हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने फंसाया पेंच, नहीं करा सकी स्टूडेंट एक्टिविस्ट की रिहाई

छात्र-छात्राओं को अब तीन दिनों तक जेल की सींखचों के पीछे ही रहना होगा।

Update: 2021-06-16 18:01 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा था कि स्टूडेंट एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और आसिफ इकबाल को बेल पर रिहा किया जाए। लेकिन दिल्ली पुलिस को शायद इन तीनों का जेल से बाहर आना रास नहीं आ रहा। तभी वो एक ऐसा पेंच लेकर आ गई कि निचली अदालत झुंझलाई तो पर कोई तोड़ नहीं निकाल सकी। 24 घंटे में रिहा होने का सपने देख रहे तीनों छात्र-छात्राओं को अब तीन दिनों तक जेल की सींखचों के पीछे ही रहना होगा।

हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार तीनों आरोपियों को 50-50 हजार के पर्सनल बांड समेत इतनी ही राशि की दो स्योरिटी जमा करानी थी। उसके बाद तीनों को 24 घंटे के भीतर जेल से रिहा किया जाना था। आरोपियों ने फैसले के मुताबिक सारी औपचारिकताएं आज पूरी कर दीं। अलबत्ता दिल्ली पुलिस ने पेंच अड़ा दिया। दरअसल, पुलिस ने कोर्ट में पटीशन दाखिल करके कहा कि तीनों को हाईकोर्ट के बताए समय पर रिहा करना मुमकिन नहीं हो पाएगा, क्योंकि तीनों के परमानेंट एड्रेसेज की वेरिफिकेशन बाकी है। पुलिस का तर्क था कि तीनों अलग-अलग सूबों में रहते हैं, लिहाजा जांच का काम काफी पेंचीदा हो रहा है। आने-जाने की परेशानी भी है।
उधर, तीनों आरोपियों को हाईकोर्ट की तय समय सीमा यानि 1 बजे तक जेल से बाहर नहीं निकाला गया तो उन्होंने कोर्ट से अपील की। कोर्ट ने दोपहर में जब पुलिस से जवाब मांगा तो नया नाटक कोर्ट में दिखा। स्पेशल पब्लिक प्रॉस्यीक्यूटर की तलाश शुरू हुई तो उनके जूनियर के पास नंबर ही नहीं मिला। किसी तरह से संपर्क हुआ तो उन्होंने कोर्ट को बताया कि पुलिस के पेंच की जानकारी नहीं है।
सुनवाई के दौरान उन्होंने पुलिस की दलीलों को सही माना। उनका कहना था कि आरोपी झारखंड, असम और हरियाणा के स्थाई निवासी हैं। वेरीफाई करने में समय तो लगना स्वाभाविक है। कोर्ट में सीपीएम नेता वृंदा करात भी मौजूद थीं। वो नताशा नरवाल की स्योरिटी देने पहुंची थीं। स्पेशल पब्लिक प्रॉस्यीक्यूटर का कहना था कि बैंक से जुड़े जो दस्तावेज जमा कराए गए हैं उनकी जांच में भी समय लग रहा है। उनकी दलील थी कि प्रोसेस 3 दिनों में पूरा होगा। उसके बाद ही जेल से रिहाई मुमकिन हो पाएगी।
स्टूडेंट एक्टिविस्ट के वकील ने जोरदार विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि वो सारे दिल्ली में रह रहे थे। पुलिस ने उन्हें वहीं से अरेस्ट किया था। सारे दस्तावेजों पर दिल्ली का ही एड्रेस दर्ज है। चार्जशीट में भी ये ही पता लिखा गया है तो पुलिस उनके पैतृक घरों का पेंच क्यों फंसा रही है। उनका कहना था कि हाईकोर्ट का आदेश था कि दोपहर तक रिहाई हो। हमने अपना काम कर दिया तो बेवजह जेल में क्यों रखा जा रहा है। पुलिस की गलती वो क्यों परेशानी झेलें।
एडिशनल सेशन जज रविंदर बेदी ने जब पुलिस के वकील से पूछा कि कितना वक्त और लगेगा तो उनका कहना था कि स्योरिटी की पड़ताल के लिए कल तक का वक्त चाहिए। देवांगना असम की रहने वाली हैं तो राजधानी एक्सप्रेस से अफसर वहां जाएगा। जज का पारा एकदम से चढ़ा और प्रॉस्यीक्यूटर से पूछा कि आपके पास सारे संसाधन है…तो क्या केवल राजधानी ही बची है।
जज ने झुंझलाकर कहा कि आपकी दलील नहीं समझ आ रही। आपको लोकल एड्रेस पर जाकर वेरीफिकेशन करनी चाहिए। जज ने यहां तक कहा कि और समय देने का तर्क उनके पल्ले नहीं पड़ा। गौरतलब है कि दिल्ली दंगा मामले में आंतकरोधी कानून (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार जेएनयू की छात्राओं देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और जामिया छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को मिली जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस सुप्रीम कोर्ट जा पहुंची है। दिल्ली पुलिस ने तीनों छात्रों की जमानत का विरोध करते हुए याचिका दायर की है।
सूत्रों का कहना है कि पुलिस भले ही याचिका को चुनौती दे लेकिन जब तक सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं देता हाईकोर्ट का आदेश ही प्रभावी रहेगा। तीनों को जेल से बाहर करना होगा। अभी तक सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू भी नहीं की है।


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