पाली। राजस्थान अपने खान-पान और स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां की संस्कृति और परंपरा हमेशा से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती रही है। यहां कई ऐसे व्यंजन हैं, जो पूरी दुनिया में बेहद पसंद किए जाते हैं. यहां कई ऐसी मिठाइयां हैं, जो किसी खास त्योहार या मौके पर बनाई जाती हैं। उन्हीं में से एक है घेवर जो खासतौर पर मानसून के मौसम में खाया जाता है. पाली में यह हरियाली तीज से पहले ही बननी शुरू हो जाती है. वैसे तो घेवर पूरे प्रदेश के कई शहरों में बनाया जाता है, लेकिन पाली में बनने वाले घेवर की बात ही कुछ खास है. यहां से इस सीजन में घेवर देशभर में निर्यात किया जाता है. राखी के सीजन में पाली जिले में 80 से एक करोड़ रुपये तक का घेवर बिक जाता है. आइए आज जानते हैं कि गुलाब हलुआ और सूखे मेवे की मिठाइयों के लिए प्रसिद्ध घेवर को पाली में कैसे कहें और इसका इतिहास क्या है। राजस्थान में इस प्रसिद्ध व्यंजन के बिना तीज और रक्षाबंधन का त्योहार अधूरा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन त्योहारों पर महिलाएं इस मिठाई को अपने मायके ले जाती हैं।
घेवर राजस्थान की प्रमुख पारंपरिक मिठाई मानी जाती है। वहीं बात करें इसके इतिहास की तो घेवर की उत्पत्ति के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन इसके आविष्कार को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। पाली में बनने वाले घेवर की बात करें तो शुद्ध देसी घी में बनने वाली इस मिठाई को खासतौर पर हरियाली तीज से पहले पाली में हलवाई बनाना शुरू कर देते हैं. पाली जिले में कई मिठाई विक्रेता यह मिठाई बनाते हैं. पाली शहर में बार का घेवर बहुत प्रसिद्ध है. पाली में यह किलो के भाव से नहीं बल्कि टुकड़ों के भाव से मिलता है. 500 ग्राम का 9 इंच का घेवर, जिस पर बादाम, पिस्ता, कर्कट लगाया जाता है, जिसकी औसत कीमत 300 रुपये और रबड़ी लगाने के बाद कीमत 480 रुपये होती है. वहीं, पाली में 7 इंच 300 ग्राम का घेवर 220 रुपए और रबड़ी लगाने के बाद 360 रुपए में मिलता है। कई मिठाइयों के घेवर बेचने का रेट कहीं-कहीं अलग-अलग होता है। हलवाई राजवीर गुर्जर ने बताया कि घी, बेसन, मैदा और दूध को मिलाकर घोल बनाया जाता है. यह एक निश्चित सीमा तक संघनित होता है। इसके बाद घेवर बनाने के 4 सांचों को भट्टी पर देसी घी से भरी कड़ाही में रख देते हैं. घी को एक निश्चित आंच पर गर्म किया जाता है. इसके बाद घोल को उन चारों सांचों में थोड़ा-थोड़ा करके डाला जाता है. बाद में पूरा घेवर बनने के बाद इसे देसी घी से निकाला जाता है. बाद में उस पर बादाम, पिस्ता, केसर लगाया जाता है और रबड़ी घेवर की मांग पर ग्राहकों को रबड़ी दी जाती है।