अफस्पाः संवेदनशील मुद्दा

नगालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से पूर्वोत्तर विशेषकर राज्य में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को निरस्त करने की मांग की है।

Update: 2021-12-22 02:17 GMT

आदित्य नारायण चोपड़ा; नगालैंड विधानसभा ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से पूर्वोत्तर विशेषकर राज्य में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को निरस्त करने की मांग की है। साथ ही प्रस्ताव में भारत-नगालैंड राजनीतिक संवाद के वार्ताकारों से तनावग्रस्त राज्य में शांति बहाली के लिए बातचीत को तार्किक निष्कर्ष पर लाने का आग्रह किया गया है।आतंकवाद के ​िखलाफ अभियान में लगे सेना के जवानों या सुरक्षा बलों और उनके अधिकारियों द्वारा अधिकारों के बेलगाम इस्तेमाल से समूचा सत्ता तंत्र कठघरे में है। नगालैंड की घटनाओं से यही प्रमाणित होता है। मोन जिले के ओटिंग गांव में उग्रवादियों के आने की सूचना के बाद सेना के गश्ती दल ने एक वाहन दिखाई देते ही उस पर गोलीबारी शुरू कर दी, इसमें 6 लोगों की जान चली गई। जबकि वाहन पर सवार एक कोयला खदान के मजदूर थे। यह घटना गलत पहचान के कारण हुई। जवानों ने सूचना पाकर लोगों की पहचान करने का कोई प्रयास नहीं किया। जब स्थानीय ग्रामीणों ने इस घटना पर आक्रोश व्यक्त ​किया तो फिर जवानों ने फायरिंग की और उसमें भी 8 लोग मारे गए। 14 लोगाें की हत्या बहुत ही दुखद है। इन हत्याओं के बाद अब 6 दशक पुराने अफस्पा कानून को लेकर विरोध बढ़ने लगा है। नगालैंड के मुख्यमंत्री के अलावा मेघालय के मुख्यमंत्री भी इसका विरोध कर रहे हैं। सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को उपद्रव ग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही की मदद के लिए 11 सितम्बर, 1958 में पारित किया गया था, वहीं जब 1989 के आसपास जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में वहां भी इसे लगा दिया गया था। किसी भी राज्य या किसी भी क्षेत्र में यह कानून तभी लागू ​किया जाता है जब राज्य या केन्द्र सरकार उसे 'अशांत क्षेत्र' अर्थात 'डिस्टर्ब एरिया क्षेत्र' घोषित कर देती है। कानून के तहत सेना या सशस्त्र बल को किसी भी संदिग्ध व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई, बि​ना कि​सी वारंट के संदिग्ध व्यक्ति की ​गिरफ्तारी, बिना किसी वारंट के किसी के घर की तलाशी का अधिकार ​मिला हुआ है। इसके अलावा यदि सशस्त्र बलों का अंदेशा है कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या अन्य बिल्डिंग में छुपे हुए हैं और जहां से हथियारबंद हमले का अंदेशा हो तो उस आश्रय स्थल पर ढांचे को तबाह किया जा सकता है। कई बार सुरक्षा बलों पर इस एक्ट का दुरुपयोग करने का आरोप लग चुका है। ये आरोप फर्जी मुठभेड़ों, यौन उत्पीड़न आदि के मामले को लेकर लगे हैं। कभी-कभी जब अति हो जाती है तो लोगों का ​िवरोध बढ़ता है। वर्षों से इस एक्ट को मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला करार ​िदया जा रहा है। ऐसे आरोप भी सामने आते हैं कि इस कानून को स्थानीय स्तर पर आम नागरिकों का हथियार बनाया गया है।संपादकीय :आपका स्नेह आशीर्वाद , बहुत याद आता हैजम्मू-कश्मीर की बढ़ी सीटेंकेरल की खूनी सियासतआधार कार्ड और मतदाता कार्डअफगानिस्तान पर दिल्ली संवादपंजाबः नये गठजोड़ व पार्टियांपूर्व में जम्मू-कश्मीर विधानसभा भी अफस्पा को हटाने की मांग कर चुकी है। नगालैंड में 14 लोगों की हत्या के बाद नगालैंड पुलिस ने जिम्मेदार जवानों के खिलाफ अनेक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है। सेना ने कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी भी बैठाई है। यह साफ है कि सेना ने नागरिकों की पहचान में गलती की है। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी ​निष्पक्ष जांच का आश्वासन देकर लोगाें को न्याय दिलाने की बात की है। नगालैंड के नागरिक संगठनों और सभी राजनीतिक पक्षों ने इस घटना पर क्षोभ व्यक्त किया है। यह विडम्बना ही है कि शांति कायम करने के लिए जिस कानून का अचूक उपाय के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, उस पर ही सवाल उठने लगे। वैसे कानूनों के दुरुपयोग पर देश में पहले भी बवाल उठता रहा है। किसी जमाने में पोटा को लेकर तूफान उठ खड़ा हुआ था। पहले 'पोटी' था फिर पोटा बन गया। फिर पोटा हटाया गया, फिर उसकी जगह नया एक्ट लाया गया। राजद्रोह विरोधी कानून का दुरुपयोग आज तक हो रहा है लेकिन यह वास्तविकता है कि आतंकवाद,नक्सलवाद या किसी भी तरह की विद्रोही गतिविधियों से निपटने के लिए कड़े कानूनों की जरूरत होती है। सख्त कानूनों के अभाव में हम आतंकवाद पर काबू पा ही नहीं सकते। सेना का मानना है कि आत​ंरिक सुरक्षा या ​फिर किसी राज्य में कानून व्यवस्था सुधारने के लिए सेना के पास पुलिस जैसे आईपीसी, सीआरपीसी इत्यादि कानून नहीं हैं। ऐसे में शांति बहाली के लिए सेना को अफस्पा कानून बेहद जरूरी है। सैनिक किसी भी आपरेशन में जाते वक्त अगर ​दिलोदिमाग में यही सोचता रहे तो ​फिर आतंकवादी को मारने के बाद उसके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया जाएगा तो वह राष्ट्र की सुरक्षा कैसे कर पाएगा। सैनिकों का जोश ठंडा हो जाएगा तो वे अपने कर्त्तव्य कैसे निभा पाएंगे?अनेक सैनिक आज भी अदालतों में केस लड़ रहे हैं। मणिपुर और अन्य राज्यों में फर्जी मुठभेड़ों को लेकर सेना अफसर और जवान केस लड़ चुके हैं। ऐसे में अफस्पा हटाने का मुद्दा काफी संवेदनशील है। राज्य सरकारें जनाक्रोश को देखते हुए भावुक्ता में विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित कर देती हैं लेकिन एक्ट हटाना या उसे मजोर बनाना राष्ट्र की सुरक्षा के हितों के विपरीत होगा। सेना और अन्य सुरक्षा बलों को देखना होगा कि गोली तभी चलाई जाए जब हालात सम्भालने के सभी विकल्प खत्म हो जाएं। सूचनाओं की पुष्टि पुख्ता ढंग से की जाए। पूर्वोत्तर राज्य राजनीतिक और भौगोलिक तौर पर संवेदनशील है, सैन्य अभियान दूरगामी नजरिये से चलने चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कड़े कानूनों के पक्षधर हैं और यह जरूरी भी है।

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