अतिविनाशकारी कैसे हो जाते हैं उल्कापिंड, जानिए

क्या पृथ्वी (Earth) पर गिरने वाले उल्कापिंड (Meteroids) वाकई इतने खतरनाक हो सकते कि वे महाविनाश (Mass Extinction) का कारण बन जाएं

Update: 2021-12-17 13:07 GMT

क्या पृथ्वी (Earth) पर गिरने वाले उल्कापिंड (Meteroids) वाकई इतने खतरनाक हो सकते कि वे महाविनाश (Mass Extinction) का कारण बन जाएं. यह सवाल काफी समय से वैज्ञानिकों के लिए पहेली बना हुआ है. यह पहेली इसलिए भी ज्यादा उलझी थी क्योंकि कुछ उल्कापिंड तो महाविनाश का कारण बने थे, लेकिन दूसरे उससे भी बड़े उल्कापिंड ऐसा नहीं कर सके थे. नए अध्ययन में पिछले 60 करोड़ साल में हुए 44 उल्कापिंड टकरावों से निकलने अवशेषों के अध्ययन में पाया गया है कि टकराव के महाविनाश में बदलने में पोटैशियम फेल्ड्स्पार पदार्थ की हवा में फैलने की ज्यादा भूमिका थी ना कि केवल टकराव की. 

ऐसे महाविनाश (Mass Extinction) जब हुए थे उनका कारण टकराव के बाद का सर्दियों (Impact Winter) का मौसम था जिसमें बड़े पैमाने पर निकली धूल ने आसमान को ऐसा ढका जिससे सूर्य (Sun) से आने वाली रोशनी का धरती पर पहुंचना बंद हो गया. इससे पेड़ पौधों मरने लगे जिसके बाद उन्हें खाने वाले जानवर और यह सिलसिला खाद्य शृंखला में ऊपर तक चलता गया. इससे ऐसा लगता है कि बड़े उल्कापिंड जिनमें आकाश में ज्यादा धूल, राख या गैस उड़ाने की क्षमता होगी. इससे वैश्विक स्तर पर जैवमंडल पर ज्यादा बड़ा या व्यापक असर होता होगा.
हैरानी की बात यह है कि पृथ्वी (Earth) के भूगर्भीय रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं देखा गया है. लीवरपूल यूनिवर्सटी के सेडिमेंटॉलॉजिस्ट क्रिस स्टीवनसन का कहना है कि जब हमने एक साथ आंकड़ों को देखा तो यह हैरानी की बात थी. जब पृथ्वी का चौथा सबसे बड़ा टकराव (Imapct) हुआ था, जिसेस 48 किलोमीटर चौड़ा क्रेटर (Crater) बना था. तब जीवन सामान्य रूप से चलता रहा, लेकिन इसके आधे आकार के क्रेटर संबंधित टकराव ने महाविनाश की स्थिति ला दी. टकराव की सर्दियां आमतौर पर केवल कुछ ही साल तक ही रहती हैं, लेकिन उससे उड़ने वाली धूल एक लाख सालों तक आकाश में मौजूद रहती हैं.
यह अध्ययन जर्नल ऑफ जियोलॉजिकल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में स्पेन के टेक्नोलॉजीकल एंड रीन्यूएबल एनर्जी इंस्टीट्यूट के भूरसायनशास्त्री मैथ्यू पैंकहर्स्ट और उनके साथियों ने पिछले 60 करोड़ सालों के 44 उल्कापिंड टकरावों (Impact) से निकलने वाली धूल का विश्लेषण किया. स्टीवनसन ने बताया कि इस तरह से उल्कापिंड (Meteorite) से निकलने वाले खनिज के घटकों का आंकलन कर उनकी टीम ने दर्शाया कि हर बार, चाहे छोटा या बड़ा, जब भी कोई उल्कापिंड पोटैशियम फेल्ड्स्पार समृद्ध चट्टान से टकराया उसका संबंध महाविनाश (Meteorite Impact) की घटना से था और ऐसा पिछले 60 करोड़ सालों में हर बार हुआ.
शोधकर्ताओं ने बताया कि फेल्ड्स्पार(Feldspar) एल्यूमीनियम सिलिकेट की चट्टानें होती हैं जिनका मैग्मा से क्रिस्टलीकरण होता है. ये पृथ्वी (Earth) की पर्पटी के 60 प्रतिशत हिस्से में मौजूद हैं. पोटैशियम फेल्ड्स्पार बहुत सी मिट्टी में सामान्य रूप से पाया जाता है और यह उल्कापिंडों (Meteorite) के टकराव बाद हवा में फैलने वाले दूसरे पदार्थों की तरह प्रतिक्रिया नहीं करता है. यह सुरक्षित होता है और अप्रतिक्रियाशील रसायन होता है. लेकिन यह पदार्थ बादलों की संरचना को बदल सकता है.
शोधकर्ताओं ने पाया कि एक बार जब टकराव (Impact) का वायुमंडल (Atmosphere) पर प्रभाव कम होता है, तब हवा में जो भी रहता है उसका काम शुरू हो जाता है. यदि यह सामान्य मिट्टी की धूल होती है, तो जलवायु तंत्र फिर से संतुलित हो जाता है ,लेकिन यदि पोटैशियम फेल्ड्स्पा हवा में होता है, तो पृथ्वी पर दो में से एक स्थिति बन सकती है. या तो बादलों (Clouds) में बर्फ के क्रिस्टल पानी की बूंदों की तुलना में ज्यादा हो जाएंगे जिससे प्रकाश बादलों से पार होता हुआ पृथ्वी पर नहीं आ सकेगा जैसा कि ज्यादा पानी की बूंदों वाले बादलों में होता है.
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