वैज्ञानिकों का दावा: इस साल अपने चरम पर पहुंचा, बीते 15 सालों में ओजोन छेद इतना बड़ा और इतना गहरा कभी नहीं हुआ हुआ
हाल ही अंटार्कटिका में प्रतिदिन ओजोन छेद पर नजर रखने वाले शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट की मदद से ओजोन छिद्र का मुआयना किया।
1985 से जारी हैं प्रयास
दरअसल 1985 के बाद जब अंटार्कटिका पर ओजोन गैसों की लगातार कमी दर्ज की गई। इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने इस छेद को सिकोडऩे के लिए उपाय करने के संयुक्त प्रयास शुरू किए। दरअसल ओजोन ऑक्सीजन के तीन यौगिक हैं जो वातावरण में प्राकृतिक रूप से खुद ही विकसित होता है। यह पृथ्वी की सतह से करीब 16 किमी (10 Mile) ऊपर ही सूरज की हानिकारक पराबैंगनी विकरिण (Ultra Violet Radiation) को रोककर हमें हमें सुरक्षित रखता है। सीएएमएस के निदेशक विंसेंट-हेनरी प्यूख का कहना है कि ओजोन छेद हर साल अलग-अलग तरह से आकार लेता है। इस साल ओजोन छेद के बड़ा होने के बावजूद वैज्ञानिकों को विश्वास है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 1987 के तहत ओजोन को नष्ट करने वाले हेलोकार्बन पर प्रतिबंध की शुरुआत के बाद से यह छेद धीरे-धीरे ठीक हो रहा है।