केंद्रीय मंत्री बोले- सरकार, न्यायपालिका के बीच मतभेदों को टकराव नहीं माना जा सकता

Update: 2023-03-25 12:32 GMT

फाइल फोटो

चेन्नई (आईएएनएस)| लोकतंत्र में मतभेदों को अपरिहार्य बताते हुए केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेदों को टकराव नहीं माना जा सकता है। उन्होंने सरकार और न्यायपालिका के बीच किसी भी टकराव से इनकार किया। केंद्रीय कानून मंत्री मायलादुत्रयी में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत का उद्घाटन करने के बाद बोल रहे थे। इस अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी राजा उपस्थित थे।
सरकार और न्यायपालिका के बीच मतभेदों पर कुछ मीडिया रिपोटरें की ओर इशारा करते हुए, रिजिजू ने कहा कि लोकतंत्र में मतभेद होना तय है और ये ²ष्टिकोण में अंतर के कारण हैं लेकिन परस्पर विरोधी स्थिति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, इसका मतलब सरकार और सुप्रीम कोर्ट या विधायिका और न्यायपालिका के बीच टकराव नहीं है। यह टकराव नहीं है, बल्कि केवल मतभेद हैं जो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपरिहार्य हैं।
केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार न्यायपालिका के स्वतंत्र होने का समर्थन करती है और बेंच और बार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। उन्होंने कहा कि एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता और अदालतों में उचित शालीनता और अनुकूल माहौल होना चाहिए। देश पर एक तानाशाह राजा का शासन नहीं है और मतभेदों को भारतीय लोकतंत्र में संकट के रूप में नहीं लिया जा सकता है।
मंत्री ने कहा कि दोनों निकाय एक दूसरे की आलोचना कर सकते हैं लेकिन राष्ट्रहित में सभी को एक होना चाहिए। मंत्री ने तमिलनाडु में महामारी के दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन और निर्णय देने के लिए अदालतों की सराहना की। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में न्यायिक ढांचा कई अन्य राज्यों की तुलना में काफी बेहतर है। मंत्री ने कहा कि पिछले वर्ष के दौरान, तमिलनाडु राज्य में जिला अदालतों और अन्य अदालतों के लिए 9000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और उनका विभाग धन के उपयोग के लिए कड़ी मेहनत कर रहा ताकि अधिक धन की मांग की जा सके।
उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि आने वाले दिनों में भारतीय न्यायपालिका पूरी तरह से कागज रहित हो जाए। आने वाले दिनों में तकनीकी प्रगति के कारण सब कुछ सिंक्रनाइज किया जा सकता है और न्यायाधीश को साक्ष्य के अभाव में मामलों को स्थगित करने की आवश्यकता नहीं है। कार्य प्रगति पर हैं और लंबित मामलों का एक प्रमुख समाधान निकट भविष्य में है।
मंत्री ने यह भी कहा कि लंबित मामलों को दूर करने के लिए कार्यपालिका और न्यायपालिका को मिलकर काम करना चाहिए। भारत में प्रत्येक न्यायाधीश एक दिन में 50 से 60 मामलों की सुनवाई कर रहा है और अगर मुझे इतने मामलों से निपटना पड़ा तो मानसिक दबाव जबरदस्त होगा। मुकदमों की भारी संख्या के कारण, ऐसी आलोचनाएं हुईं कि न्यायाधीश न्याय देने में सक्षम नहीं, उन्होंने कहा कि यह सच नहीं था।
मंत्री ने बताया कि भले ही मामलों का तेजी से निपटारा किया गया था, लेकिन सुनवाई के लिए आने वाले मामलों की संख्या अधिक थी। उन्होंने कहा कि एकमात्र समाधान भारतीय न्यायपालिका को मजबूत करना और बेहतर बुनियादी ढांचा और बेहतर तंत्र होना है। उन्होंने सभी अदालतों से राज्य में सभी अदालती कार्यवाही में तमिल भाषा का उपयोग करने का आह्वान किया और कहा कि तकनीकी प्रगति के उपयोग के साथ, तमिल जो शास्त्रीय भाषा थी, एक दिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी इस्तेमाल की जा सकती है।
मंत्री ने यह भी कहा कि उनका मंत्रालय सामान्य कोर शब्दावली विकसित कर रहा है जहां भारतीय भाषाओं के कुछ सामान्य उपयोग होंगे, जो विशुद्ध रूप से तकनीकी प्रकृति के हैं। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना था कि आम लोगों को उनकी संबंधित भाषाओं में आदेश प्राप्त हों।
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