ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पिघल रहा आइसलैंड, दो दशक में ग्लेशियरों ने गंवाया इतने किमी का इलाका

पिघल रहा आइसलैंड

Update: 2021-06-01 14:34 GMT

आइसलैंडिक वैज्ञानिक पत्रिका जोकुल की स्टडी में कहा गया है कि आइसलैंड में मौजूद ग्लेशियर देश की 10 फीसदी जमीन पर फैले हुए हैं. 2019 में ये 10,400 वर्ग किलोमीटर तक खत्म हो चुके थे. 1890 के बाद से, ग्लेशियरों से ढकी भूमि में लगभग 2200 वर्ग किलोमीटर या 18 फीसदी की कमी आई है.

ग्लेशियरों की जानकारी रखने वाले लोगों, भूवैज्ञानिकों और भूभौतिकीविदों द्वारा हाल में की गई कैलकुलेशन के मुताबिक, ग्लेशियरों के आकार में हो रही इस कमी का अधिकतर 2000 के बाद शुरू हुआ है. विशेषज्ञों ने पहले चेतावनी दी थी कि आइसलैंड के ग्लेशियरों के 2200 तक पूरी तरह से गायब होने का खतरा है.
पिछले दो दशकों में जिस रफ्तार से बर्फ ने घटना शुरू किया है, वो लगभग 810 वर्ग किलोमीटर में आइसलैंड में फैले तीसरी सबसे बड़ी बर्फ की कैप हॉफ्सजोकुल (Hofsjokull) के कुल सतह क्षेत्र के बराबर है.
इस स्टडी के लेखकों ने बताया कि 1890 के बाद से आइसलैंड में ग्लेशियर क्षेत्रों में भिन्नताएं जलवायु में हो रहे बदलाव की एक स्पष्ट प्रतिक्रिया को दिखाती हैं. उन्होंने कहा, वे देश भर में बल्कि समकालिक रहे हैं. हालांकि, सबग्लिशियल ज्वालामुखी गतिविधि की वजह से कुछ ग्लेशियरों पर प्रभाव पड़ा है.
2014 में, ग्लेशियरों की जानकारी रखने वाले लोगों ने ओक्जोकुल ग्लेशियर (Okjokull glacier) को ग्लेशियर के रूप दी गई मान्यता को रद्द कर दिया. ऐसा आइसलैंड में पहली बार था. इसके पीछे की वजह ये थी कि ये डेड आइस से बना था और अब ग्लेशियरों की तरह आगे नहीं बढ़ रहा था.
अप्रैल में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, दुनिया के लगभग 2,20,000 ग्लेशियर लगातार तेज गति से बड़े पैमाने पर गायब हो रहे हैं. इस तरह ये इस सदी में वैश्विक समुद्री स्तर को बढ़ाने में बड़े पैमाने पर योगदान दे रहे हैं.
अमेरिका स्पेस एजेंसी NASA के टेरा सैटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों का विश्लेषण करते हुए, उन्होंने पाया कि 2000-2019 के बीच दुनिया के ग्लेशियरों ने हर साल औसतन 267 बिलियन टन बर्फ खो दी. टीम ने यह भी पाया कि इसी अवधि के दौरान ग्लेशियर के पिघलने की दर में तेजी से वृद्धि हुई.
टीम ने पाया कि 2000 और 2004 के बीच, ग्लेशियरों ने हर साल 227 बिलियन टन बर्फ को गंवाया. लेकिन 2015-2019 के बीच ग्लेशियरों की हर साल औसतन 298 बिलियन टन बर्फ पिघल गई.
इस स्टडी के इन नतीजों को 2022 में होने वाले जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतर सरकारी पैनल की आगामी मूल्यांकन रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा. बता दें कि ग्लेशियरों का पिघलना दुनिया के लिए एक नई चुनौती बनकर आया है. इससे तटीय क्षेत्रों के डूबने का खतरा बढ़ने लगा
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