शनि स्त्रोत रचना की पौराणिक कथा, जानिए आप भी
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने शनि देव को दण्डाधिकारी का पद प्रदान किया है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव ने शनि देव को दण्डाधिकारी का पद प्रदान किया है। इसलिए शनिदेव व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार दण्ड देते हैं। उनके इसी रूप के कारण लोग शनि की साढ़े साती और ढैय्या आदि से परेशान रहते हैं। मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में एक बार शनि की महादशा से अवश्य गुजरना पड़ता है। शनि की इन महादशाओं के प्रकोप से बचने का सबसे सरल और सर्वोत्तम उपाय है राजा दशरथ कृत शनि स्त्रोत का नियमित रूप से पाठ करना। आइए जानते हैं शनि स्त्रोत की रचना और महात्म के बारे में...
शनि स्त्रोत की रचना की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार राजा दशरथ के शासन के दौरान ज्योतिषाचार्यों ने राज्य में 12 वर्ष का भीषण अकाल पड़ने की भविष्यवाणी की। ज्योतिषाचार्यों का कहना था कि यदि शनि ग्रह ने रोहणी नक्षत्र का भेदन कर दिया तो राज्य में भीषण अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी। अपनी प्रजा की रक्षा के उद्देश्य से राजा दशरथ, रथ पर सवार हो कर नक्षत्र मण्डल जा पहुंचे। राजा दशरथ ने शनि देव से मार्ग बदलने का अनुरोध किया और कहा यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो मुझे राज धर्म अनुरूप संहारास्त्र का प्रयोग करना पड़ेगा। शनिदेव ने राजा दशरथ की प्रजावत्सलता और कर्तव्यनिष्ठा से प्रसन्न हो कर उनका अनुरोध मान लिया।
शनिदेव का राजा दशरथ को वरदान
राजा दशरथ ने शनि देव की स्तुति के लिए शनि स्त्रोत का पाठ किया जिससे प्रसन्न हो कर शनि देव ने राजा दशरथ से और वर मांगने को कहा। राजा दशरथ ने शनि देव से कहा कि आप पृथ्वी वासियों को अपनी महादशाओं के दण्ड से मुक्त कर दें। शनि देव ने राजा दशरथ से कहा यह संभव नहीं है क्योंकि ग्रहों का कार्य मनुष्यों को उनके कर्म के अनुरूप फल प्रदान करना है। परंतु तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न होकर मैं वरदान देता हूं कि जो भी व्यक्ति शनि स्त्रोत का नियमित तौर पर पाठ रेगा उस व्यक्ति पर कभी भी शनि की किसी भी महादशा का बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा।