सावन के पांचवें सोमवार पर करें ये काम, प्रसन्न होंगे महादेव

Update: 2023-08-06 08:35 GMT
कल यानी 7 अगस्त को सावन का पांचवा सोमवार है। सावन के सभी सोमवार भगवान भोलेनाथ की पूजा के लिए समर्पित होते हैं। इस दिन शिव जी के भक्त व्रत रखते हैं और मंदिर जाकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। शिव जी को सभी देवों में सबसे उच्च स्थान प्राप्त है, इसलिए वे देवों के देव महादेव कहलाते हैं। वे कालों के भी काल महाकाल हैं। इनकी कृपा से बड़ा से बड़ा संकट भी टल जाता है। भगवान शिव बहुत ही आसानी से प्रसन्न हो जाने वाले देव हैं। उन्हें यदि कोई श्रद्धा पूर्वक केवल एक लोटा जल अर्पित कर दे तो भी वे प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। सावन के पांचवे सोमवार को बहुत खास माना जा रहा है। इस दिन रवि योग और शूल योग बन रहा है। ऐसे में शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कुछ उपाय और आरती जरूर करें।
आरती में कपूर का प्रयोग
भगवान शिव जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। ऐसे में सावन के पांचवें सोमवार पर भगवान भोलेनाथ की आरती करें और उसमें कपूर का इस्तेमाल जरूर करें। आरती के दौरान भगवान शिव का ध्यान करते हुए लौ में कपूर के टुकड़े डालते रहें और सुख-समृद्धि की कामना करें।
शीघ्र विवाह के लिए उपाय
सावन के पांचवें सोमवार पर संध्याकाल में शिव जी और मां पार्वती की आरती करें। साथ ही आरती के समय 'ॐ गौरी शंकराय नमः' और 'ॐ पार्वतीपतये नमः' का एक माला जाप करें। इस उपाय को करने से शीघ्र विवाह के बनते हैं।
सफलता के लिए उपाय
यदि कड़ी मेहनत करने के बाद भी करियर में मुताबिक सफलता नहीं मिल पा रही है तो आप सावन के पांचवें सोमवार पर गन्ने के रस से भगवान शिव का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से मनोवांछित सफलता मिलती है।
शिव जी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अर्द्धांगी धारा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसानन गरूड़ासन
वृषवाहन साजे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
मधु कैटव दोउ मारे, सुर भयहीन करे।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
पर्वत सोहें पार्वतू, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
जया में गंग बहत है, गल मुण्ड माला।
शेषनाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी।।
ओम जय शिव ओंकारा।।
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावे।।
ओम जय शिव ओंकारा।। ओम जय शिव ओंकारा।।
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