जीवन में सही निर्णय लेना सीखें, पढ़े यह छोटी सी कहानी

व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला, मेरी शिक्षा तो समाप्त हो गई.

Update: 2021-02-24 07:14 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क | एक व्यक्ति कबीर के पास गया और बोला, मेरी शिक्षा तो समाप्त हो गई. अब मेरे मन में दो बातें आती हैं, एक ये कि विवाह करके गृहस्थ जीवन यापन करूं या दूसरी ये कि संन्यास धारण करूं. इन दोनों में से मेरे लिए क्या अच्छा रहेगा ये कृपया करके बताइए.

उसकी बात सुनकर कबीर ने कहा दोनों ही बातें अच्छी हैं. जो भी करना, वो बहुत समझकर करना और उच्चकोटि का करना ताकि भविष्य में पछतावा न हो. उस व्यक्ति ने पूछा उच्चकोटि का करना ? ये उच्चकोटि को अब मैं कैसे समझूं. कबीर ने कहा, किसी दिन प्रत्यक्ष देखकर बताएंगे. इसके बाद वो व्यक्ति रोज उत्तर प्रतीक्षा में कबीर के पास आने लगा. 

एक दिन कबीर दिन के बारह बजे सूत बुन रहे थे. खुली जगह में प्रकाश काफी था. तभी कबीर साहेब ने अपनी धर्म पत्नी को दीपक लाने का आदेश दिया. वह तुरन्त बिना किसी सवाल के दीपक जलाकर लाईं और उनके पास रख गईं. दीपक जलता रहा वे सूत बुनते रहे.

सायंकाल को उस व्यक्ति को लेकर कबीर एक पहाड़ी पर गए. जहां काफी ऊंचाई पर एक बहुत वृद्ध साधु कुटी बनाकर रहते थे. कबीर ने साधु को आवाज दी. महाराज आपसे कुछ जरूरी काम है कृपया नीचे आइए. बूढ़ा बीमार साधु मुश्किल से इतनी ऊंचाई से उतर कर नीचे आया. कबीर ने पूछा आपकी आयु कितनी है यह जानने के लिए नीचे बुलाया है.

साधु ने कहा अस्सी बरस. ये कह कर वह फिर से ऊपर चढ़ा. बड़ी कठिनाई से कुटी में पहुंचा, तभी कबीर ने फिर आवाज दी और नीचे बुलाया. साधु फिर आया. उन्होंने पूछा, आप यहां पर कितने दिन से निवास कर रहे हैं. वृद्ध ने बताया चालीस वर्ष से. फिर जब वह कुटी में पहुंचे तो तीसरी बार फिर उन्हें इसी प्रकार बुलाया और पूछा, आपके सब दांत उखड़ गए या नहीं. उसने उत्तर दिया, आधे उखड़ गए. तीसरी बार उत्तर देकर वह ऊपर जाने लगा, तब साधु की सांस फूलने लगी. पांव कांपने लगे. वे बहुत ज्यादा थक चुके थे, लेकिन फिर भी उन्हें क्रोध नहीं आया.

अब कबीर अपने साथी समेत घर लौटे तो साथी ने अपने प्रश्न का उत्तर पूछा. उन्होंने कहा तुम्हारे प्रश्न के उत्तर इन दोनों घटनाओं में मौजूद है. यदि गृहस्थ बनना हो तो ऐसे जीवनसाथी का चयन करना चाहिए जो हम पर पूरा भरोसा रखें और हमारा कहना सहजता से मानें. उसे दिन में भी दीपक जलाने की आज्ञा अनुचित नहीं मालूम पड़े. व्यर्थ कुतर्क नहीं करे. अगर साधु बनना हो तो ऐसा बनना चाहिए कि कोई कितना ही परेशान करे, पर क्रोध व शोक न हो. हर स्थिति में सहज और सम हों.

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