17 जुलाई को सूर्य सुबह तकरीबन 5 बजे पुनर्वसु नक्षत्र में रहते हुए कर्क राशि में प्रवेश करेगा। जिससे संक्रांति पर्व एक दिन पहले यानी रविवार को मनेगा, इसलिए स्नान-दान और पुण्य कामों के लिए संक्रांति का पुण्यकाल 16 जुलाई को दोपहर लगभग साढ़े 12 बजे से शाम 7 बजे तक रहेगा। अब अगले 6 महीने यानी मकर संक्रांति तक सूर्य दक्षिणायन ही रहेगा। हर महीने सूर्य के राशि परिवर्तन से मौसम भी बदलता है। जिससे अब 17 जुलाई, सोमवार से ही वर्षा ऋतु शुरू हो जाएगी। सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करता है तो वह उत्तर की ओर चलता है। उसी तरह जब कर्क में प्रवेश करता है तो दक्षिण की ओर जाता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक उत्तरायण के समय सूर्य उत्तर की ओर झुकाव के साथ गति करता है जबकि दक्षिणायन होने पर सूर्य दक्षिण की ओर झुकाव के साथ गति करता है, इसीलिए इसे उत्तरायण और दक्षिणायन कहते हैं। इसी कारण उत्तरायण के समय दिन लंबा और रात छोटी होती है, जबकि दक्षिणायन के समय में रातें लंबी हो जाती हैं और दिन छोटे होने लगते हैं। जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब देवताओं का मध्याह्न काल होता है। ये समय 16 जुलाई से 17 अगस्त तक रहेगा। इसके बाद सूर्य सिंह राशि में आ जाएगा और 17 सितंबर तक देवताओं का दिन रहेगा। इसके बाद देवों का सायंकाल समय शुरू हो जाएगा। देत्यों के दिन-रात इसके उलट होते हैं। यानी जब देवताओं का दिन होता है तब देत्यों की रात होती है। सूर्य के कारण धरती के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में ऋतुएं बदलती हैं। अब सूर्य के दक्षिणायन होने से धरती के उत्तरी गोलार्द्ध वाले देशों में धीरे-धीरे ठंड का मौसम आने लगेगा। वहीं दक्षिणी गोलार्द्ध वाले देशों में सूर्य की रोशनी ज्यादा देर तक रहने से वहां गर्मी का मौसम रहेगा। इस बार सूर्योदय से पहले ही सूर्य कर्क राशि में जाएगा। ज्योतिष के संहिता ग्रंथों के मुताबिक सुबह हो तो सुख देने वाली होती है। इस बार संक्रांति का नाम घोर है। जिसका रंग गुलाबी और वाहन बकरा है। ध्यान में बैठी हुई संक्रांति होने से इसका अशुभ फल नहीं रहेगा। संक्रांति का संकेत है कि जब तक सूर्य कर्क राशि में रहेगा। तब तक बैठे न रहें। यानी कुछ न कुछ करते ही रहें। इस संक्रांति में घी का दान करने का विधान बताया गया है।