Vijay Garg: विश्व बैंक द्वारा जारी विश्व विकास रपट 2024 वैश्विक अर्थिक परिदृश्य में मध्यम आय जाल की चिंता तथा इससे निकलने के उपाय सुझाती है। आर्थिक विकास के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के बावजूद पिछले सैंतीस वर्षों के बाद मात्र चौंतीस देशों को मध्यम आय जाल बाहर निकलने में कामयाबी मिल सकी है। आज दुनिया भर की लगभग छह अरब आबादी वाले 108 देश मध्यम आय जाल नकी जकड़ में हैं, जहां आर्थिक विकास दर अपेक्षाकृत कमजोर है। वहां मंदी बार-बार पलटती रही है। बढ़ती वैश्विक भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय चुनौतियों के कारण तीव्र आर्थिक विकास में दिक्कतें हैं। इसलिए मध्यम-आय देशों को विशेष प्रयास करने होंगे। विकसित भारत की संकल्पना के सम्मुख भी मध्यम- आय जाल चुनौती है, जिससे भारत को बचना होगा।
"विश्व बैंक, वर्ष 1987 से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के चार वर्गों उच्च आय, उच्च-मध्यम आय, निम्न मध्यम आय तथा निम्न आय में विभाजन करता रहा है। सैंतीस वर्षों बाद, उच्च आय वाले देशों की संख्या 41 से बढ़ कर 86 गई, जिनकी वैश्विक आबादी तथा जीडीपी में हिस्सेदारी क्रमशः 16 और 60 फीसद है। निम्न आय वाले देशों की संख्या 49 से कर 26 रह जाने के बाद वैश्विक आबादी तथा जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी क्रमशः नौ फीसद और 0.6 फीसद रह गई। दुनिया की लगभग तीन चौथाई आबादी तथा जीडीपी में 38 फीसद हिस्सा रखने वाले मध्यम आय देशों की संख्या 74 से बढ़ कर 108 हो गई। मध्य- आय देशों में 1970 के दशक से निरंतर प्रति व्यक्ति आय अमेरिका के दसवें हिस्से से भी कम रही है। किसी देश की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय के 11 फीसद तक पहुंचने के बाद व्यवस्थागत दिक्कतों के कारण मध्यम आय जाल में फंस जाती है।
निम्न आय देश निवेश को निर्देशित कर तीव्र विकास दर हासिल करते हैं। मध्यम-आय अर्थव्यवस्था वाले देशों में बढ़ते ऋणभार बढ़ता संरक्षणवाद, भू- -राजनीतिक तनाव, विदेशी व्यापार तथा निवेश में गिरावट जैसे कारण सुस्त आय वृद्धि के साथ-साथ आर्थिक दुश्वारियां बढ़ा
रहे हैं। निजी निवेश के साथ-साथ सार्वजनिक निवेश भी घटे हैं, लोकलुभावन वादों वाली सरकारों के सामने आर्थिक गुंजाइशें भी कम हैं। मगर मध्यम आय देश आज भी भी निवेश बढ़ाने की पुरानी तथा परंपरागत रणनीतियों पर ही भरोसा बनाए हुए हैं। पूंजी निवेश विकास रणनीति निम्न आय देशों की अपेक्षा मध्यम आय देशों में कम ही कामयाब हैं।
मध्यम आय देशों में उच्च आय अर्थव्यवस्था बनने की महत्त्वाकांक्षा स्वाभाविक है। मध्यम-आय जाल से बचने के लिए विश्व विकास रपट तीन कारकों की पहचान करती है- निवेश, आधुनिक तकनीक का प्रसार तथा नवाचार निम्न आय अर्थव्यवस्थाएं निवेश प्रेरित नीतियों पर ध्यान केंद्रित करती हैं। मध्यम आय अर्थव्यवस्थाओं को उच्च आय स्तर प्राप्त र उसे बरकरार रखने एवं आर्थिक संरचनाएं विकसित करने के लिए विकास क्रम के आधार पर उत्तरोत्तर दो मिश्रित नीति संक्रमणों से गुजरना होगा।
भारत जैसे मध्यम आय देशों को संरचनात्मक दक्षता के सतही तथा परंपरागत उपायों जैसे उद्यम आकार, आय असमानता तथा ऊर्जा स्रोतों की अपेक्षा पूंजी, श्रम तथा ऊर्जा के बेहतर उपयोग के साथ दक्षता पर भरोसा करना होगा। इनको मूल्य संवर्द्धन, सामाजिक आर्थिक गतिशीलता और कम कार्बन उत्सर्जन तकनीक पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
मध्यम आय देशों में बड़े निगम, सार्वजनिक उद्यम और प्रभावी उद्यमिता उपयोगी हो सकते हैं। पूंजी के कुशल उपयोग के लिए लघु तथा मध्यम उद्यमों के सम्मुख बाधाएं पैदा करने तथा बड़े उद्यमों को परेशान करने से बचना होगा। उद्यम प्रबंधन को आधुनिक तथा बाजार से जोड़ते हुए अलाभकर उद्यमों से निजात पाना भी जरूरी है।
मध्यम आय जाल से बाहर आने में पूर्व तथा नवस्थापित दोनों ही उद्यम मददगार हो सकते हैं। पूर्व स्थापित उद्यम पैमाना लाते हैं, जो किसी देश की तकनीकी क्षमताओं का वैश्विक प्रसार एवं विस्तार करते हैं। नवाचार जरिए पुरानी व्यवस्थाओं, उद्यमों, नौकरियों, प्रौद्योगिकी, निजी अनुबंधों, नीतियों और सार्वजनिक संस्थानों का प्रतिस्थापन जरूरी है। आमतौर पर सार्वजनिक उद्यम यथास्थिति बनाए रखने, कम कार्बन उत्सर्जन प्रतिस्पर्धा से बचने का प्रयास करते हैं। अनेक अर्थव्यवस्थाएं कम कार्बन प्रौद्योगिकी उत्पादों को प्रोत्साहित कर रही हैं। संस्थागत तौर पर प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर, मध्यम-आय देश लोगों का समर्थन सुनिश्चित कर बाजार शक्तियों के दुरुपयोग को रोक सकते हैं। विदेशी व्यापार, निवेश और प्रतिभा सम्मान तकनीक उन्नयन में मदद करता है। मध्यम-आय अर्थव्यवस्थाओं को विकास और ऊर्जा सुरक्षा की चुनौतियों का सामना करना होता है। मध्यम-आय देश-निवेश के साथ- साथ नवाचार को बढ़ा कर जलवायु और ऊर्जा संकट का लाभ उठाने के लिए 'डीकार्बोनाइजेशन' तकनीक का समर्थन कर सकते हैं। कार्बन उत्सर्जन को घटाने के लिए मध्यम आय देश प्रभावी कीमत तंत्र के जरिए उत्तरोत्तर कम कार्बन ऊर्जा को बढ़ावा दे सकते हैं। सस्ती तथा विश्वसनीय ऊर्जा तेज आर्थिक विकास की बुनियाद है, पर ऊर्जा दक्षता और कम कार्बन उत्सर्जन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है।
भारत को वहां तक पहुंचने में लगभग पचहत्तर वर्ष लग जाएंगे। फिर भी, विश्व विकास रपट विकसित भारत की संकल्पना को साकार करने की कोशिशों में भारत को सतर्क करती है। भारत को अभी उच्च आय अर्थव्यवस्था बनने की लंबी यात्रा तय करनी है। यहां आर्थिक विकास की जबरदस्त संभावनाएं हैं। भारत जनांकिकी लाभांश की स्थिति में है, ऊर्जा दक्षता और कम कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य निर्धारित हैं, कृत्रिम मेधा के क्षेत्र में भारत में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, हरित तकनीक प्राथमिकता बनी है, डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना निर्माण तेज है। नीतिगत स्पष्टता बढ़ी है, शिक्षा एवं कौशल विकास, डिजिटल इंडिया तथा मेक इन इंडिया पर जोर है। अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के उपयोग के साथ- साथ नवाचार भी बढ़ा है। साथ ही चुनौतियां भी नए कलेवर में सामने हैं। भारत में सामाजिक-राजनीतिक संस्थान एवं व्यवस्थाएं बदलाव पर हठधर्मिता छोड़ने को तत्पर नहीं नहीं हैं। गरीबी, बेरोजगारी तथा सामाजिक-आर्थिक असमानता का सिलसिला बरक बरकरार है। राजनीतिक संस्थाओं को लोकलुभावन के जरिए सत्ता हथियाने से गुरेज नहीं है।
उपायों के भारत को निम्न मध्यम आय से उच्च मध्यम आय तक का लंबा सफर तय तय करने के लिए विकास केंद्रित नजरिया रखना होगा। भारत को विश्व विकास | रपट से परेशान होने की कतई जरूरत नहीं है। अभी तो भारतीय अर्थव्यवस्था ने रफ्तार पकड़ी है। परिस्थितियां अनुकूल हुई हैं। सामाजिक-आर्थिक बदलाव की संभावनाएं स्पष्ट हैं। भारत को मध्यम- आय जाल से घबराने के बजाय मजबूत संकल्पों तथा तय लक्ष्यों के साथ विकसित भारत की ओर रफ्तार बढ़ाना है।
विजय गर्ग सेवानिवृत्त प्रिंसिपल शैक्षिक स्तंभकार स्ट्रीट कौर चंद एमएचआर मलोट पंजाब