जब मलेरिया से पूरी दुनिया थी परेशान, तब भारत में मौजूद था इसका इलाज

वैज्ञानिकों के लिए अबतक एक अनसुलझी गुत्थी रही है.

Update: 2021-01-06 13:41 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। करीब 3,50,000 साल पहले जब इंसान अफ्रीका से बाहर निकलना शुरू हुए, तो उन्होंने सवाना घास के मैदान, दक्षिण-पश्चिम एशिया के रेगिस्तान जैसे सूखे इलाकों की तलाश की. उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में भोजन और पानी की प्रचुर मात्रा तो थी, लेकिन मलेरिया का कारण बनने वाले मच्छरों का भी यह ठिकाना था.

70,000 साल पहले इंसानों ने गीले, गर्म और नमी वाले क्षेत्र भारत में क्यों प्रवेश किया, यह वैज्ञानिकों के लिए अबतक एक अनसुलझी गुत्थी रही है. एक नए अध्ययन में इसका जवाब मिला है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय जर्नल 'क्वाटरनरी इंटरनेशनल' में प्रकाशित अध्ययन की प्रमुख लेखिका डॉ अत्तिला जे ट्रेजर कहती हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली हजारों साल पहले से भी बीमारियों से लड़ने में और उसे खत्म करने में सक्षम रही है, तब भी जब दुनिया के अन्य मलेरिया प्रभावित क्षेत्रों में इसकी एक समान कोई आयुर्वेदिक प्रणाली मौजूद नहीं थी.

हंगरी के वैज्ञानिकों की रिसर्च में सामने आई चौंकाने वाली जानकारी
हंगरी की पनोनिया यूनिवर्सिटी में सस्टेनेबिलिटी सॉल्यूशंस रिसर्च लैब के वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च किया कि आखिर क्यों हजारों साल पहले इंसानों ने शुष्क क्षेत्रों का रुख किया. अफ्रीका के बाहर बसने और इंसानों के पलायन के पीछे वजहों की तलाश करने के लिए वैज्ञानिकों ने 449 पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन किया, जिनमें से 94 भारत में हैं.

इंसानों के पहले से दुनिया में हैं मच्छर
डॉ ट्रेजर कहती हैं कि अध्ययन में सामने आया कि मलेरिया जैसी मच्छर जनित बीमारियां इंसानों के पलायन और माइग्रेशन के पीछे की बड़ी वजह हो सकती है. मलेरिया परजीवी मच्छर 23 से 28 मिलियन साल पहले यानी इंसानों के आने से लाखों साल पहले से मौजूद थे. यानी कि ऐसा माना जाता है कि इंसानों के पूर्वजों के शरीर में कम से कम एक परजीवी मौजूद था.
कहा जा सकता है कि मलेरिया के परजीवी इंसानों के साथ-साथ विकसित होते चले गए. करीब 60-70 हजार साल पहले इंसानों का मूवमेंट दक्षिण एशिया की ओर हुआ. भारत में मलेरिया के 40 से 60 फीसदी मामलों का कारण दो परजीवी, प्लास्मोडियम फाल्सीपेरम और प्लास्मोडियम विवैक्स बनते हैं.

करीब 12 हजार साल पहले यानी नवपाषाण क्रांति से पहले, विवैक्स के नॉर्मल वेरिएंट भारत में मौजूद होने की संभावना जताई गई है, जबकि गंभीर फाल्सीपेरम भारतीय उपमहाद्वीप में मौजूद नहीं रहे होंगे. हिंद महासागर के तटीय क्षेत्रों में पाया जाने वाला फाल्सीपेरम पैरासाइट, अब ईरान (स्ट्रेट ऑफ होर्मुज) और पाकिस्तान (काठियावाड़ प्रायद्वीप) में रहा, जो कि पश्चिमी भारत में नहीं था.

प्राचीन चिकित्सा पद्धति में भी मौजूद था मलेरिया का उपचार
शोधकर्ता डॉ ट्रेजर कहती हैं कि भारत में जैसे-जैसे मलेरिया के पैरासाइट्स डेवलप होने शुरू हुए होंगे, भारत धीरे-धीरे ऐसी बीमारियों को दूर करने के लिए औषधीय प्रणाली का एक रूप विकसित करता रहा. शायद प्राचीन चिकित्सा पद्धति में आयुर्वेद के जुड़ने का यही क्रम रहा होगा. हालांकि जलवायु परिस्थितियों में भी स्वाभाविक रूप से समय और व्यापार में बदलाव आया. मानव जाति के तकनीकी और सांस्कृतिक विकास के कारण भी बीमारी के भौगोलिक परिदृश्य में बदलाव आया.
यह अध्ययन मूलत: इस बात की ओर इशारा करता है कि हजारों साल पहले जब इंसानों के पूर्वज शुष्क स्थानों की ओर पलायित होना शुरू हुए तो इसके पीछे मच्छरजनित बीमारियां बड़ा कारण रही होंगी. मच्छर अक्सर गीले और नमी वाले स्थानों पर पनपते हैं. ऐसे में भारतीय उपमहाद्वीप की ओर इंसानों के पलायन के पीछे ये भी बड़ी वजह रही होगी कि भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति में भी मलेरिया जैसी मच्छरजनित बीमारियों का उपचार उपलब्ध था.


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