यदि हमारे पास धन है तो उससे किसी पर दबाव न डालें बल्कि उसका उपयोग दूसरों की सेवा में करें
यदि हमारे पास पैसा अधिक है तो हमें उसका सही उपयोग करना चाहिए और गलत चीजों से दूर रहना चहिये
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कहानी - भारत के प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक आचार्य विनोबा भावे रेल से यात्रा कर रहे थे। पुराने समय में रेलगाड़ी में गाने-बजाने वाले लोग अपनी कला का प्रदर्शन करते थे। रेल में भीख मांगने वाले लोग भी चढ़ जाते थे और फेरी वाले भी होते थे, अपनी चीजों को बेचने के लिए।
विनोबा भावे सामान्य श्रेणी के डिब्बे में सफर करते थे। विनोबाजी जिस डिब्बे में बैठे थे, उसमें एक फकीर जैसा व्यक्ति भजन गा रहा था। उसकी प्रस्तुति इतनी सुंदर थी, जैसे वह गायन और संगीत का बहुत बड़ा जानकार हो।
डिब्बे में सभी लोग उसका भजन सुन रहे थे। उस फकीर का उद्देश्य था कि भजन सुनाकर लोगों से कुछ न कुछ दान मिल जाए, लेकिन लोग उस फकीर को पैसे नहीं दे रहे थे।
एक अमीर आदमी भी वहां बैठा था। उसने कहा, 'तुम इन सभी लोगों से एक-दो पैसा मांग रहे हो। मैं तुम्हें पांच रुपए देता हूं। तुम्हारा कंठ बहुत अच्छा है। इस कंठ से मुझे तुम सिनेमा का कोई गीत सुनाओ।'
उस फकीर ने कहा, 'मेरा व्रत है कि मैं भजन ही गाऊंगा, क्योंकि उसमें भगवान का नाम होता है। मैं आपको सिनेमा का गीत नहीं सुना सकता।'
धनी व्यक्ति अहंकारी था। उसने रुपए बढ़ाना शुरू कर दिए। बात बढ़ते-बढ़ते सौ रुपए तक पहुंच गई। उस समय सौ रुपए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी, लेकिन वह गायक नहीं माना।
विनोबाजी भी ये सब देख-सुन रहे थे। वे खड़े हुए और धनी व्यक्ति से बोले, 'ये अगर तैयार नहीं है तो आप राशि क्यों बढ़ा रहे हैं। बात इसकी निष्ठा की है, लेकिन मेरी आपत्ति ये है कि आप इसकी कला के साथ ही अपने धन का भी अपमान कर रहे हैं। धन की राशि बढ़ाकर किसी को दबाव में डालकर उससे कोई ऐसा काम करवाना जो वह करना नहीं चाहता है, ये भी एक पाप है। अपने धन का सम्मान करें।'
ये बातें सुनकर धनी व्यक्ति को समझ आ गया कि उसने गलती कर दी है।
सीख - जब हमारे पास पैसा अधिक आ जाए तो उसे ऐसी जगह खर्च करें, जहां सच्ची सेवा होती हो। धन का प्रदर्शन न करें। अपने धन से दूसरों पर दबाव भी न डालें।