पितृ देवताओं के स्वागत के लिए छत्तीसगढ़ में रोजाना किया जाता है ये काम, आप भी जानें

रोजाना किया जाता है ये काम, आप भी जानें

Update: 2023-09-27 09:46 GMT
हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। यह महीना पितृ बने हमारे पूर्वजों को समर्पित है। जब हमारे घरों में कोई बड़े और बुजुर्ग की मृत्यु हो जाती है, तब वे पितृ बन जाते हैं। शास्त्रों में पितरों को भगवान विष्णु का रूप बताया गया है। कहा जाता है कि पूरे साल में केवल एक बार यानी श्राद्ध पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृ के रूप में हमारे घरों में आते हैं और घर में मौजूद बड़ों के द्वारा दिए गए दान-पुण्य, तर्पण, पिंड दान को प्राप्त कर संतुष्ट होते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं। सभी जगह श्राद्ध पक्ष मनाने के अलग-अलग नियम है, लोग अपनी-अपनी मान्यता, धर्म और विधि के अनुसार अपने पितरों का स्वागत करते हैं। ऐसे में आज हम आपको छत्तीसगढ़ की एक खास परंपरा के बारे में बताएंगे, जहां पितरों को 16 दिनों तक खास तरह से पूरे सम्मान के साथ अपने घरों में बुलाया जाता है।
इस तरह से की जाती है पितरों की स्वागत
छत्तीसगढ़ में सभी हिंदू परिवारों के द्वारा पितृ पक्ष मनाया जाता है। चाहे गरीब हो या अमीर हर कोई अपने पितरों का स्वागत इस तरह से करते हैं। पितृ पक्ष शुरू होने के एक दिन पहले लोग अपने घरों की अच्छे से साफ-सफाई करते हैं, मिट्टी के घर वाले लोग गोबर से लिप कर चूना से पतोई करते हैं। खास तौर पर लोग अपने आंगन की देहरी के हिस्से की सफाई करते हैं।
दूसरे दिन पितृपक्ष लगने के बाद रोजाना आंगन की देहरी या घर के बाहर दरवाजे की देहरी के पास के हिस्से को रोजाना गोबरसे लिप कर उसमें आटा से चौक बनाया जाता है। इस चौक में केवल आटे का उपयोग होता है न कि रंगोली या किसी दूसरे चीजों का।
चौक बनाते हैं। चौक बनाने के बाद चौक के ऊपर कद्दू या तोरई की सब्जी का फूल या सफेद रंग के फूलको बिछाया जाता है।
चौक और फूल क्यों बिछाया जाता है
गोबर से लिप कर उस जगह पर चौकबनाने और उसमें फूल बिछाने को लेकर यह मान्यता है कि पितर देव जब तालाब या नदी से तर्पण लेकर घर आएंगे तो वे इसी चौक और फूल के ऊपर बैठेंगे। यह कार्य पितर देवताओं के स्वागत और सम्मान के लिए किया जाता है। चौक के ऊपर में सफेद और पीले रंग के फूलों को ही बिछाया जाता है। भूलकर भी लाल रंग के फूल को चौक के ऊपर नहीं रखना चाहिए नहीं तो पितर देव नाराज हो सकते हैं।
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