यह शर्त अच्छे से मालूम है. अगर मैं क़ामयाब नहीं हुआ तो सूली पर चढ़ा दिया जाऊंगा लेकिन अगर क़ामयाब हुआ तो मुझे मेरे गांव होशियारपुर की सुल्तानी दे दीजिएगा.’ सुल्तान ने कहा कि,‘मंज़ूर है.’
फिर हकीम साहब सुल्तान के क़रीब गए और उन्होंने पूछा कि,‘आपको दर्द कहां पर है हमारे अज़ीज़ सुल्तान.’ सुल्तान ने अंगूठियों से लदे हुए नाज़ुक हाथों को पेट पर यहां वहां घुमाते हुए बताया कि उसे यहां-यहां दर्द है. हकीम साहब ने भी इत्मीनान से पेट का जायज़ा लिया फिर कहा कि,‘मैं समझ गया हूं मर्ज़ क्या है.’ अब सुल्तान आप ज़रा अपना बायां घुटना मुझे दिखाइए. सुल्तान और वज़ीर ने साथ-साथ कहा कि,‘हकीम साहब घुटने से भला आप मर्ज़ के बारे में क्या जानोगे?’ हकीम साहब ने कहा कि,‘मैं घुटने से ही आपके पेट के दर्द का इलाज कर दूंगा, आप ज़रा दिखाइए तो.’ सुल्तान ने अपना रेशमी पायजामा ऊपर किया. हकीम साहब ने घुटना अच्छे से टटोला और फिर अपने झोले में हाथ डालकर एक हथोड़ा निकाला. हथोड़ा निकालकर उन्होंने सुल्तान के घुटने पर ज़ोर से दे मारा. सुल्तान की दर्द के मारे चीख़ें निकल गई. वह हकीम पर ज़ोर से चिल्लाया,‘कमबख्त यह तूने क्या किया? मेरा घुटना तोड़ दिया.’ हकीम साहब ने सुल्तान से पूछा,‘हुज़ूर यह तो बताइए अब आपके पेट का दर्द कैसा है?’ सुल्तान ने कहा,‘कमबख्त घुटना इतना ज़्यादा दु:ख रहा है कि पेट दर्द का पता ही नहीं चल रहा कि वह है भी या नहीं.’ हकीम साहब ने कहा,‘तो जनाब दीजिए मेरा इनाम क्योंकि, मैंने अपना काम कर दिया है-अब आपको पेट का दर्द पता नहीं चल रहा है.’… और इस तरह होशियारपुर को एक होशियार सुल्तान मिल गया था.
*पुनःश्च-यह एक आम मनोविज्ञान है कि लोग बड़ा दुख पाकर छोटे दुखों को भूल जाया करते हैं. बादशाह, राजा, हाकिम, सुल्तान और नेता यह बात अच्छे से जानते हैं इसलिए जब जनता छोटी-छोटी दिक्कतों पर चिल्ला-पुकार मचाती है तो वह उनके सामने कोई दूसरी बड़ी मुसीबत पेश कर देते हैं और जनता पुरानी दिक्क़तों को भूल कर नई मुसीबत में उलझ जाती है. होशियारपुर के हकीम साहब का नुस्ख़ा लाजवाब है. यह सदियों से काम करता आ रहा है. बस सबसे बड़ा सच यह है कि यह सुल्तानों से ज़्यादा आवाम पर असर करता है. क्या आपके भी पेट में भी दर्द है?
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