Prayagraj: हड़ताल प्रस्ताव को जजों में सर्कुलेट करने पर लगाई रोक

वकीलों की हड़ताल पर हाईकोर्ट सख्त

Update: 2024-09-30 06:58 GMT

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के वकीलों की हड़ताल को अवैध घोषित करने के बावजूद प्रदेश की जिला अदालतों में बार एसोसिएशनों द्वारा आये दिन हड़ताल पर जाने पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि वैसे भी अदालतें मुकद्दमों के भारी बोझ से दबी है, हड़ताल इसे और बढ़ा ही रही है।

कोर्ट ने प्रदेश के सभी जिला जजों को निर्देश दिया है कि बार एसोसिएशन के हड़ताल के प्रस्ताव को सभी जजों में सर्कुलेट न करें और बार संगठनों से उम्मीद जताई है कि वे अदालती कामकाज सुचारू रूप से चलने देने में सहयोग करेंगे।

कोर्ट ने कहा है कि अधिवक्ता की मौत पर शोक सभा बार काउंसिल के प्रस्ताव अपराह्न 3.30 बजे से करने का पालन करेंगे ताकि अदालती कामकाज प्रभावित न हो सके। कोर्ट ने निबंधक से अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को रिपोर्ट मांगी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति डॉ गौतम चौधरी की खंडपीठ ने जिला बार एसोसिएशन प्रयागराज के खिलाफ चल रही अवमानना कार्यवाही की सुनवाई करते हुए दिया है।

गौतमबुद्धनगर व गाजियाबाद के अधिवक्ता के आर चित्रा व सत्यकेतु सिंह ने कोर्ट को आये दिन वकीलों की हड़ताल के दुष्परिणामों की जानकारी दी और कहा कि अधिकांश वकील काम करना चाहते हैं, किन्तु कुछ वकील अपने वैधानिक व्यावसायिक दायित्व निभाने के बजाय हड़ताल कराते हैं और वकीलों व वादकारियों को परेशान करते हैं। उन्होंने बताया जिला जज हड़ताल के प्रस्ताव को सभी जजों में सर्कुलेट करते हैं जिससे अदालतें काम करने से अलग हो जाती है।

कोर्ट ने कहा कि पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कैप्टन हरीश उप्पल केस का पालन करने का निर्देश दिया है। जिसमे साफ कहा गया है कि हड़ताल करने पर जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। बार काउंसिल ने भी हड़ताल को सही नहीं माना और शोक सभा 3.30 बजे करने का प्रस्ताव दिया है। इसके बावजूद 10 बजे शोक प्रस्ताव कर अदालती कामकाज रोका जा रहा है।

हाईकोर्ट के अधिवक्ता ने जिला अदालतों की हड़ताल को लेकर रिपोर्ट पेश की। बार काउंसिल आफ इंडिया की तरफ से गिरधर द्विवेदी व उप्र बार काउंसिल के अधिवक्ता अशोक त्रिपाठी व वरिष्ठ अधिवक्ता ने पक्ष रखा। कोर्ट ने वकीलों से कहा है कि हड़ताल न कर वकालत व्यवसाय के गौरव को बहाल करें। हड़ताल से नागरिकों में न्यायिक तंत्र को लेकर सवाल उठ रहे हैं।

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